कांग्रेस को कर्नाटक, तेलंगाना जीतकर देने वाले सुनील कनुगोलू नहीं होंगे 2024 चुनाव अभियान का हिस्सा...

सुनील कनुगोलू के करीबी सूत्रों ने शुक्रवार को NDTV को जानकारी दी है कि कांग्रेस की 'टास्क फोर्स 2024' का हिस्सा रहे सुनील अब पार्टी के हरियाणा और महाराष्ट्र के अभियानों की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

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सुनील कनुगोलू को कांग्रेस की हालिया विधानसभा चुनाव की जीतों का सूत्रधार कहा जाता है... (फ़ाइल फ़ोटो)
नई दिल्ली:

पिछले साल कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के सूत्रधार कहे जाने वाले चुनावी रणनीतिकार सुनील कनुगोलू अब लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पार्टी के अभियान का हिस्सा नहीं होंगे. सुनील कनुगोलू के करीबी सूत्रों ने शुक्रवार को NDTV को जानकारी दी है कि कांग्रेस की 'टास्क फोर्स 2024' का हिस्सा रहे सुनील अब पार्टी के हरियाणा और महाराष्ट्र के अभियानों की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

सुनील कनुगोलू की नए सिरे से तैनाती के पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि इन दोनों ही राज्यों में उनके पास पहले से ही टीमें मौजूद हैं, और दोनों सूबों में अगले सात महीनों के भीतर मतदान होना है - और कांग्रेस पिछले साल कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनाव में क्रमशः भारतीय जनता पार्टी (BJP) तथा भारत राष्ट्र समिति (BRS) पर मिली बड़ी जीत को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है.

बहरहाल, कांग्रेस के प्रमुख चुनावी रणनीतिकार के अप्रैल और मई में होने जा रहे आम चुनाव में पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद नहीं होने की ख़बरों से चिंताएं पैदा हो रही हैं. पार्टी में महासचिव के पद पर आसीन एक वरिष्ठ नेता ने कबूल किया कि लोकसभा चुनाव के अभियान में सुनील कनुगोलू की गैरमौजूदगी 'झटका' है, लेकिन NDTV से बातचीत में उन्होंने कहा कि कांग्रेस का मानना ​​है कि अगर वह BJP के हाथ से अहम राज्यों को जीतने में अपने 'मिडास टच' का इस्तेमाल कर सकें, तो इससे पार्टी को ज़्यादा दीर्घकालिक लाभ होगा.

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सूत्रों ने यह भी बताया कि सुनील कनुगोलू कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के साथ भी काम करना जारी रखेंगे, जहां वह कैबिनेट रैंक के साथ मुख्यमंत्री सिद्धरामैया के प्राथमिक सलाहकार हैं, और वह तेलंगाना में भी काम करते रहेंगे, जहां उन्होंने 2014 से शासन कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और BRS को सत्ता से हटाया है.

कांग्रेस की चुनाव मशीनरी के लिए सुनील कनुगोलू की अहमियत पिछले साल के अंत में मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन से बेहतरीन तरीके से ज़ाहिर होती है. सुनील ने इन दोनों राज्यों में नेताओं - मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत - के साथ बातचीत शुरू की थी, लेकिन पार्टी के सबसे पुराने और इन राज्यों में वास्तविक बॉस उनकी मांगों पर सहमत नहीं हुए.

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इन दोनों राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह हारी थी. सूत्रों ने बाद में NDTV से कहा कि कर्नाटक और तेलंगाना में जीत इसलिए मिल सकी, क्योंकि इन दोनों सूबों में फ़ैसले लेने के लिए सुनील कनुगोलू को पूरी छूट दी गई थी.

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कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव अभियान के पीछे का गणित कुछ ज़्यादा ही जटिल है, खासतौर से INDIA गठबंधन के घटक के तौर पर सहयोगी दलों की सीट-बंटवारे से जुड़ी मांगों के बीच.

इस संदर्भ में सुनील कनुगोलू, जिन्हें 'हमेशा बड़ी तस्वीर पर पकड़ रखने वाले नए-नए आइडिया वाले शख्स' के तौर पर जाना जाता है, निश्चित ही बेहद कीमती साबित हो सकते हैं. विशेष रूप से इसलिए, क्योंकि उन्होंने पार्टी के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के साथ भी काम किया है - सुनील कनुगोलू 2014 में BJP के लोकसभा चुनाव अभियान का हिस्सा थे.

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लेकिन कांग्रेस शायद (बहुत) दीर्घकालिक सोच रख रही है, और कर्नाटक और तेलंगाना (और हिमाचल प्रदेश भी, जहां कनुगोलू ने पार्टी की मदद की थी) जैसी जीतों से पार्टी को मिलती आ रही पराजयों को बैलेंस करते रहना चाहती है, जैसे 2023 में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी को हार मिली थी और 2022 में कांग्रेस ने पंजाब गंवाया था.

विधानसभा चुनावों से पहले इन चार राज्यों में से तीन में कांग्रेस ही सत्तारूढ़ थी, और गुटबाज़ी से जूझते पार्टी के चुनाव अभियानों ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में BJP और पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) को जीत दिलाई, जो उन्हें संभवतः नहीं मिल सकती थी. अब 12 राज्यों में BJP की सरकारों की तुलना में कांग्रेस के पास सिर्फ़ तीन सूबों में सरकारें हैं. अब यही संभावना है कि अहम सूबों में अपनी स्थिति मज़बूत करने और मज़बूत आधार बनाकर जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस सुनील कनुगोलू और उनके क्षेत्रीय सर्वेक्षणों पर भरोसा करने जा रही है.

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पद पर कब्ज़ा होने के बावजूद हरियाणा में BJP की हालत बहुत मज़बूत नहीं लग रही है, और महाराष्ट्र में भी पिछले साल जून में सत्तासीन शिवसेना में हुए कड़वे दोफ़ाड़, जिसके चलते महाविकास अघाड़ी के घटक तौर पर सत्ता में बैठी कांग्रेस के हाथ से भी गद्दी छिन गई थी, के बाद से उथल-पुथल का ही माहौल है. सो, ये दोनों राज्य कांग्रेस की नई शुरुआत के लिए बढ़िया मौके प्रतीत हो रहे हैं.

आंध्र प्रदेश में भी इसी साल मतदान होना है, लेकिन संभवतः सुनील कनुगोलू उसे छोड़ देंगे, क्योंकि पार्टी में वाई.एस. शर्मिला के हालिया प्रवेश के बावजूद कांग्रेस की सूबे में खास मौजूदगी नहीं है.

2024 में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ ओडिशा में भी चुनाव होगा, जहां मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (BJD) का दबदबा है. इसके अलावा, मतदान झारखंड में भी होगा, लेकिन कांग्रेस पहले से वहां की सरकार का हिस्सा है, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ गठबंधन कर रखा है.

कांग्रेस की सबसे बड़ी परीक्षा जम्मू एवं कश्मीर में होगी, जहां, अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाता है तो, अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा हटाए जाने के फ़ैसले के बाद पहली बार चुनाव होगा. जम्मू एवं कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में हुआ था.

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