वक्फ बोर्ड बिल को लेकर मांगे गए थे सुझाव, अब JPC के पास पहुंचे लाखों पत्रों की जांच की हुई मांग

इस्लामी कट्टरपंथियों की भूमिका का मुद्दा बड़ा और गंभीर है, जिन्होंने संसदीय समिति को पत्र भिजवाने के लिए अभियान चलाया. भारत घरेलू और विदेशी मोर्चे पर चरमपंथ का मुकाबला करता आया है.

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वक्फ बिल कमिटी के सदस्य.
नई दिल्ली:

वक्फ बिल को लेकर बनाई गई जेपीसी को अब तक लाखों-करोड़ों की संख्या में पत्र मिले हैं और इसे लेकर जेपीसी के सदस्य निशिकांत दुबे ने चिंता व्यक्त की है. समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को पत्र लिखकर उन्होंने बताया कि अब तक वक्त समिति को एक करोड़ पच्चीस लाख पत्र मिले हैं. इसके पीछे उन्हें एक परेशान करने वाला ढर्रा नजर आ रहा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. संभवत दुनियाभर में किसी संसदीय समिति को इतनी बड़ी संख्या में पत्र नहीं मिले होंगे और इस वजह से उनका मानना है कि इसकी जांच होना जरूरी है. 

कहां से आए हैं सबसे अधिक पत्र

इसके लिए सबसे पहले ये देखा जाना जरूरी है कि आखिरकार सबसे अधिक पत्र कहां से आए, इनमें से भारत में से कितने हैं और विदेशों से कितने आए हैं. जेपीसी के मुताबिक इतनी बड़ी संख्या में पत्रों को देखते हुए यह कहना संभव नहीं है कि ये सभी पत्र सिर्फ भारत से आए हों. इस वजह से जरूरी है कि विदेशी ताकतों, संगठनों और व्यक्तियों ने जानबूझकर एक अभियान के तहत इस तरह के पत्रों की बाढ़ लगाई हो. 

इस्लामी कट्टरपंथियों की भूमिका का है मुद्दा

इस्लामी कट्टरपंथियों की भूमिका का मुद्दा बड़ा और गंभीर है, जिन्होंने संसदीय समिति को पत्र भिजवाने के लिए अभियान चलाया. भारत घरेलू और विदेशी मोर्चे पर चरमपंथ का मुकाबला करता आया है. कई बार ऐसे संगठन जिन्हें विदेशों से मदद मिलती है देश को धार्मिक आधार पर बांटना चाहते हैं, लोकतंत्र को अस्थिर करना चाहते हैं और हमारी संसदीय प्रक्रिया को पटरी से उतारना चाहते हैं.

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कुछ संगठनों-लोगों के प्रति सतर्क रहना जरूरी

यह मानने का कारण है कि ऐसे संगठन वक्फ बिल से जुड़े विमर्श को बदलना चाहते हैं और जनता के मन में संदेह के बीज बो कर उनके विचारों को प्रभावित करना चाहते हैं. हमें ऐसे लोगों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है कि हमारी संसदीय प्रक्रिया चरमपंथी एजेंडे से हाईजैक न हो जाए और राष्ट्रीय एकता पर बुरा असर न हो. माना जा रहा है कि वक्फ बिल को लेकर मिले ढेर सारे सुझावों के पीछे जाकिर नाइक और उसके नेटवर्क का हाथ हो सकता है.

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सामने आ रहा है जमात-ए-इस्लामी और तालिबान का नाम

यह भड़काऊ भाषणों के कारण और आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोपों में भारतीय एजेंसियां वांछित हैं. जेपीसी को मिले सुझावों में उसकी और उसके नेटवर्क की भूमिका की जांच हो. आईएसआई, चीन और कट्टरपंथी संगठनों के शामिल होने की बात बहुत चिंताजनक है. बांग्लादेश के जमात-ए-इस्लामी और तालिबान का नाम भी इसमें सामने आ रहा है. ये भारत को अस्थिर करना चाहते हैं. यह कोई छुपी बात नहीं है कि आईएसआई भारत में लंबे समय से गड़बड़ी फैलाने का प्रयास करती आई है. यह संभव है कि इतनी बड़ी संख्या में मिले पत्रों के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हो.

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समिति स्वतंत्रता से काम करें

संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्य को सुनिश्चित करता है जिनमें समितियों का कामकाज भी शामिल है. अगर विदेशी ताकतें जिनमें खुफिया एजेंसियां और चरमपंथी भी शामिल हैं, संसदीय प्रक्रिया से छेड़छाड़ का प्रयास करते हैं तो यह हमारी संसदीय प्रणाली की बुनियाद पर हमला है. जेपीसी के सदस्य होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि समिति पूरी स्वतंत्रता से काम करे और उस पर घरेलू या विदेशी प्रभाव न हो. निशिकांत दुबे ने समिति के अध्यक्ष से मांग की कि इसकी जांच गृह मंत्रालय से कराई जाए.

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जाकिर नाइक और चीन की भूमिका लाई जाए 

जांच में आईएसआई, चीन और जाकिर नाइक की भूमिका भी लाई जाए. जांच के नतीजों के बारे में समिति के सभी सदस्यों को बताया जाए. ऐसा करना वक्फ बिल से जुड़ी चर्चा की निष्पक्षता और स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक है. उन्होंने कहा कि यह जांच जल्दी से जल्दी पूरी कराई जाए.

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