- सुधा मूर्ति ने Right to Education कानून में 3 से 6 साल के बच्चों को शामिल करने का रेजोल्यूशन पेश किया
- वर्तमान में Right to Education एक्ट के अंतर्गत केवल 6 से 14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है
- इस संशोधन से सरकार को नए संसाधन जुटाने और नए स्कूल स्थापित करने की आवश्यकता होगी, जिसमें समय लग सकता है
राज्यसभा सांसद और इंफोसिस फाउंडर नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति ने आज राज्यसभा में एक नया प्राइवेट मेंबर रेजोल्यूशन पेश किया. इस बिल में कहा गया है कि Right to Education कानून में संशोधन करके 3 से 6 साल के बच्चों को भी इसके दायरे में शामिल किया जाए. एनडीटीवी से बातचीत में राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति ने कहा, 'मैंने आज राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर रेजोल्यूशन पेश किया है, जिसमें कहा गया है कि Right to Education Act एक्ट के Section 21a में संशोधन की जरूरत है. फिलहाल इस कानून के दायरे में 6 से 14 साल के बच्चों को शामिल किया गया है. मैंने अपने प्राइवेट मेंबर रेजोल्यूशन में यह प्रस्ताव रखा है कि इसे बढ़ाकर तीन से 14 साल किया जाए.'
3 साल से क्यों जरूरी
सुधा मूर्ति ने इसकी जरूरत के कारणों को बताते हुए कहा कि 85% बच्चों का जो मानसिक विकास है, वह 3 से 6 साल के बीच में होता है. इस समय सबसे ज्यादा बच्चों को अच्छी शिक्षा की जरूरत होती है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है की तीन से 6 साल के उम्र के बच्चों को भी Right to Education के दायरे में शामिल किया जाए. इसके लिए सरकार को नए संसाधन जुटाने होंगे और नए स्कूलों को भी स्थापित करना होगा. इसमें समय लग सकता है, मगर शुरुआत तो करनी पड़ेगी.
सुधा मूर्ति की दूसरी मांग
इससे पहले नौ दिसंबर को सुधा मूर्ति ने सरकार से प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में राष्ट्र गीत 'वंदे मातरम्' का गायन अनिवार्य करने का आग्रह किया था. इस गीत की रचना की 150वीं वर्षगांठ पर उच्च सदन में हुई चर्चा में भाग लेते हुए मूर्ति ने कहा, ‘मैं यहां एक सांसद, समाजसेवी या लेखिका के रूप में नहीं खड़ी हूं. मैं यहां भारत माता की एक बेटी के रूप में खड़ी हूं.' उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में इस गीत की भूमिका को याद करते हुए कहा, ‘जब भारत परतंत्र था, तो हमारा आत्मविश्वास डगमगा गया था और हम निराश थे.'
वंदे मातरम क्यों जरूरी
मनोनीत सदस्य ने कहा, ‘उस समय, वंदे मातरम् ज्वालामुखी के लावा की तरह फूट पड़ा. मैं हुबली के एक छोटे से कस्बे से हूं. मेरे दादाजी बताया करते थे कि यह ब्रिटिश राज के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक था. वंदे मातरम् में एक जादुई स्पर्श था.' विद्यालयों में इस गीत को पढ़ाने की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों को अगर यह नहीं पढ़ाया गया तो वे ‘वंदे मातरम्' का पूरा पाठ भूल जाएंगे. मूर्ति ने शिक्षा विभाग से, खासकर प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में, राष्ट्रीय गीत को अनिवार्य बनाने का अनुरोध किया.














