दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) को लेकर चुनाव आयोग ने तारीख का ऐलान कर दिया है. दिल्ली में कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर सभी की नजर है. हालांकि उनमें सबसे खास नई दिल्ली विधानसभा सीट है. इस सीट पर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों की सियासी लड़ाई पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से है. अरविंद केजरीवाल को भाजपा के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित कड़ी सियासी टक्कर दे रहे हैं. दिल्ली में पांच फरवरी को मतदान होगा और आठ फरवरी को नतीजे आएंगे.
क्यों खास है नई दिल्ली सीट?
लुटियन जोन को दिल्ली का दिल और भारत की सत्ता का केंद्र माना जाता है. राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री आवास सहित सत्ता के गलियारों के ताकतवर लोगों के बंगले यहां पर हैं. लुटियन जोन नई दिल्ली विधानसभा में आता है. यही कारण है कि दिल्ली की राजनीति में इस हाई प्रोफाइल विधानसभा सीट की सबसे ज्यादा चर्चा होती है. यह सीट सबसे पहले शीला दीक्षित की वजह से सुर्खियों में आई थी.
- 1998 में शीला दीक्षित ने दर्ज की थी जीत
- शीला दीक्षित 3 बार यानी 2013 तक विधायक रहीं
- फिर अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को हराया
- अब अरविंद केजरीवाल पिछले तीन बार से विधायक हैं
हर बार दिलचस्प सियासी मुकाबला
नई दिल्ली विधानसभा सीट ने 27 साल तक दिल्ली को मुख्यमंत्री दिया है, लेकिन इस बार नई दिल्ली विधानसभा सीट पर सियासी मुकाबला बेहद दिलचस्प है. तीन बार के मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल के सामने अपनी मां शीला दीक्षित की हार का बदला लेने के लिए कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित हैं तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा भी केजरीवाल के खिलाफ मजबूती से सियासी मैदान में डटे हैं. हालांकि नई दिल्ली विधानसभा सीट पर अरविंद केजरीवाल की जीत का रिकॉर्ड अब तक अव्वल रहा है.
- 2013 में अरविंद केजरीवाल ने करीब 26000 वोटों से शीला दीक्षित को हराया
- 2015 में केजरीवाल ने 30,000 से ज्यादा मतों से भाजपा की नूपुर शर्मा को हराया
- तीसरी बार यानी 2020 में केजरीवाल की जीत का अंतर करीब 20 हजार वोटों का रहा
बंगले पास, लेकिन लंबी सियासी दूरी
इस बार केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती एंटी इंकंबेंसी और भ्रष्टाचार के आरोप हैं. हालांकि अरविंद केजरीवाल अपनी रैलियों में खुद को कट्टर ईमानदार बताते हैं और केंद्र पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि अब आतिशी को जेल भेजने की तैयारी की जा रही है.
अरविंद केजरीवाल और प्रवेश वर्मा में भले ही सियासी दूरी बहुत ज्यादा हो, लेकिन नई दिल्ली में वो एक दूसरे के पड़ोसी ही हैं. पांच फिरोजाबाद रोड पर केजरीवाल का बंगला है और यहीं से बमुश्किल सौ मीटर की दूरी पर प्रवेश वर्मा का बंगला है.
इस बंगले से केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी के पूर्व सांसद रहे प्रवेश वर्मा भी सियासी मोर्चेबंदी में जुटे हैं. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा की गिनती तेजतर्रार बीजेपी नेताओं में होती है. चुनाव घोषणा से पहले ही अपने स्तर पर लाडली बहना योजना लॉन्च करके वो आम आदमी पार्टी के निशाने पर हैं. यही वजह है कि उनके घर के अंदर और बाहर महिलाओं की भीड़ है. वो अपने घर के अंदर दिखाते कहते हैं कि मैं चोरी छिपे महिलाओं की मदद नहीं कर रहा हूं.
नई दिल्ली विधानसभा चुनाव के तीसरे उम्मीदवार संदीप दीक्षित हैं. अपनी मां शीला दीक्षित की हार का बदला लेने के लिए संदीप दीक्षित घर-घर संपर्क अभियान के जरिये केजरीवाल की नाकामी और अपनी मां के काम को गिना रहे हैं. इसी आधार पर वो कह रहे हैं कि नई दिल्ली का मुकाबला अच्छा होगा.
बाल्मीकी मंदिर पर मत्था टेक रहा दिग्गज
नई दिल्ली विधानसभा में भगवान बाल्मीकी मंदिर है, जहां पर सारे सियासी दिग्गज माथा टेकते हैं. ये वो भगवान बाल्मीकी मंदिर है, जहां 2013 में अरविंद केजरीवाल ने झाड़ू लगाकर अपने राजनीतिक अभियान की शुरुआत की थी. इसी मंदिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने स्वच्छ भारत अभियान को शुरू किया था.
भगवान बाल्मीकी मंदिर के सहारे नेताओं की आंखें दिल्ली की 12 सुरक्षित सीटों पर रहती हैं. इसके चलते दिल्ली में सत्ता किसी की भी हो लेकिन बाल्मीकी मंदिर की अहमियत बढ़ती ही रही. बाल्मीकी मंदिर के आसपास और दूसरी जगहों के लोग सरकार के कामकाज और अपनी समस्याओं को लेकर बेबाकी से बात रखते हैं. कुछ लोगों ने कहा कि हमारे लिए बेरोजगारी मुद्दा है, हमारे बच्चे घूम रहे हैं और कोई नौकरी नहीं है.
क्या कहती है नई दिल्ली सीट के वोटर?
वहीं एक शख्स ने सवाल किया कि केजरीवाल दस साल से सत्ता में हैं, लेकिन क्या हुआ. एक अन्य ने कहा कि महिलाओं को 2100 रुपए देने की बात हो रही है, लेकिन देगा कोई नहीं. हमें जरूरत भी नहीं है.
नई दिल्ली विधानसभा का ज्यादातर हिस्सा वीवीआईपी क्षेत्र में आता है. इसके चलते यहां बिजली-पानी और साफ-सफाई मुद्दा नहीं है. उसके बावजूद नई दिल्ली विधानसभा के नतीजों पर देशभर के लोगों की निगाहें लगी हुई है, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सियासी घेराबंदी करने के लिए दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे यहां लगे हैं.