सपा सांसद इकरा हसन ने NDTV को बताया मॉनसून सत्र में क्यों होता रहा हंगामा

मॉनसून सत्र की शुरुआत 21 जुलाई को हुई थी और पहले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा की मांग को लेकर और बाद में एसआईआर मुद्दे पर चर्चा की मांग के चलते व्यवधान उत्पन्न होते रहे. इन कारणों से दोनों सदनों में कामकाज बहुत कम हुआ.

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  • मॉनसून सत्र में लोकसभा की प्रोडक्टिविटी तीस प्रतिशत से कम और राज्यसभा की करीब तैंतीस प्रतिशत रही.
  • संसद में कुल बारह लोकसभा और पन्द्रह राज्यसभा विधेयक पारित हुए, लेकिन अधिकतर समय नारेबाजी और हंगामे में गया.
  • समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन ने SIR मुद्दे को लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बताया.
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संसद का मॉनसून सत्र समाप्त हो गया. कामकाज की बात करें तो लोक सभा की प्रोडक्टिविटी 30.83% और राज्य सभा की सिर्फ 38.88% रही. महीने भर चले मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 15 विधेयक पारित किए गए. मगर अधिकतर समय नारेबाजी और हंगामा ही देखने को मिला. संसद की प्रोडक्टिविटी को लेकर एनडीटीवी ने समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन से एक्सक्लूसिव बात की. पूछा कि क्या SIR का मुद्दा इतना बड़ा था कि संसद को ठप कर दिया जाए? 

'पूरा लोकतंत्र खतरे में...'

इकरा हसन ने कहा कि देखिए, एक नए जनप्रतिनिधि के रूप में अफसोस होता है. संसद का सत्र महत्वपूर्ण होता है. हमें अपने जनता के विषय उठाने का मौका मिलता है, लेकिन कुछ चीजें खुद के और राष्ट्र के लिए इतनी महत्वपूर्ण हैं कि उनको देखते हुए अपने सभी मुद्दे हमें पीछे रखने पड़ते हैं. एसआईआर का जो मुद्दा है वो बहुत महत्वपूर्ण है. बिहार में जो 65 लाख वोट डिलीट हुए हैं, जिस तरीके से एक फरमान जारी किया गया कि आधार और राशन कार्ड जैसे कॉमन आइडेंटिफिकेशन को छोड़कर बाकी पहचान-पत्र चाहिए तो ये एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है हमारे यहां की इलेक्शन कमीशन की कार्यप्रणाली पर. कुछ वोटर्स का तो यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जिससे पूरा लोकतंत्र खतरे में आ सकता है. तो इसके चलते बाकी सभी मुद्दों को अलग रखा.

'हेल्दी डिस्कशन होना ही चाहिए'

सपा सांसद ने आगे कहा कि हमारी शुरू दिन से मांग थी कि एसआईआर पर चर्चा हो. अगर वो मांग हमारी सत्ता पक्ष ने मंजूर की होती तो कोई हंगामा नहीं होता, लेकिन सत्ता पक्ष इन गंभीर मुद्दों पर बात नहीं करना चाहता. सिर्फ अपने जो बिल हैं वो पास करने के लिए लगे रहे. उन्होंने विपक्ष की बात एक बार भी नहीं सुनी. ये इतना महत्वपूर्ण मुद्दा है. उसके बाद इलेक्शन कमीशन ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन जो देश की सबसे बड़ी पंचायत है, वहां पर इस बात पर चर्चा नहीं हो पाई. तो ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. हमारे लिए. हमारे देश की लोकतंत्र के लिए. एक हेल्दी डिस्कशन होना ही चाहिए. विपक्ष की जो चिंताएं हैं, उनका जवाब सत्ता पक्ष को देना चाहिए. 

नये विधेयक पर क्या है ऐतराज

इकरा हसन ने कहा कि अब ये जो नया विधेयक लाया गया है कि 30 दिन अगर कोई भी सीएम जेल में रहेंगे तो वो अपने सीएम पद को खो देंगे. तो ये बहुत ये एक बहुत बड़ा हमला है डेमोक्रेसी पर. इट इज अ डेथ ऑफ डेमोक्रेसी. क्योंकि ये सब ठीक नहीं है. हम जिस तरीके से भाजपा की इस सरकार का कार्यकाल देख रहे हैं, उसमें लगातार झूठे आरोप लगाकर लोगों को जेल में डाला जा रहा है और एक महीना बहुत लंबा वक्त नहीं होता है. सुनवाई भी नहीं होती है. मेरे खुद के भाई 11 महीने जेल में रहे हैं. तो अगर एक महीने के लिए किसी को भी आप ऐसे पद से हटा देंगे तो यह जनता से जनता के अधिकार को छीन रहा होगा और हम इसका पूर्ण रूप से विरोध करेंगे.