'चुप रहना भी मार डालता है', शादी के कारण हो रही मौतों पर संसद में चिंता; सांसद बोले- सिर्फ कानून नहीं बचाएगा

Parliament Winter Session 2025: सांसद ने अपने बयान का समापन इस कड़े संदेश के साथ किया- 'उत्पीड़न केवल मार-पीट से नहीं होता. कभी-कभी, खामोशी भी जान ले लेती है.'

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कानून मजबूत, पर जान नहीं बच रही! 1.71 लाख सुसाइड पर IUML सांसद ने पूछा: दहेज और अनदेखी पर सरकार क्या करेगी?
PTI

Delhi News: इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के सांसद हरीस बीरन (Haris Beeran) ने मंगलवार को राज्यसभा में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2023 के डरावने आंकड़ों पर चिंता जताई. इन आंकड़ों के अनुसार, साल 2023 में कुल 1,71,418 आत्महत्याएं (Suicides) दर्ज की गईं, जिनमें से अधिकतर मौतों का कारण शादी से जुड़े मामले (Marriage-Related Issues) थे. सांसद हरीस बीरन ने इस गंभीर संकट को नैतिक, कानूनी और संस्थागत नाकामी बताया और कहा कि मौजूदा कानूनों से ऊपर उठकर तुरंत बड़े सुधार की जरूरत है.

लाखों महिलाओं की 'खामोश चीख'

सांसद बीरन ने कहा कि भारतीय परंपरा में जहां शादी को एक पवित्र मील का पत्थर माना जाता है, वहीं लाखों महिलाओं के लिए यह खामोश दुख, अकेलापन और निराशा का दौर बन गई है. सांसद ने बताया कि सपोर्ट सिस्टम की विफलता, दहेज की मांग और इमोशनल नेगलिजेंस इस त्रासदी को जन्म दे रही है. दशकों से सख्त कानून होने के बावजूद, नवविवाहित महिलाओं में अन-नेचुरल डेथ का सबसे आम कारण आज भी दहेज से संबंधित उत्पीड़न बना हुआ है. बीरन ने स्वीकार किया कि भारत के पास दुनिया के कुछ सबसे मजबूत कानूनी प्रावधान हैं, लेकिन कड़वा सच यह है कि हम उन्हें लागू करने में विफल रहे हैं.

सुसाइड के लिए क्यों मजबूर हो रही महिलाएं?

सांसद ने आत्महत्या के पीछे के स्वास्थ्य आयाम पर भी ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने बताया कि मासिक धर्म, गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान होने वाले हार्मोनल परिवर्तन भावनात्मक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण असर डालते हैं. इन नाजुक समय में संवेदनशीलता की कमी, भावनात्मक अनदेखी या वैवाहिक कलह अक्सर महिलाओं को अतिवादी कदम उठाने की ओर धकेल देती है.

'उत्पीड़न केवल मार-पीट से नहीं होता...'

सांसद हरीस बीरन ने जोर देकर कहा कि हर आत्महत्या न केवल एक व्यक्ति का नुकसान है, बल्कि एक परिवार का टूटना और बच्चों पर जीवन भर का घाव है. कागज पर बने कानून अकेले जीवन नहीं बचाएंगे. हमें सहानुभूतिपूर्ण क्रियान्वयन (Empathetic Enforcement), संस्थागत जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति द्वारा समर्थित सामाजिक सुधार की आवश्यकता है.' उन्होंने अपने वक्तव्य का समापन एक कड़े रिमाइंडर के साथ किया- 'उत्पीड़न केवल मार-पीट से नहीं होता. कभी-कभी, खामोशी भी जान ले लेती है.'

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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