कोरोना वैक्सीन की डोज में कम अंतर डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा प्रभावी : लैंसेट

द लैंसेट (The Lancet) के अध्ययन में कहा गया है कि कोरोनावायरस वैक्सीन (Covid 19 Vaccine) की डोज में अगर कम अंतर होता है तो यह डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा प्रभावी होगा.

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भारत में टीकाकरण अभियान जारी है. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

द लैंसेट (The Lancet) जर्नल ने एक नए अध्ययन में कहा है कि फाइजर कंपनी की वैक्सीन (Pfizer Covid-19 Vaccine) कोरोनावायरस के डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) के खिलाफ बहुत कम प्रभावी है. कोरोनावायरस के मूल रूप की तुलना में यह वेरिएंट ज्यादा खतरनाक है. अध्ययन में कहा गया है कि वैक्सीन की डोज में अगर कम अंतर होता है तो यह डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा प्रभावी होगा. अध्ययन में कहा गया है कि वेरिएंट के प्रति एंटीबॉडी प्रतिक्रिया उन लोगों में और भी कम है, जिन्हें सिर्फ एक खुराक मिली है और खुराक के बीच ज्यादा अंतर डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी को काफी कम कर सकता है.

यह ब्रिटेन में टीकों के बीच खुराक के अंतर को कम करने के लिए वर्तमान योजनाओं का समर्थन करता है क्योंकि उन्होंने पाया कि फाइजर वैक्सीन की सिर्फ एक खुराक के बाद, लोगों में बी.1.617.2 वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी स्तर विकसित होने की संभावना उतनी ही कम है, जितनी पहले प्रभावी B.1.1.7 (अल्फा) वेरिएंट के खिलाफ देखी गई, जो पहली बार केंट में पाया गया था.

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शोधकर्ताओं ने ध्यान दिया कि यह सुनिश्चित करना सबसे महत्वपूर्ण है कि अधिक से अधिक लोगों को अस्पताल से बाहर रखने के लिए टीके की सुरक्षा पर्याप्त बनी रहे.

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UCLH इंफेक्शियस डिजीज कंसल्टेंट और सीनियर क्लिनिकल रिसर्च फेलो एमा वॉल वैक्सीन की डोज के कम अंतर को लेकर कहती हैं, 'हमारे नतीजे बताते हैं कि ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका है कि जल्दी से दूसरी खुराक दी जाए और उन लोगों को बूस्टर मुहैया कराया जाए, जिनकी इम्युनिटी इन नए वेरिएंट के मुकाबले ज्यादा नहीं हो सकती है.'

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ब्रिटेन में फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में टीम ने पाया कि अकेले एंटीबॉडी के स्तर वैक्सीन की प्रभावशीलता की भविष्यवाणी नहीं करते हैं. इसके लिए संभावित जनसंख्या अध्ययन की भी जरूरत है. उन्होंने कहा कि कम निष्क्रिय एंटीबॉडी का स्तर अभी भी कोरोना से सुरक्षा से जुड़ा हो सकता है.

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बताते चलें कि जब कोई सूक्ष्मजीव- जैसे बैक्टीरिया या वायरस हमें संक्रमित करते हैं, तो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हरकत में आ जाती है. यह संक्रमणों को समझने और खत्म करने तथा उनसे होने वाले किसी भी नुकसान को दूर करने के लिए अत्यधिक प्रशिक्षित होती है. वैसे आमतौर पर यह माना जाता है कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हर वक्त एक ही तरह से काम करती है, फिर चाहे संक्रमण दिन के समय हो या रात में लेकिन आधी सदी से अधिक समय से चल रहे शोध से पता चलता है कि हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली दरअसल दिन और रात में अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया देती है.

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कई कोविड-19 टीकों की उच्च प्रभावशीलता (फाइजर और मॉडर्ना दोनों की 90 फीसदी से अधिक प्रभावकारिता की रिपोर्टिंग के साथ) को देखते हुए और जिस तात्कालिकता के साथ हमें टीकाकरण की आवश्यकता है, लोगों को दिन के किसी भी समय टीकाकरण कराना चाहिए लेकिन वर्तमान और भविष्य के ऐसे टीके जिनकी इतनी अधिक प्रभावकारिता दर नहीं है - जैसे कि फ्लू का टीका - या यदि उनका उपयोग खराब प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया वाले लोगों (जैसे कि वृद्धों) में किया जाता है, तो अधिक सटीक ‘‘समयबद्ध'' दृष्टिकोण अपनाने से अधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता सुनिश्चित की जा सकती है.

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