छत्रपति शिवाजी महाराज की सैन्य ताकत को यूनेस्को का नमन, इन 12 किलों को विश्व धरोहर घोषित किया

छत्रपति शिवाजी महाराज के इन 12 किलों को विश्व धरोहर घोषित करने का फैसला वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की 47वीं बैठक में लिया गया. भारत के अब तक 44 स्थल वर्ल्ड हेरिटेज का हिस्सा बन चुके हैं.

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  • यूनेस्को ने छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े 12 मराठा किलों को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है.
  • ये किले 17वीं से 19वीं शताब्दी के हैं और मराठा साम्राज्य की सैन्य क्षमता व वास्तुकला कौशल के उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
  • इनमें से 11 किले महाराष्ट्र में और एक किला तमिलनाडु में है. कई किलों की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है.
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भारत की मराठा सैन्य विरासत अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों का हिस्सा बन गई है. यूनेस्को ने छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े 12 किलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है. 17वीं से 19वीं शताब्दी के ये किले मराठा साम्राज्य की रणनीतिक सैन्य क्षमता और वास्तुकला कौशल के अद्भुत नमूने हैं. ये किले महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु तक में फैले हुए हैं. 

इन किलों को विश्व धरोहर घोषित करने का फैसला वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की 47वीं बैठक में लिया गया. भारत के अब तक 44 स्थल वर्ल्ड हेरिटेज का हिस्सा बन चुके हैं.

मराठा इतिहास के ये किले बने विश्व धरोहर

  • साल्हेर किला
  • शिवनेरी किला
  • लोहगड़ किला
  • खांदेरी किला
  • रायगड किला
  • राजगड किला
  • प्रतापगढ़ किला
  • सुवर्णदुर्ग किला
  • पन्हाला किला
  • विजयदुर्ग किला
  • सिंधुदुर्ग किला
  • जिंजी किला

इनमें से जिंजी किला तमिलनाडु में है, बाकी सभी 11 किले महाराष्ट्र में हैं. 

इन किलों में क्या खास है?

साल्हेर, शिवनेरी, लोहगड़, रायगड, राजगड और जिंजी पहाड़ी किले के तौर पर प्रसिद्ध हैं जबकि पहाड़ी-वन किलों में प्रतापगढ़ और पहाड़ी-पठारी किलों में पन्हाला की गिनती होती है. विजयदुर्ग, खांदेरी, सुवर्णदुर्ग और सिंधुदुर्ग को तटीय द्वीपीय किला कहा जाता है. 

इनमें से शिवनेरी किला, लोहगड़ किला, रायगढ़ किला, सुवर्णदुर्ग किला, पन्हाला किला, विजयदुर्ग किला, सिंधुदुर्ग किला और जिंजी किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में हैं. वहीं साल्हेर किला, राजगढ़ किला, खांदेरी किला और प्रतापगढ़ किला महाराष्ट्र सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय से संरक्षित हैं.

मराठा सैन्य विचारधारा की शुरुआत 17वीं शताब्दी में 1670 ई. में छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में मानी जाती है. बाद में यह 1818 ईसवी तक चले पेशवा शासन तक जारी रही.

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