शिवसेना (Shivsena) के मुखपत्र सामना (Saamana) के संपादकीय में एक दिन पहले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Maharashtra Governor Bhagat Singh Koshyari) की जमकर आलोचना की गई थी, लेकिन इसके कुछ ही घंटे बाद राज्यपाल का धन्यवाद दिया गया है. शिवसेना के शब्दों में अचानक यह परिवर्तन ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) के संदर्भ में राज्य सरकार द्वारा भेजे गए संशोधित अध्यादेश पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के हस्ताक्षर के बाद आया है. हालांकि पूर्व में राज्यपाल ने त्रुटियों का हवाला देते हुए राज्य सरकार द्वारा भेजा गया अध्यादेश बिना हस्ताक्षर के ही लौटा दिया था.
शिवसेना के संपादकीय में संजय राउत ने लिखा, ''अध्यादेश में त्रुटियों का हवाला देते हुए राज्यपाल ने राज्य सरकार द्वारा भेजा गया पहला अध्यादेश हस्ताक्षर किए बगैर ही सरकार को वापस भेज दिया था। परंतु संशोधित अध्यादेश में राज्यपाल को अनुचित कहा जाए, ऐसा कुछ नहीं मिला होगा. इसीलिए उन्होंने संशोधित अध्यादेश पर तुरंत हस्ताक्षर कर दिए। इसके लिए राज्यपाल महोदय को धन्यवाद कहने में कोई हर्ज नहीं है. ''
सामना के संपादकीय में लिखा, ''पहले अध्यादेश पर हस्ताक्षर न करते हुए राज्यपाल ने उसे सरकार को वापस भेजा तब ‘राज्यपाल भाजपा की सुविधा के अनुसार राजनीतिक भूमिका अपना रहे हैं', ऐसा मत कुछ मंत्रियों ने व्यक्त किया. इसके पीछे राजभवन की पिछली कुछ घटनाओं का संदर्भ है. अध्यादेश कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरा तो इन समस्याओं से उलझन बढ़ती जाएगी. राज्यपाल विपक्ष के समर्थक हैं, ऐसा आरोप उन पर लगता रहता है. परंतु कुछ कानूनी मामलों में उन्हें संदेह का लाभ देने में कोई हर्ज नहीं है.''
सामना की संपादकीय में लिखा, '' राज्यपाल के हस्ताक्षर के बगैर अध्यादेश मंजूर नहीं हो सकता था व कानूनी दृष्टि से कम क्षमतावाले अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने को राज्यपाल तैयार नहीं थे.इस भूमिका को गलत नहीं कहा जा सकता है. परंतु ओबीसी को राजनीतिक आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया संशोधित अध्यादेश और उस पर राज्यपाल द्वारा अब लगाई गई मुहर इसे सकारात्मक घटना कहना होगा.'' साथ ही उम्मीद जताई गई है कि सरकार और राजभवन का एक-दूसरे के पूरक बनकर काम करते रहना महाराष्ट्र के हित में होगा.
इससे एक दिन पहले सामना के संपादकीय में लिखा गया था, "केंद्र की सरकार, प्रधानमंत्री पूरे देश के नेता होते हैं। फिर भले ही राज्यों की सरकारें उन्हें माननेवाली राजनीतिक पार्टी की न हों तब भी. उन राज्यों को अस्थिर करना मतलब राष्ट्रीय एकता को कलंक लगाने जैसा है. महाराष्ट्र की घटनाएं कलंक लगाने का ही उदाहरण है. अर्थात महाराष्ट्र को कलंक लगाओगे तो आपकी ही धोती जलेगी, ये मत भूलो." साथ ही इसी लेख में राज्यपाल को सफेद हाथी बताया गया था.
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