महायुति में 'गठबंधन धर्म' पर सवाल! शिंदे-BJP तो एकजुट, पर अजित पवार का 'गेम प्लान' लीक!

महाराष्ट्र की राजनीति का लोहा देश के सभी राजनीतिज्ञ मानते हैं. यहां हर दिन एक नये तरह की पॉलिटिक्स और समीकरण बनते हैं. कभी यहां 5 सालों तक सीएम बने रहना भी एक रिकॉर्ड माना जाता था. अब एक बार फिर यहां की राजनीति नये करवट लेती दिख रही है.

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  • महायुति में मुख्यमंत्री शिंदे और बीजेपी ने महानगरपालिका चुनावों में एकजुट होकर लड़ने का फैसला किया है
  • अजित पवार की NCP कुछ स्थानीय निकाय चुनावों में महायुति से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ सकती है
  • अजित पवार की पार्टी पश्चिमी महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी के साथ समझौता कर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है
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महाराष्ट्र की राजनीति में महायुति (BJP, शिंदे की शिवसेना, अजित पवार की NCP) के भीतर एक दिलचस्प 'पवार प्लान' सामने आया है. एक तरफ जहां मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने आने वाले महानगरपालिका चुनावों में अधिकांश जगहों पर एकजुट होकर लड़ने पर सहमति बना ली है, वहीं खबर है कि दूसरी तरफ, डिप्टी सीएम अजित पवार की पार्टी ने महायुति को दरकिनार करते हुए एक विचित्र चुनावी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है.

पवार प्लान

  1. सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी कुछ स्थानीय निकाय चुनावों में महायुति से अलग होकर न सिर्फ अकेले चुनाव लड़ेगी, बल्कि कुछ चुनिंदा सीटों पर अपने चाचा शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी NCP-शरदचंद्र पवार के साथ समझौता कर सकती है!
  2. इस पूरे “पवार प्लान” का केंद्र पश्चिमी महाराष्ट्र है. ये क्षेत्र परंपरागत रूप से पवार परिवार का सबसे बड़ा राजनीतिक गढ़ माना जाता है, जिसमें पुणे, सतारा, सांगली, कोल्हापुर जैसे जिले शामिल हैं. खबर है कि, अजित पवार की पार्टी और शरद पवार की पार्टी, दोनों अपने-अपने राष्ट्रीय और राज्यीय गठबंधनों यानी महायुति और महाविकास अघाड़ी से अलग होकर इन चुनिंदा सीटों पर एक साथ आ सकते हैं. इस जुगलबंदी का मकसद सिर्फ और सिर्फ पवार परिवार के प्रभाव को क्षेत्र में जोड़कर रखना है.
  3. चूंकि स्थानीय निकाय चुनाव में व्यक्तिगत संबंधों और प्रभाव का सीधा जमीनी असर होता है, इसलिए दोनों पवार गुट साथ मिलकर अपनी पकड़ को मजबूत कर सकते हैं, भले ही उनकी विचारधारा और राज्य स्तरीय गठबंधन अलग-अलग हों. दोनों गुटों के साथ आने से पवार परिवार के कोर वोट बैंक खासकर शुगर बेल्ट और सहकारिता क्षेत्र का विभाजन रुक जाएगा. महायुति या महाविकास अघाड़ी के जटिल सीट-बंटवारे के झगड़ों से मुक्त होकर दोनों पवार गुट स्थानीय समीकरणों के आधार पर मजबूत उम्मीदवार उतार पाएंगे.

शिंदे और बीजेपी हैरान

  1. इधर, शिंदे और बीजेपी ने हाल ही में आपसी मतभेद दूर कर मिलकर लड़ने का फैसला किया है. रविंद्र चव्हाण सहित शीर्ष नेताओं की हालिया बैठकों के बाद, बीजेपी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने आगामी स्थानीय निकाय चुनाव, जिसमें मुंबई और ठाणे नगर निगम चुनाव शामिल हैं, 'महायुति' के बैनर तले मिलकर लड़ने पर सहमति जताई है.  सीट-बंटवारे के जटिल मुद्दों को सुलझाने और अंतिम रूप देने के लिए जल्द ही एक संयुक्त समिति का गठन किया जाएगा. यह समिति दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों से मिलकर बनेगी और इसका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर तालमेल बिठाना, मतभेद सुलझाना और एक स्वीकार्य फार्मूला विकसित करना होगा, जिस पर बाद में शीर्ष नेतृत्व मुहर लगाएगा.
  2. लेकिन अजित पवार की नई चाल महायुति की एकता पर सीधा सवाल खड़ा करती है. अगर अजित पवार अपने सबसे मजबूत गढ़ में गठबंधन धर्म नहीं निभाते हैं और अपने चाचा के साथ जाते हैं तो यह सीधे तौर पर दर्शाता है कि महायुति पूरी तरह से एकजुट नहीं है. इस गठजोड़ के कारण पश्चिमी महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए अपने दम पर बढ़त बनाना मुश्किल दिखता है,
  3. अजित पवार का सहयोग जरूरी है. यदि अजित पवार विपक्षी चाचा के साथ हाथ मिलाते हैं, तो पश्चिमी महाराष्ट्र में BJP की मुश्किलें कई गुना बढ़ जाएंगी. क्या महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया, गुप्त राजनीतिक समीकरण जन्म ले रहा है, जो राज्य के दो सबसे बड़े गठबंधनों को भीतर से चुनौती देगा? ये स्थानीय चुनाव वो रंग दिखा रहे हैं, जो विधानसभा और लोकसभा में भी नहीं दिखे!

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