Shab-e-Barat 2022: गुनाहों से तौबा की रात 'शब-ए-बारात' आज, जानिए मुस्लिमों के लिए क्यों है खास

Shab-e-Barat Mubaraq: मुसलिम सुमदाय के लोग इस पूरी रात अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते है ऐसा माना जाता है कि इस रात दुआ और माफी दोनो ही अल्लाह मंजूर करते हैं और गुनाह से पाक कर देते हैं.

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2022 Shab-e-Barat: मुसलिम सुमदाय के लोग इस पूरी रात अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं.
नई दिल्ली:

Shab-e-Barat 2022. इस बार शब-ए-बारात (Shab-e-Barat Mubaraq) 18 मार्च के दिन मनाया जा रहा है. शब-ए-बारात मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए इबादत और फजीलत की रात होती है. शब-ए-बारात (Shab-e-Barat) दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें शब का अर्थ होता है रात और बरआत का अर्थ है बरी होना. मुस्लिम समुदाय में ये त्यौहार बेहद खास माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. शब-ए-रात (Shab-e-raat) को पाक रात माना जाता है और इस दिन मुसलमान समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं. साथ ही उनसे हुए अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. 

बता दें कि मुसलिम सुमदाय के लोग इस पूरी रात अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते है. ऐसा माना जाता है कि इस रात दुआ और माफी दोनो ही अल्लाह मंजूर करते हैं और गुनाह से पाक कर देते हैं. इस बार शब-ए-बारात शुक्रवार यानि की जुमा की रात को पड़ रहा है इस वजह से इसका महत्व और ज्यादा बढ़ गया है.

क्या होती है शब-ए-बारात की रात?
शब-ए-बारात की रात को मुसलिम समुदाय के लोग अपनों की कब्र पर जाते है और उनके हक में दुआएं मांगते है. वहीं मुसलमान औरतें इस रात घर पर रह कर ही नमाज पढ़ती हैं, कुरान की तिलावत करके अल्लाह से दुआएं मांगती हैं और अपने गुनाहों से तौबा करती हैं.इस्लाम धर्म के अनुसार इस रात अल्लाह अपनी अदालत में पाप और पुण्य का निर्णय लेते हैं और अपने बंदों के किए गए कामों का हिसाब-किताब करते हैं. जो लोग पाप करके जहन्नुम में जी रहे होते हैं, उनको भी इस दिन उनके गुनाहों की माफी देकर के जन्नत में भेज दिया जाता है. हालांकि इस दिन अल्लाह सबको माफी देते हैं लेकिन वो लोग जो मुसलमान होकर दूसरे मुसलमान से वैमनस्य रखते हैं, दूसरों के खिलाफ साजिश करते हैं और दूसरे की जिंदगी का हक छीनते हैं उनको अल्लाह कभी माफ नहीं करता है. 

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रोजा रखने की फजीलत
मुसलिम समुदाय के कुछ लोग शब-ए-बारात के अगले दिन रोजा भी रखते है. इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि रोजा रखने से इंसान के पिछली शब-ए-बारात से इस शब-ए-बारात तक के सभी गुनाहों से माफी मिल जाती है. लेकिन अगर रोजा ना भी रखा जाए तो गुनाह नहीं मिलता है लेकिन रखने पर तमाम गुनाहों से माफी मिल जाती है. 

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