सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन के परीक्षण के दौरान एक ट्रायल वॉलंटियर के बीमार होने के मामले पर NDTV के सवाल पर स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि ''मामला कोर्ट में है, टिप्पणी नहीं करेंगे. प्रक्रिया क्या है ये आपको बता दी. सारी प्रक्रिया का पालन हुआ है.'' चेन्नई के एक ट्रायल वॉलंटियर में 'वर्चुअल न्यूरोलॉजिकल ब्रेकडाउन' सहित कई साइड इफेक्ट दिखने के बाद इस वैक्सीन पर विवाद खड़ा हो गया है.
इससे पहले सीरम मामले पर राजेश भूषण ने कहा कि ट्रायल में शामिल होने वाले प्रतिभागी से पहले ही किसी प्रतिकूल घटना के बारे में लिखित सहमति ली जाती है. इंस्टीट्यूशनल एथिक्स कमेटी, जो कि एक स्वतंत्र कमेटी होती है, पूरी तरह से मॉनिटरिंग करती है और किसी भी प्रतिकूल घटना के होने पर 30 दिन के भीतर ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को रिपोर्ट करती है.
राजेश भूषण ने कहा कि डेटा सेफ्टी एंड मॉनिटरिंग बोर्ड (DSMB) होता है जो सरकार और वैक्सीन निर्माता से स्वतंत्र होता है. वह भी रोजाना मॉनिटर करता है. अगर कोई प्रतिकूल घटना होती है तो वह उसकी रिपोर्ट आगे भेजते है और यह भी सुझाव देते है कि ट्रायल को रोकने की जरूरत है या नहीं. न्यू ड्रग्स एंड क्लिनिक ट्रायल रूल के तहत ट्रायल होते हैं. इसके तहत कोई भी प्रतिकूल घटना होने पर ट्रायल के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर लिखित सूचना देते DCGI को हैं.
सीरम इंस्टीट्यूट का दावा, वैक्सीन सुरक्षित, वॉलंटियर के साथ हुई घटना वैक्सीन की वजह से नहीं हुई
उन्होंने बताया कि जब सभी तरह की रिपोर्ट ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को मिल जाती हैं तो यह देखा जाता है कि प्रतिकूल घटना और वैक्सीनेशन में क्या संबंध है. कारण क्या रहा घटना का? सभी तरह की रिपोर्ट मिलने के बाद ही DCGI ट्रायल को अगले फेस में जाने की अनुमति देते हैं. वर्तमान में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की वैक्सीन की ट्रायल तीसरे फेस में प्रवेश कर चुके है. यानी उसको इन सब कागज़ातों के विश्लेषण के बाद फेस तीन की अनुमति दी गई है.