Covishield के उत्‍पादन के तेजी के बीच सीरम इंस्‍टीट्यूट का 'ऐलान', ''हासिल किया टारगेट''

कोरोना वैक्‍सीन कोविशील्‍ड और कोवैक्‍सीन भारत के वैक्‍सीनेशन अभियान के मख्‍य आधार है. देश के टीकाकरण कार्यक्रम को देरी, नीतिगत बदलाव और आपूर्ति की बाधाओं के दौर से गुजरना पड़ा है.

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सीरम इंस्‍टीट्यूट ने कोविशील्‍ड वैक्‍सीन के उत्‍पादन को बढ़ाया है
नई दिल्ली:

कोरोना वैक्‍सीन Covishield का उत्‍पादन इस माह करीब 110 मिलियन डोज (11 करोड़ डोज) तक बढ़ाया गया है. कोरोना की तीसरी लहर की चुनौती के बीच देश में कोरोना वैक्‍सीन की आपूर्ति की समस्‍या के बीच सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के सूत्रों ने मंगलवार को यह जानकारी दी. सीरम इंस्‍टीट्यूट के सूत्रों ने NDTV को बताया, 'कोविड के 100 से 110 मिलियन डोज का उत्‍पादन करने का जुलाई का वादा पूरा कर लिया गया है.' गौरतलब है कि कोरोना वैक्‍सीन कोविशील्‍ड और कोवैक्‍सीन भारत के वैक्‍सीनेशन अभियान के मख्‍य आधार है. देश के टीकाकरण कार्यक्रम को देरी, नीतिगत बदलाव और आपूर्ति की बाधाओं के दौर से गुजरना पड़ा है.

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सूत्रों के अनुसार, कोविशील्‍ड के अलावा सीरम इंस्‍टीट्यूट इस समय Covovax (Novavax) और रूस के वैक्‍सीन स्‍पूतनिक V पर काम कर रहा है. Covovax वैक्‍सीन को अभी आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिलनी है. केंद्र सरकार को उम्‍मीद है कि वह वर्ष के अंत तक सभी व्‍यस्‍कों का टीकाकरण कर देगा. 

सीरम इंस्‍टीट्यूट सितंबर माह से रूस के स्‍पूतनिक वैक्‍सीन (Sputnik vaccine) का उत्‍पादन करेगा, इसके तहत हर वर्ष 300 मिलियन (30 करोड़) डोज का उत्‍पादन किया जाएगा. मात्रा के लिहाज से दुनिया में सबसे बड़े वैक्‍सीन निर्माता RDIF (Russian Direct Investment Fund) और सीरम इंस्‍टीट्यूट सितंबर से कंपनी में रूस की वैक्‍सीन स्‍पूतनिक का उत्‍पादन शुरू करेंगे.गौरतलब है कि कोरोना की तीसरी लहर को रोकने के लिए टीकाकरण जरूरी हैं कोवैक्सीन को लेकर भी आज एक बड़ी खबर सामने आई है.  कोवैक्सीन की निर्माता कंपनी भारत बायोटेक ने कहा है कि हम जल्द से जल्द विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी हासिल कर लेंगे. कंपनी का कहना है कि कोवैक्सीन के टीके की समीक्षा प्रक्रिया शुरू हो गई है. इसके आपातकालीन इस्तेमाल के लिए इसे मंजूरी दी जा सकती है. दरअसल, भारत में तो कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन के टीके को आपातकालीन मंजूरी के तहत इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में इसके उपयोग में अड़चन आ रही है,क्योंकि इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंजूरी नहीं दी है.

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