कोरोना काल में स्टाफ की नौकरी बचाने को स्कूल की अनोखी पहल, कैंपस में शुरू की 'ऑर्गेनिक खेती'

कोरोना की वजह से करोड़ों लोगों का रोजगार छिना और नौकरी चली गई लेकिन बेंगलुरु के एक स्कूल ने ये सुनिश्चित किया कि वहां किसी की नौकरी ना जाए. इसके लिए स्कूल कैंपस में ऑर्गेनिक खेती शरू की गई. शिक्षकों के साथ-साथ दूसरे स्टाफ ने भी मोर्चा संभाला, खासकर ड्राइवर, खानसामा और सफाई कर्मचारियों ने.

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बेंगलुरू:

कोरोना की वजह से करोड़ों लोगों का रोजगार छिना और नौकरी चली गई लेकिन बेंगलुरु के एक स्कूल ने ये सुनिश्चित किया कि वहां किसी की नौकरी ना जाए. इसके लिए स्कूल कैंपस में ऑर्गेनिक खेती शरू की गई. शिक्षकों के साथ-साथ दूसरे स्टाफ ने भी मोर्चा संभाला, खासकर ड्राइवर, खानसामा और सफाई कर्मचारियों ने. स्कूल कैंपस में आर्गेनिक फार्मिग करते. गोपाल राजस्थान के हैं और इस डे- बोर्डिंग स्कूल के रसोईया हैं. महामारी की वजह से वापस लौटने वाले थे लेकिन खेती बाड़ी ने नौकरी बचा ली. गोपाल ने बताया कि 'जब बच्चे नहीं थे तो खाना किसके लिए बनाता, वापसी की तैयारी हो ही चुकी थी. लेकिन इसी बीच खेती बाड़ी जब शुरू हुई तो नौकरी बच गई. सैलरी मिल रही है नहीं तो वापस जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.'

गोपाल की ही तरह यहां के सभी 80 नॉन टीचिंग स्टाफ ऑर्गेनिक फार्मिंग से जुड़े हुए हैं. ऑनलाइन क्लासेज की वजह से शिक्षक अब खेती बाड़ी से अलग कर दिए गए हैं. अब स्कूल की छत पर भी सब्ज़ियां लहलहा रही हैं और बग़ीचे में भी.

स्कूल की निदेशक सुशीला संतोष ने बताया, 'हमने सभी को भरोसे में लिया और कहा कि नौकरी बचाने का यह एक विकल्प है. अब जहां पहले अपार्टमेंट सब्जियां खरीदते थे वहीं अब हम पेशेंट्स को खाना यहां से सप्लाई कर रहे हैं. आर्गेनिक फल-सब्ज़ियां महंगी बिकती हैं. इसके साथ-साथ यहां उगाई गई इनकी फसल से अब खाना तैयार कर कुछ को मुफ्त और कुछ को लागत पर दिया जा रहा है. ख़ासकर कोविड मरीज़ों को.

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हालांकि इन सबसे पूरी सैलरी नहीं निकलती लेकिन कुछ भरपाई ज़रूर हो जाती है. आर्थिक नुकसान की भरपाई का स्कूल ने अलग तरीक़ा निकाला है. इससे किसी की नौकरी भी नहीं गई और परिवार भी खुश है - अच्छी सोच के साथ बेहतरीन पहल.

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