उम्मीदवारों का आपराधिक इतिहास प्रकाशित नहीं करने वाली पार्ट‍ियों के खिलाफ अवमानना याचिका पर SC सुनाएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की याचिका पर फैसला सुनाएगा. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच इस मामले पर फैसला सुनाएगी.

विज्ञापन
Read Time: 22 mins
सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटो
नई दिल्ली:

अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह निलंबित हो सकता है? क्या चुनाव आयोग ऐसी राजनीतिक पार्टी का चिन्ह निलंबित कर सकता है? दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने में विफल रहने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की याचिका पर फैसला सुनाएगा. जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की बेंच इस मामले पर फैसला सुनाएगी. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करने वाली राष्ट्रीय पार्टी के खिलाफ उल्लंघन के मद्देनज़र पार्टी के चुनाव चिन्ह को फ्रीज या निलंबित रखा जाए. आयोग ने यह सुझाव सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन के मामले में दिया है.

अमेज़न, फ्लिपकार्ट को SC से राहत नहीं, CCI जांच में दखल देने से इंकार

माकपा की ओर से वकील ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. हमारा भी विचार है कि राजनीति का अपराधीकरण नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने सीपीएम के वकील से कहा कि माफी से काम नहीं चलेगा. हमारे आदेशों का पालन करना होगा. वहीं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वकील ने निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए बिना शर्त माफी मांगी. चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि एनसीपी ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 26 उम्मीदवारों को और माकपा ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. बहुजन समाज पार्टी की ओर से वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि बसपा ने एक उम्मीदवार को निष्कासित कर दिया, जब पार्टी को पता चला कि वह अपने आपराधिक इतिहास का खुलासा करने में विफल रहा है और एक झूठा हलफनामा दायर किया है.

एमिकस क्यूरी के वी विश्वनाथन ने कहा कि सभी पक्षों को कानून के अनुसार अनिवार्य और बाध्य किया जाना चाहिए. उल्लंघन की स्थिति में चुनाव चिन्ह का निलंबन समयबद्ध हो सकता है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को अनिवार्य रूप से नेशनल पेपर, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर अपना ब्यौरा जारी करना होगा. फैसले में कहा गया था कि राजनीतिक पार्टियों को भी 48 घंटे के भीतर अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पर विवरण अपलोड करना अनिवार्य होगा. पार्टियों को चुनाव आयोग को 72 घंटे के भीतर ब्यौरा देना होगा. सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी, 2020 के आदेश में बिहार के चुनाव में उतरे उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के लिए व्यापक प्रकाशन का निर्देश दिया था. इन निर्देशों का पालन ना करने के खिलाफ दायर अवमानना ​​याचिकाओं पर अदालत ने सुनवाई की.

Advertisement

धनबाद जज मर्डर केस : SC का CBI को जांच की स्टेटस रिपोर्ट झारखंड HC में दाखिल करने का निर्देश

Advertisement

याचिकाओं में कहा गया है कि 2020 में बिहार चुनाव के दौरान दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया था. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दाखिल की गई है, जिसमें राजनैतिक दलों पर बिहार विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों का आपराधिक व अन्य ब्योरा सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी 2020 के आदेश का ठीक से पालन न करने का आरोप लगाया गया है. याचिका में चुनाव आयोग के अलावा भाजपा, कांग्रेस, राजद, जेडीयू और एलजेपी के पदाधिकारियों को पक्षकार बनाते हुए कार्यवाही की मांग की गई है. यह याचिका बृजेश सिंह ने दाखिल की है. इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, मुख्य निर्वाचन अधिकारी बिहार एचआर श्रीनिवास, जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी, राजद के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, एलजेपी के सिकरेट्री जनरल अब्दुल खालिक, कांग्रेस की बिहार चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष रणदीप सिंह सुरजेवाला और भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएस संतोष को प्रतिवादी बनाया गया है.

Advertisement

कथित मानहानि मामला : CJI की टिप्पणी के बाद CBI की कार्रवाई, मामले में 5 लोग गिरफ्तार

Featured Video Of The Day
Kuwait दौरे से India वापस लौटे PM Modi, हिट रहा दौरा! | Brazil में घर से टकराया Plane, 10 की मौत