इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने पूर्व उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी (डिप्टी सीएमओ) डॉ वाईएस सचान की जेल में संदिग्ध परिस्थिति में मौत के मामले में विशेष अदालत के सात जुलाई, 2022 के आदेश पर रोक लगाते हुए पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) कर्मवीर सिंह, तत्कालीन अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) विजय कुमार गुप्ता और अन्य को बड़ी राहत दी है.
उच्च न्यायालय ने डॉ सचान की जेल में मौत के मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत द्वारा बतौर अभियुक्त तलब किए गए तत्कालीन डीजीपी कर्मवीर सिंह, तत्कालीन अपर डीजीपी विजय कुमार गुप्ता एवं तत्कालीन जेलर भीमसेन मुकुंद के खिलाफ गत सात जुलाई को जारी तलबी आदेश पर रोक लगा दी है.
अदालत ने डॉ सचान की पत्नी मालती सचान को नोटिस जारी कर उनको इस मामले में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट, सीबीआई के सात जुलाई के आदेश पर अंतरिम रोक केवल याचिकाकर्ताओं के लिए रहेगी.
न्यायमूर्ति ए के श्रीवास्तव की पीठ ने उपरोक्त तीनों पूर्व अधिकारियों की ओर से अलग-अलग दाखिल याचिकाओं पर यह आदेश दिया. आदेश सोमवार को जारी किया गया. पीठ ने अपने आदेश में सीबीआई के अधिवक्ता अनुराग कुमार सिंह की दलील को आधार बनाया, जिसमें उन्होंने कहा था सीबीआई ने मामले की बारीकी से जांच की थी और डॉ सचान की मृत्यु को आत्महत्या पाए जाने के बाद ही क्लोजर रिपोर्ट लगाई गई थी.
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि मामले में सीबीआई जांच कर चुकी थी और डॉ सचान की मृत्यु को आत्महत्या पाते हुए क्लोजर रिपोर्ट भी दाखिल की गई थी. यह भी दलील दी गई कि सरकारी अधिकारी होने के कारण याचिकाकर्ताओं को तलब किए जाने से पूर्व शासन से संस्तुति प्राप्त करना अनिवार्य था.
उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सचान कथित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले में मुख्य आरोपी थे. यह घोटाला स्वास्थ्य केंद्रों को उन्नत करने के मद में जारी करोड़ों रुपये का गबन से संबंधित है. डॉ. सचान एनआरएचएम घोटाला मामले में न्यायिक हिरासत में थे और 22 जून 2011 को लखनऊ जेल में संदिग्ध परिस्थिति में उनकी मौत हो गई थी.
यहां की एक अदालत ने पूर्व डीजीपी सिंह, तत्कालीन एडीजी गुप्ता, तत्कालीन लखनऊ जेल के जेलर भीम सेन मुकुंद को एक दशक पहले जेल में डॉ सचान को मारने की साजिश रचने के आरोप में मुकदमे का सामना करने के लिए तलब किया था.
उनकी मौत के सिलसिले में 26 जून, 2011 को अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ थाना गोसाईगंज में प्राथमिकी दर्ज हुई थी. इसके बाद डॉ सचान की मौत की न्यायिक जांच शुरू हुई. 11 जुलाई 2011 को न्यायिक जांच रिपोर्ट में डॉ सचान की मौत को हत्या करार दिया गया. 14 जुलाई, 2011 को उच्च न्यायालय ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी. 27 सितंबर, 2012 को सीबीआई ने जांच के बाद डॉ सचान की मौत को आत्महत्या करार देते हुए अंतिम रिपोर्ट दाखिल किया.
डॉ सचान की पत्नी मालती सचान ने सीबीआई की अंतिम रिपोर्ट को चुनौती दी. सीबीआई की विशेष अदालत ने उनकी अर्जी स्वीकार करते हुए सीबीआई को अतिरिक्त कार्रवाई का आदेश दिया. नौ अगस्त, 2017 को सीबीआई ने फिर से अंतिम रिपोर्ट दाखिल किया. 19 नवंबर, 2019 को सीबीआई अदालत ने इसे भी खारिज कर दिया और मालती सचान की अर्जी को परिवाद के रूप में दर्ज किया.
मालती सचान ने अदालत में न्यायिक जांच रिपोर्ट के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मेडिकल एक्सपर्ट ओपिनियन और पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टरों के बयान के साथ ही सीबीआई द्वारा दर्ज बयानों का भी हवाला दिया. सात जुलाई 2022 को सीबीआई अदालत ने डॉ सचान की मृत्यु को हत्या का मामला मानते हुए, तत्कालीन डीजीपी सिंह, तत्कालीन एडीजीपी गुप्ता एवं लखनऊ जोन के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) सुबेश कुमार सिंह समेत लखनऊ जेल के तत्कालीन जेलर बीएस मुकुंद, डिप्टी जेलर सुनील कुमार सिंह, प्रधान बंदीरक्षक बाबू राम दूबे और बंदीरक्षक फहींद्र सिंह को हाजिर होने का आदेश दिया था.