फ़ाइल फोटो
- भारत में हर साल सड़क हादसों में लगभग डेढ़ लाख लोग मर जाते हैं, जिनमें अधिकांश मौतें लापरवाही और रिश्वतखोरी के कारण होती हैं
- मशहूर धावक फौजा सिंह की 114 वर्ष की उम्र में जालंधर-पठानकोट हाईवे पर हुए सड़क हादसे में मौत हो गई, जिसमें कार चालक फरार हो गया
- भारत में लगभग तिहाई ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी हैं, जिससे अनाड़ी और नियमों से अनजान ड्राइवर सड़क सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनते हैं
इस देश की सड़कों पर हर साल कई लोगों की जान जाती है और उसी का आंकड़ा हमने आपको अपने वीडियो की शुरुआत में दिखाया है. हर साल इस देश की सड़कों इतनी मौतें हो रही हैं और लाखों लोग बेवजह इनमें मारे जा रहे हैं, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. ये फर्क पड़े और इन सारी मौतों को रोका जा सके, इसलिए हम ये रिपोर्ट लेकर आए हैं.
हथियारों से भी खतरनाक सड़क हादसे
मशहूर धावक फौजा सिंह की भी इसी तरह के एक सड़क हादसे में मौत हो गई. वो 114 साल के थे और उनका जन्म वर्ष 1911 में पंजाब के जालंधर में हुआ था. उन्होंने दोनों विश्व युद्ध देखे, भारत की आजादी का आंदोलन देखा, देश की आजादी देखी और बंटवारा देखा. संविधान को लागू होते हुए देखा. भारत-पाकिस्तान के सभी युद्ध देखे. भारत में बदलते हुए समय और सरकारों को देखा और यहां तक जीतेजी उन्हें अपने बेटों की मौत को भी देखा लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि 114 साल की उम्र में उनकी मौत एक सड़क हादसे में होगी और वो भी ऐसा सड़क हादसा जिसे टाला जा सकता था.
सड़क हादसे में कैसे मौत हुई?
फौजा सिंह दोपहर करीब तीन बजे अपने घर से निकलकर जालंधर-पठानकोट हाइवे के दूसरी ओर एक ढाबे पर जा रहे थे लेकिन तभी एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मारी और इसके बाद अस्पताल में इलाज के दौरान फौज सिंह की मौत हो गई. जिस कार चालक ने उनकी जान ली, वो भी मौके से फरार हो गया और उसने फौजा सिंह को अस्पताल ले जाकर उनकी जान बचाने के बारे में एक बार नहीं सोचा. वो खुद को बचाना चाहता था इसलिए उसने फौजा सिंह को सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया. हमारे देश में 74 फीसदी मामलों में यही होता है और लोग सड़क हादसे में दर्द से तड़पते लोगों की कोई मदद नहीं करते. हम एक बार के लिए अपने मोबाइल फोन से उसका वीडिया बना लेते हैं लेकिन उस व्यक्ति की जान बचाना अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझते और फौजा सिंह के साथ भी यही हुआ. वैसे होता तो ये हज़ारों लोगों के साथ है लेकिन आज फौजा सिंह की मौत से इस कड़वे सच को बताने का एक मौका मिल गया है.
फौजा सिंह कौन थे
114 साल के फौजा सिंह का जन्म 1911 में पंजाब के जालंधर में हुआ था और एक धावक के रूप में उनकी असली यात्रा भी एक हादसे के साथ शुरू हुई थी. 1994 में जब उनके बेटे की मौत हुई और मौत का ये सदमा उन्हें बार-बार दर्द दे रहे था, तब उन्होंने 83 साल की उम्र में दौड़ना शुरू किया. इसके बाद उन्होंने कई रिकॉर्ड बनाए और 2003 में 92 साल की उम्र में उन्होंने टोरंटो मैराथन में 5 घंटे 40 मिनट के समय में पूरी की और दुनिया उन्हें "टर्बन टॉरनेडो'' कहने लगी और ब्रिटेन जैसे देश ने उन्हें अपनी नागरिकता भी दे दी.
लेकिन कहते हैं कि भारत की मिट्टी में एक जादू है. फौजा सिंह इस मिट्टी से प्यार करते थे इसलिए वो जालंधर में अपने पैतृक गांव में आकर रहने लगे लेकिन इस सड़क हादसे ने 114 साल की उम्र में उनरी जान ले ली. ये दुनिया में शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा, जब इतनी उम्र का एक धावक इस तरह से सड़क हादसे में मारा गया हो.
ये घटना हमें यही सिखाती है कि सड़क हादसों को हल्के में लेना बंद कर दीजिए. भारत में हर साल 1 लाख 65 हज़ार, हर दिन साढ़े 450 और हर मिनट 7 से ज्यादा लोग सड़क हादसों में मर जाते हैं. जो लोग अपनों को सड़क हादसों में खोते हैं, उनके लिए अपने बच्चों की पढ़ाई और रहने-खाने का खर्च उठाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है और आपको पता है, ये सारे सड़क हादसे लापरवाही और रिश्वतखोरी की वजह से होते हैं.
सड़क हादसों का सच
जो लोग जेब में घूस रखकर चलते हैं और हेलमेट नहीं लगाते, ऐसे लोगों की सबसे ज्यादा मौत होती है. इसके बाद Wrong Side Driving, Overspeeding और अनाड़ी ड्राइवर के कारण 80 हज़ार से ज्यादा लोग मारे जाते हैं. बहुत सारे लोगों ने तो कार को भी कारोबार बना दिया है. कार में शराब पीकर जो लोग गाड़ियां चलाते हैं, वो लोग 2 हज़ार लोगों की जान ले लेते हैं और फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस का तो आप पूछिए मत. आज जिस तरह बिहार में चुनाव आयोग नई वोटर लिस्ट बनाने के लिए वोटर आईकार्ड को नागरिकता का पर्याप्त सबूत नहीं मान रहा, वैसे ही भारत में बहुत सारे ड्राइविंग लाइसेंस का गाड़ी चलाने से कोई लेना-देना ही नहीं है. आपको यकीन नहीं होगा कि भारत में हर तीसरा ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी है और ऐसे ऐसे लोगों ने ड्राइविंग लाइसेंमस बनवा रखे हैं, जो अनाड़ी ड्राइवर हैं और जो ट्रैफिक नियमों के बारे में कुछ नहीं जानते.
भारत में पूरी दुनिया के सिर्फ एक पर्सेंट वाहन हैं लेकिन इसके बावजूद दुनिया में सड़क हादसों से हर 100 में से 11 मौतें भारत में होती हैं और जब कोई रईस बाप की औलाद किसी आम आदमी को कुचल देता है तो हमारा कानून और हमारी अदालतें उससे सड़क हादसों पर एक निबंध लिखकर छोड़ने के लिए कह देती हैं. आपको याद होगा पुणे में पोर्शे गाड़ी से दो लोगों को कुचलने वाले एक रईसजादे को ऐसी ही सज़ा हुई थी और ये लिस्ट बहुत लम्बी है.
पिछले हफ्ते ही दिल्ली में एक ऑडी कार फुटपाथ पर सो रहे पांच लोगों पर चढ़ गई थी और बाद में ये बात उठी थी कि ये लोग फुटपाथ पर क्यों सो रहे थे.
सोचिए भारत में गरीब फुटपाथ पर नहीं सो सकता लेकिन अमीर फुटपाथ पर गाड़ी चला सकते हैं और इसकी वजह यही है कि हमने सड़क हादसों को रोकने का एक ऐसा सिस्टम बनाया है, जिसमें बात तो जुर्माने लेकर जान बचाने की होती है लेकिन हकीकत में जाने जाती रहती हैं और जुर्माने से पैसे से सरकारी खजाना भरता रहता है.
जब ट्रैफिक चालान से 2 हज़ार करोड़ रुपये का भी जुर्माना नहीं मिलता था, तब सड़क हादसों में 50 हज़ार से भी कम मौतें होती थीं लेकिन आज जब ट्रैफिक नियमों के चालान से एक साल में 12 हज़ार करोड़ रुपये की आमदनी होती है तब सड़कों हादसों में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग मर जाते हैं. ये व्यवस्था बदलती ही नहीं है और फौजा सिंहजी जैसे लोग मरते हैं तो कम से कम सड़क हादसों की बात भी हो जाती है लेकिन जब एक गरीब, लोअर मिडिल क्लास और मिडिकल क्लास परिवार का कोई व्यक्ति इन सड़क हादसों में मरता है तो ये किसी को परेशान नहीं करता. सब सोचते हैं कि भगवान को यही मंज़ूर होगा लेकिन हकीकत में भगवान नहीं बल्कि इंसान इन मौतों के लिए जिम्मेदार है.
फौजा सिंह की आत्मा दुखी होगी
फौजा सिंह को ब्रिटेन की नागिरकता मिल गई थी लेकिन वो भारत में इसलिए रह रहे थे क्योंकि वो पंजाब में नशा मुक्ति के लिए युवाओं को प्रेरित करना चाहते थे और उनकी आखिरी इच्छा यही थी कि पंजाब के युवा नशे को पूरी तरह से छोड़ दें. लेकिन आज उनकी आत्मा काफी दुखी होगी. क्योंकि एक तो उन्होंने सड़क हादसे में अपनी जान गंवाई और दूसरा जिस पंजाब को वो नशा मुक्त बनाने के लिए भारत आए, वहां एक नया घोटाला हो गया. पंजाब में नशा छुड़ाने के लिए बुप्रेनॉर्फिन और नालोक्सोन जैसी जो दवाइयां नशा मुक्ति केंद्रों पर सस्ते में बेची जाती हैं, वही दवाइयां अब ब्लैक में ज्यादा पैसों में बेची जा रही हैं और नशा छुड़ाने वाली दवाइयों से पंजाब के बहुत सारे युवा नशा कर रहे हैं और ये उड़ता पंजाब देखकर शायद फौजा सिंह की आत्मा बहुत दुखी होगी और ये सोचेगी कि काश वो LONDON में ही रहते तो कम से कम सड़क हादसे में तो दर्दनाक मौत नहीं मरते.
आखिर में सड़क हादसों का समाधान
सड़कों को सिर्फ चालान के पैसों से रोका नहीं जा सकता. इसके लिए ज़रूरी है कि घूसखोरी बंद हो, अच्छी सड़कें बनाई जाएं, ट्रैफिक नियमों का पालन कराने के लिए ट्रैफिक विभाग अपना काम ईमानदारी से करे. Overspeeding के लिए लगाए गए सिर्फ चालान काटने तक सीमित ना रहें बल्कि इन कैमरों से Overspeeding करने वाली गाड़ियों को रोका जाए. उनकी निगरानी हो. लोग भी जागरुक बने. हेलमेट और सीट बेल्ट लगाकर ही सड़कों पर निकलें. ये ना सोचें कि रास्ते में पुलिसवाले को प्रसाद चढ़ाकर बच जाएंगे. और आखिरी बात अनाड़ी ड्राइवर्स को ड्राइविंग लाइसेंस मिलना अब बंद हो जाना चाहिए और ये तभी मुमकिन है, जब ड्राइविंग लाइसेंस बनाने वाले परिवहन विभाग में रिश्वतखोरी रुकेगी.