अपनी प्रशंसा से खुश नहीं था RSS, धनखड़ को बता दिया था- पद की मर्यादा का रखें ध्यान

जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति रहते हुए कई बार आरएसएस का गुणगान किया था. उन्होंने राज्य सभा में यहां तक कह डाला था कि आरएसएस की आलोचना करना संविधान के खिलाफ है. उनके ये बयान आरएसएस के स्तुतिगान के रूप में देखे गए थे.

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RSS नेताओं ने जगदीप धनखड़ को याद दिलाया गया था कि वे संवैधानिक पद पर आसीन हैं. (फाइल)
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  • सूत्रों के मुताबिक, RSS अपनी प्रशंसा करने वाली जगदीप धनखड़ की टिप्पणियों से प्रसन्न नहीं था.
  • जगदीप धनखड़ ने राज्य सभा में यहां तक कह डाला था कि RSS की आलोचना करना संविधान के खिलाफ है.
  • उन्होंने बताया कि वे पिछले 25 वर्षों से आरएसएस के प्रशंसक हैं और इसकी तुलना उन्‍होंने एकलव्य से की थी.
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नई दिल्‍ली :

जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) के उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र के बाद उनसे कार्यकाल से जुड़ी कई विवादास्पद बातें धीरे-धीरे सामने आ रही हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) को लेकर उनकी टिप्पणियों पर भी विवाद हुआ था. सूत्रों ने बताया कि आरएसएस अपनी प्रशंसा करने वाली धनखड़ की टिप्पणियों से प्रसन्न नहीं था और यह बात उन्हें बता भी दी गई थी.

जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति रहते हुए कई बार आरएसएस का गुणगान किया था. उन्होंने राज्य सभा में यहां तक कह डाला था कि आरएसएस की आलोचना करना संविधान के खिलाफ है. उनके ये बयान आरएसएस के स्तुतिगान के रूप में देखे गए थे. तब यह प्रश्न भी उठा था कि क्या वे ऐसा आरएसएस के करीब जाकर राष्ट्रपति बनने का अपना रास्ता साफ करने के लिए कर रहे थे.

धनखड़ ने खुद को बताया था RSS का प्रशंसक

यह घटना पिछले साल अगस्त की है जब समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन ने राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) के अध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल उठाया था, जिसमें RSS से जुड़ाव का मुद्दा उठाया गया. इस पर धनखड़ ने कहा था कि RSS की आलोचना करना संविधान के खिलाफ है और यह संगठन राष्ट्रीय कल्याण व संस्कृति के लिए योगदान देता है.

इससे पहले, वे एक कार्यक्रम में कह चुके थे कि वे पिछले 25 वर्षों से RSS के प्रशंसक रहे हैं. उन्होंने खुद की तुलना एकलव्य से की थी, जो समर्पण का प्रतीक है और यह जताया कि RSS से औपचारिक रूप से जुड़ न पाने का उन्हें अफसोस है.

संघ को अनावश्‍यक लगे थे धनखड़ के बयान

हाल ही में आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना का मुद्दा उठाया था और इसमें आपातकाल के दौरान जोड़े गए सेक्यूलर और समाजवादी शब्दों को हटाने की बात कही थी. धनखड़ ने इस पर भी अपनी राय रखी थी. उन्होंने कहा था कि प्रस्तावना माता-पिता की तरह है, जिसे बदला नहीं जा सकता. यह बयान भले ही RSS की मांग से अलग था, लेकिन उन्होंने इमरजेंसी के दौरान प्रस्तावना में बदलाव पर दुख जताया, जो संघ के दृष्टिकोण से मेल खाता है.

सूत्रों के मुताबिक संघ के वरिष्ठ नेताओं की ओर से धनखड़ को यह अवगत करा दिया गया था कि संघ के बारे में दिए गए उनके बयान अनावश्यक थे. उन्हें याद दिलाया गया था कि वे संवैधानिक पद पर आसीन हैं.

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