भागवत का गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा में जोड़ने पर जोर, जानें डिग्रीधारी बेरोजगारों की फौज पर क्या बोले?

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिए, न कि मौजूदा व्यवस्था की जगह उसे लागू करना चाहिए. गुरुकुल शिक्षा का मतलब आश्रम में जाकर रहना नहीं है.

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  • भागवत ने कहा कि वह संस्कृत को अनिवार्य बनाने के पक्ष में नहीं, लेकिन परंपरा-इतिहास को समझना महत्वपूर्ण है.
  • संघ प्रमुख ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा में जोड़ना चाहिए, न कि मौजूदा व्यवस्था की जगह लागू करें.
  • उन्होंने कहा कि हमें पढ़ाई नौकरी करने के लिए है, ये मानसिकता काफी हद तक बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार है.
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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुकुल शिक्षा को देश में मुख्यधारा की शिक्षा के साथ जोड़ने का आह्वान करते हुए गुरुवार को कहा कि गुरुकुल शिक्षा का मतलब आश्रम में रहना नहीं है, बल्कि देश की परंपराओं के बारे में सीखना है. पिछले कुछ समय में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की बढ़ती संख्या और डिग्रीधारी बेरोजगारों की फौज तैयार होने से जुड़े सवाल का भी उन्होंने जवाब दिया. 

गुरुकुल शिक्षा का मतलब आश्रम में रहना नहीं

आरएसएस के 100 साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम के तीसरे दिन एक सवाल के जवाब में भागवत ने कहा कि वह संस्कृत को अनिवार्य बनाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन देश की परंपरा और इतिहास को समझना महत्वपूर्ण है. वैदिक काल के प्रासंगिक 64 पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए. 

उन्होंने कहा कि गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा में शामिल किया जाना चाहिए, न कि मौजूदा व्यवस्था की जगह उसे लागू करना चाहिए. मुख्यधारा की शिक्षा को गुरुकुल शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए. आठवीं कक्षा तक की शिक्षा छात्रों की मातृभाषा में दी जाती है... इसलिए गुरुकुल शिक्षा का मतलब आश्रम में जाकर रहना नहीं है, इसे मुख्यधारा से जोड़ना होगा. उन्होंने इसके लिए फिनलैंड का भी उदाहरण दिया. 

नई शिक्षा नीति सही दिशा में कदम

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को सही दिशा में उठाया गया सही कदम बताते हुए भागवत ने कहा कि हमारे देश में शिक्षा प्रणाली बहुत पहले ही नष्ट हो गई थी. नई शिक्षा प्रणाली इसलिए शुरू की गई क्योंकि हम हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों के गुलाम रहे, जो उस समय के शासक थे. वे इस देश पर शासन करना चाहते थे, इसका विकास नहीं करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने सभी प्रणालियां इस बात को ध्यान में रखते हुए बनाईं कि हम इस देश पर कैसे शासन कर सकते हैं... लेकिन अब हम आजाद हैं. इसलिए हमें केवल देश नहीं चलाना है, हमें लोगों को चलाना है.

बच्चों को अतीत की शिक्षा जरूरी 

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि बच्चों को अतीत के बारे में सभी आवश्यक जानकारी दी जानी चाहिए ताकि उनमें गर्व पैदा हो सके कि हम भी कुछ हैं, हम भी कुछ कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि हमने यह कर दिखाया है. यह सब बदलना ही था. पिछले कुछ सालों में थोड़ा बहुत बदलाव आया है, अभी और बदलाव लाना है.

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डिग्रीधारी बेरोजगारों की फौज पर क्या बोले?

पिछले कुछ समय में प्राइवेट यूनिवर्सिटी की बढ़ती संख्या और डिग्रीधारी बेरोजगारों की फौज तैयार होने से जुड़े सवाल पर आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमें पढ़ाई नौकरी करने के लिए है, ये मानसिकता बन गई है और यही बेरोजगारी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है. कई लोग सोचते हैं कि ये काम छोटा है, वो काम तुच्छ है. ये बात जब से लोगों के मन में आई है, काम की प्रवृत्ति घटी है. 

कमाना मतलब नौकरी की मानसिकता बदलें

उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मेरे साथ कई छात्रों ने कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाई की थी, लेकिन बाद में उन्होंने खेती-बाड़ी नहीं की, बैंक में क्लर्क बन गए. हमारे यहां लोगों में ये धारणा बन गई है कि कमाना मतलब नौकरी करना, वो भी सरकारी नौकरी हो तो अच्छा है. ये मानसिकता बन गई है कि मेरे घर के पास नौकरी मिले तो अच्छा है. लेकिन इस मानसिकता को बदलना चाहिए. 

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संघ प्रमुख ने कहा कि श्रम प्रतिष्ठा जरूरी है. मेहनत से काम करने वाले को सम्मान देना जरूरी है. आजीविका का मतलब नौकरी, ये भ्रम दूर करना होगा. हम नौकरी करने वाले नहीं, नौकरी देने वाले बनें तो भारत एक उच्च मानदंड स्थापित कर सकता है. 

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