चार साल बाद होगी 'हर की पौड़ी' पर 'गंगा की वापसी', जानें, हैरान करने वाला उत्तराखंड सरकार का काम

रविवार 22 नवंबर को उत्तराखंड सरकार ने ऐलान किया कि कांग्रेस सरकार ने जो 2016 में शासनादेश जारी किया था जिसमें हर की पौड़ी से बहने वाली गंगा नदी का नाम बदलकर इस्केप चैनल किया गया था, उस शासनादेश को निरस्त कर दिया गया है.

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हरीश रावत सरकार ने हर की पौड़ी से पहले और हर की पौड़ी के बाद बहने वाली करीब 3 किलोमीटर गंगा नदी का नाम बदलकर 'इस्केप चैनल' कर दिया था.

हरिद्वार:

अगर हम आपसे कहें कि हरिद्वार (Haridwar)  में हरकी पौड़ी (Har ki Pauri) पर चार साल बाद गंगा नदी (Ganga River) की वापसी होने जा रही है, तो आप कहेंगे कि ये क्या मजाक है? ऐसा कैसे हो सकता है? हरकी पौड़ी पर तो जाने कब से गंगा बह रही है! तो ऐसे में हर की पौड़ी पर 4 साल बाद गंगा नदी की वापसी का क्या मतलब है?

दरअसल, दिसंबर 2016 में उत्तराखंड में जब कांग्रेस की हरीश रावत सरकार सत्ता में थी तो उस दौरान एक शासनादेश जारी किया गया था.  शासनादेश यानी गवर्नमेंट ऑर्डर जिसमें कहा गया कि 'सर्वानंद घाट से श्मशान घाट खड़खड़ी तक, वहां से हरकी पौड़ी होते हुए डामकोठी तक और डामकोठी के बाद सतीघाट कनखल से होते हुए दक्ष मंदिर तक बहने वाले भाग को इस्केप चैनल माना जाता है.' यानी तत्कालीन उत्तराखंड सरकार ने हर की पौड़ी से पहले और हर की पौड़ी के बाद बहने वाली करीब 3 किलोमीटर गंगा नदी का नाम बदलकर 'इस्केप चैनल' कर दिया था.

साल 2017 में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई और मुख्यमंत्री हरीश रावत खुद अपना चुनाव भी दो-दो जगह से हार गए जिसमें 1 सीट हरिद्वार ग्रामीण की शामिल थी. इसके बाद एक तरफ जहां हरीश रावत ने अपनी सरकार की तरफ से किए गए इस काम के लिए माफी मांगी, वहीं बीजेपी नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत जब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर 17 दिन बाद हरिद्वार आए तो उन्होंने ऐलान किया कि कांग्रेस की सरकार ने गंगा नदी का नाम बदलने का जो गलत काम किया था उसको उनकी सरकार तुरंत सुधारने का काम करेगी.

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लगभग साढ़े 3 साल का समय बीत गया. इस दौरान हरिद्वार में कुंभ मेला 2021 की तैयारियां शुरू हो गईं. हरिद्वार के पुरोहित समाज के लोग हरकी पौड़ी पर बहने वाली धारा का नाम इस्केप चैनल से बदलकर फिर से गंगा करने की मांग करने लगे. हर की पौड़ी का प्रबंधन करने वाली संस्था श्री गंगा सभा भी लगातार सरकार से मांग करती रही कि हर की पौड़ी पर बहने वाली धारा का नाम इस्केप चैनल से बदलकर गंगा किया जाए.

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आखिरकार, रविवार 22 नवंबर को उत्तराखंड सरकार ने ऐलान किया कि कांग्रेस सरकार ने जो 2016 में शासनादेश जारी किया था जिसमें हर की पौड़ी से बहने वाली गंगा नदी का नाम बदलकर इस्केप चैनल किया गया था, उस शासनादेश को निरस्त कर दिया गया है. उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री और हरिद्वार से विधायक मदन कौशिक ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बैठक करने के बाद मीडिया को बताया कि 'इस्केप चैनल का जो निर्णय था आज मुख्यमंत्री ने उसे रद्द कर दिया है और अगले दो-तीन दिन में इसका शासनादेश जारी हो जाएगा.'

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इसी बैठक में श्री गंगा सभा के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया था. श्री गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ ने बताया, 'मुख्यमंत्री ने बताया है कि साल 2016 का शासनादेश निरस्त कर दिया गया है और अब फिर से हर की पौड़ी से बहने वाली मां गंगा का नाम कागजों में भी गंगा होगा. लगभग साढ़े 3 साल से जो हम मांग कर रहे थे वह आज मुख्यमंत्री ने पूरी कर दी है.'

हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने अभी तक लिखित रूप में यह आदेश जारी नहीं किया है लेकिन अगर यह मान भी लें कि सरकार मौखिक ऐलान के बाद कुछ दिनों में लिखित आदेश भी जारी कर देगी तो भी कमाल की बात यह है कि पिछले 4 साल से हरकी पौड़ी पर गंगा नदी में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं को यह पता ही नहीं था कि वह गंगा नदी में नहीं किसी चैनल में डुबकी लगा रहे हैं.

हरकी पौड़ी का महत्व:
हरिद्वार दुनिया भर के हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और आस्था के इस केंद्र की धुरी है हरकी पौड़ी है. मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद यहीं पर अमृत की बूंदें छलकी थीं. इसलिए हर 12 साल में यहां पर कुंभ का मेला लगता है. मान्यता यह भी है कि भगवान शंकर के चरण यहीं पड़े थे. जन्म से लेकर मरण तक के तमाम संस्कार इस तट पर होते हैं. इस जगह की मान्यता और गंगा नदी के कारण लोग मोक्षदायिनी मान वो यहां डुबकी लगाते हैं.

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पिछले 4 साल से जो लोग यहां पर डुबकी लगा रहे हैं उन्हें इस बात का बिल्कुल एहसास नहीं था कि जिसको वह मां गंगा मान रहे हैं, कागजों में उत्तराखंड की सरकार ने उसका नाम इस्केप चैनल कर दिया था. इस भारतवर्ष में गंगा को मां का दर्जा दिया गया, उसी भारतवर्ष में इसका नाम बदल दिया गया और वह भी हर की पौड़ी पर बहने वाली गंगा का. जरा सोच कर देखिए कि क्या कोई अपनी मां का नाम भी बदल सकता है?

क्यों बदला था गंगा नदी का नाम?
गुरुकुल कांगड़ी से रिटायर्ड हुए प्रोफ़ेसर बीडी जोशी बीते 4 दशकों से गंगा नदी पर काम कर रहे हैं. प्रोफेसर जोशी खुद हरिद्वार के नागरिक भी हैं. प्रो जोशी बताते हैं कि हरकी पौड़ी पर बहने वाली गंगा का नाम इसलिए बदला गया ताकि उसके आसपास निर्माण कराया जा सके. दरअसल, नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल का आदेश है कि गंगा के दोनों ओर 200 मीटर के दायरे में कोई निर्माण नहीं हो सकता. NGT का आदेश बदला नहीं जा सकता था इसलिए निर्माण के लिए नदी का ही नाम बदल दिया गया. उसे एक इस्केप चैनल बता दिया गया... ताकि नदी के लिए बने क़ानून उस पर लागू न हो सकें.

प्रो बीडी जोशी के मुताबिक 'जब एनजीटी ने उत्तराखंड सरकार से यह आग्रह किया कि आप गंगा नदी के किनारे जिसको रिवर बेड कहते हैं उससे 200 मीटर दाएं या बाएं तरफ किसी प्रकार का कोई कंस्ट्रक्शन नहीं होने देंगे तो इससे हरिद्वार क्षेत्र के विशेष रूप से हरकी पौड़ी के किनारे आश्रम, मंदिर, धर्मशालाएं बने हैं उनको निश्चय ही कष्ट होगा क्योंकि इससे जो उनके दैनिक रोजगार हैं वह प्रभावित होते थे तो इससे मुक्ति पाने के लिए ही तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने ये आदेश जारी करवाया है कि हर की पौड़ी पर जो गंगा है वो इस्केप चैनल के ऊपर बसी हुई है'

इस बीच बीते चार साल में नदी के दोनों ओर जमकर निर्माण करवा दिया गया. हरकी पौड़ी से डामकोठी के बीच अलकनंदा घाट पर एनडीटीवी की टीम पहुंची तो साफ दिखाई दिया कि एक तरफ खुद उत्तर प्रदेश सरकार का गेस्ट हाउस बन रहा है तो नदी के दूसरी तरफ होटलों का निर्माण कार्य चल रहा है. बीते 4 सालों में गंगा नदी के किनारों पर बहुत सा निर्माण हो चुका है और बहुत सा अभी भी जारी है सिर्फ इसलिए क्योंकि उत्तराखंड सरकार ने NGT के निर्देशों से बचने के लिए गंगा नदी का नाम ही बदल दिया.

क्या है इस्केप चैनल का मतलब?
सोचकर देखिये गंगा जी को जो इस्केप चैनल का नाम दिया गया उसका मतलब क्या है? कोई इसका मतलब सिंचाई नहर बताता है, किसी ने बताया बचाव वाला प्रवाह जो प्रमुख गंगा नदी और नहर को जोड़ रहा है, तो कोई इसका मतलब एक नहर बताता है.

वैसे कहने को आप यह जरूर कह सकते हैं कि हमारे लिए कल भी गंगाजी गंगाजी थी आज भी गंगा जी हैं और कल भी गंगाजी रहेंगी. किसी सरकार के आदेश पर हमें श्रद्धा पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन सोच कर देखिए एनजीटी ने अगर कुछ नियम और कायदे बनाए हैं तो कुछ सोच समझकर ही बनाए होंगे. अगर इन नियम और कायदों का पालन नहीं होगा तो जिन नदियों के प्रति हम श्रद्धावान हैं उनके साथ कोई भी कैसा भी व्यवहार कर सकता है खिलवाड़ कर सकता है और यह पर्यावरण को तो नुकसान करता ही है.