जलवायु परिवर्तन, अस्थिर ढलानों और बाढ़ क्षेत्रों पर अनधिकृत निर्माण और हरित आवरण को हटाने से हिमालय क्षेत्र में आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की 2023 हिमाचल प्रदेश बाढ़ पर एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. पश्चिमी विक्षोभ और दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के कारण हुई मूसलाधार बारिश से जुलाई और अगस्त में उत्तर भारत में व्यापक पैमाने पर बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं सामने आई. भारी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश में कई नदियों का जलस्तर बढ़ गया, जिससे 12 जिलों के शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में भयानक स्थिति हो गई.
एनडीएमए ने कहा कि हिमाचल में 5,748 भूस्खलन, 45 बार बादल फटने (एक घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश) और 83 बार बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा. इसने कहा कि इस आपदा के कारण 22,879 घर प्रभावित हुए और लगभग 500 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 8,665 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
रिपोर्ट के अनुसार 7-11 जुलाई, 2023 के दौरान हिमाचल प्रदेश में 223 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो इस अवधि के लिए सामान्य मात्रा 41.6 मिमी से 436 प्रतिशत अधिक है. मानसून के मौसम (जून-सितंबर) के दौरान राज्य में औसतन 734.4 मिमी बारिश होती है. इसके अनुसार शहरीकरण और पर्यटन अभियान की वजह से तेजी से निर्माण गतिविधियां बढ़ी हैं. अक्सर, इन निर्माण गतिविधियों के दौरान आवश्यक दिशानिर्देशों की अनदेखी की जाती है और अस्थिर ढलानों या बाढ़ क्षेत्रों पर प्रतिष्ठान बनाए जाते हैं.
एनडीएमए ने कहा कि पर्यटन और बढ़ती आबादी के कारण नदी तटों और घाटियों के आसपास बस्तियों की संख्या बढ़ने और अचानक आने वाले बाढ़ के दौरान कई लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाता है. जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, एनडीएमए ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में दो प्रमुख क्षेत्र भारतीय हिमालय और तटीय भारत विशेष रूप से जलवायु-प्रेरित आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं.
इसमें कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश में आपदा ऐसी घटनाओं के संकेतक के रूप में कार्य करती है. एनडीएमए ने कहा कि हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एचपीएसडीएमए) को जलवायु संबंधी जोखिमों का अनुमान लगाना चाहिए और उन्हें ध्यान में रखना चाहिए. रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश की मौसम भविष्यवाणी और प्रारंभिक चेतावनी क्षमताएं ‘‘सीमित'' हैं और राज्य में वर्तमान में केवल 31 मौसम स्टेशन संचालित हैं.
एजेंसी ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि राज्य में बांध पूर्वानुमानित-आधारित मॉडलिंग पर काम किया जाए और बाढ़ की चेतावनी के लिए जलग्रहण क्षेत्रों से तीन से पांच दिन के मौसम के डेटा को ध्यान में रखें. राज्य के पर्यावरणविद् गुमान सिंह ने कहा, ‘‘हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना सीखना होगा. मुद्दा इस तथ्य में निहित है कि दिशानिर्देश अक्सर तैयार किए जाते हैं लेकिन शायद ही कभी लागू किए जाते हैं. ये अनधिकृत निर्माण सरकारी अधिकारियों की जनता के साथ मिलीभगत के परिणामस्वरूप होते हैं. हमें नई तकनीक और नीतियों की आवश्यकता है, और आम जनता के लिए भी अधिक जागरूक होना महत्वपूर्ण है.''