देश में खुदरा महंगाई मई महीने में थोड़ी गिरावट के साथ 7.04 फीसदी पर रही है. जो अप्रैल 2022 में 7.79 फीसदी रही थी. हालांकि सात फीसदी की खुदरा महंगाई भी आम आदमी की जेब पर भारी पड़ रही है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों के साथ खाद्य पदार्थों, दूध और परिवहन की बढ़ती लागत से आम आदमी के लिए महीने का खर्च काफी बढ़ा है. उधर, रिजर्व बैंक ने महंगाई को काबू में करने के लिए ब्याज दरों में करीब एक फीसदी की बढ़ोतरी एक माह के भीतर कर दी है. इससे होम लोन, पर्सनल लोन या वाहन के लिए कर्ज लेने वालों की ईएमआई भी बढ़ी है.
अप्रैल में इनफ्लेशन का स्तर आठ साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया था. इससे पहले मई 2014 में महंगाई 8.33 फीसदी के स्तर पर थी. एक साल पहले की बात करें तो खुदरा महंगाई 4.23 प्रतिशत पर थी. कोरोना काल के दो सालों में मांग में भारी कमी और औद्योगिक गतिविधियों में उथल-पुथल के बाद अर्थव्यवस्था में फिर से तेजी दिख रही है. इससे मांग और खपत में भी उछाल आया है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावट आई है. इस कारण कच्चे तेल, खाद्य तेल और कमोडिटी की कीमतों में बड़ा उछाल आया है.
रिजर्व बैंक ने महंगाई को थामने के लिए दो साल बाद ब्याज दरों में बढ़ोतरी का रुख अपनाया है. RBI ने महंगाई की 4 फीसदी की दर को संतोषजनक और 6 फीसदी को अधिकतम सहनीय स्तर माना है, लेकिन महंगाई लगातार पांचवें माह 6 फीसदी के ऊपर रही है. केंद्रीय बैंक ने अपने अनुमान में भी कहा है कि इस वित्तीय वर्ष में महंगाई 2-6 के टारगेट बैंड से ऊपर रहेगी. हालांकि महंगाई का उच्चतम स्तर कहां तक पहुंचेगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगा.
आरबीआई ने मौद्रिक समीक्षा के बीच में ही पिछले माह ब्याज दरों में 0.40 फीसदी और इस बार जून में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी ब्याज दरों में की है. सरकार ने भी केंद्रीय बैंक को महंगाई 4 फीसदी तक नियंत्रित रखने का लक्ष्य दे रखा है. इसमें दो फीसदी के उतार-चढ़ाव को सहन योग्य माना जाता है. लेकिन आरबीआई का पूर्वानुमान है कि अभी महंगाई ऊंचे स्तर पर बनी रहेगी. लिहाजा उसने रेपो रेट को 4 फीसदी से बढ़ाकर दो बार में 4.90 प्रतिशत के स्तर पर किया है. रेपो रेट वो दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक अन्य बैंकों को कर्ज देता है.