कोर्ट के जरिए आरक्षण खत्म करने की कोशिश : मायावती ने SC के फैसले का किया विरोध; केंद्र-कांग्रेस पर साधा निशाना

बसपा अध्यक्ष मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण पर दिया हालिया फैसले पर अपना पक्ष विस्तार से आज रखा. उन्होंने बताया कि इससे राज्यों की सरकार मनमाने ढंग से आरक्षण देंगी.

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मायावती ने आज प्रेस कांफ्रेंस कर भाजपा, सपा और कांग्रेस को आरक्षण विरोधी बताया.

आरक्षण पर 1 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले पर आज बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने असहमति जताई. उन्होंने कहा हमारी पार्टी हालिया फैसले से पूरी तरह असहमत है. शीर्ष अदालत ने इससे पहले 2004 में फैसला सुनाया था, तब उन्होंने उप वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी थी. अब फैसला पलट दिया है. इससे बहुत दिक्कत होगी. केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव होगा. क्योंकि अब तक यह शक्ति सिर्फ केंद्र सरकार के पास थी, मगर अब राज्यों के पास यह शक्ति आ जाएगी. अब राज्य सरकारों को जिस वोट बैंक से लाभ मिलेगा, उसे आरक्षण देंगे और इस तरह एससी-एसटी को मिल रहा आरक्षण खत्म हो जाएगा.

बताया कैसे खत्म होगा आरक्षण

मायावती ने कहा कि 1 अगस्त 2024 के फैसले में क्रीमी लेयर पर स्पष्ट नहीं किया गया कि किसे क्रीमी लेयर माना जाएगा और किसे नहीं. अगर उपवर्गीकरण हुआ तो कई पद खाली रह जायेंगे. अब राज्य मनमाने तरीके से कई जातियों को लाभ दे सकते हैं. जबकि कुछ को नकारा जा सकता है. राज्य यह संविधान के मूल के विरुद्ध होगा. यह पूरी तरह से असंवैधानिक है. SC/ST को दिया जाने वाला आरक्षण ख़त्म होने का ख़तरा हमेशा बना रहेगा.  इसका पूरा उद्देश्य सामाजिक उत्थान है, इसलिए जाति के आधार पर इसका बंटवारा गलत है.  दलितों के लिए यह सामाजिक उत्थान के लिए था और छुआछूत जैसी कुरीतियों को ख़त्म करने के लिए दिया गया था. अब राज्य अपनी राजनीतिक सहमति के अनुसार इसका उपयोग करेंगे. जिस उद्देश्य से बाबा अंबेडकर ने आरक्षण दिया था, वह अंत में  शक्तिहीन होकर रह जाएगा. बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दल हमेशा से एससी/एसटी आरक्षण के खिलाफ रहे हैं.

भाजपा-कांग्रेस-सपा पर कही ये बात

बसपा सुप्रीमों ने कहा कि अगर वे ऐसा नहीं चाहते तो मैं उनसे कहती हूं कि वे जनता के सामने इस पर अपना रुख बताएं और इसे सुधारने के लिए संसद में अध्यादेश लाएं. भाजपा हो, कांग्रेस हो या अन्य दल, दलितों के प्रति उनकी जातिवादी सोच नहीं बदली है. मैं बताना चाहूंगी कि लोगों को इसे आपातकालीन स्थिति के रूप में सोचना चाहिए और इसे बदलने के लिए सरकार और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने के लिए एक साथ आना चाहिए. मैं शीर्ष अदालत से भी इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करती हूं. यह बहुत बुरा हुआ है. बीजेपी कहती है कि वे एससी/एसटी के साथ हैं, लेकिन उन्होंने कोर्ट में कुछ नहीं किया. कांग्रेस ने भी कुछ नहीं कहा. 

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क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त 2024 को एससी-एसटी आरक्षण को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया था. अदालत ने कहा कि एससी-एसटी में सह कैटेगरी बनाकर अधिक पिछड़े लोगों को अलग से कोटा देने के लिए इजाजत है. यह फैसला सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से सुनाया. फैसला सुनाने वाले एक जज ने कहा कि वो इस बात से सहमत हैं कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर का सिद्धांत एससी-एसटी पर भी लागू होता है. इस संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्र और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे.बहुमत के इस फैसले से जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई.

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क्या कहा है सीजेआई ने

फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि छह जज निर्णय के पक्ष में हैं, सभी एकमत हैं. इस तरह बहुमत ने 2004 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले में दिए उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी-एसटी के आरक्षण में उप वर्गीकरण की इजाजत नहीं है. इस पीठ ने मुख्य तौर पर दो पहलुओं पर विचार किया. पहला यह कि क्या आरक्षित जातियों के उप-वर्गीकरण की इजाजत दी जाए और दूसरा यह कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में दिए गए फैसले की सत्यता. इस फैसले में कहा गया था कि अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जातियां समरूप समूह हैं और उन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है. अदालत ने कहा है कि अनुसूचित जातियों के उप वर्गीकरण के आधार को राज्यों द्वारा परिमाणात्मक और प्रदर्शनीय आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए.अदालत ने कहा कि राज्य यह काम अपनी मर्जी से नहीं कर सकता है.

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