राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने कहा है कि एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में देश के प्रथम शिक्षा मंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद का उल्लेख वर्ष 2013 में हटाया गया था और इसे पिछले वर्ष शुरू की गई पाठ्यपुस्तकों के युक्तिकरण पहल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से बिना अधिसूचना के कुछ उद्धरणों एवं विषयों को हटाने के बाद विवाद उत्पन्न हो गया. विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भाजपा पर इतिहास से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा था कि गलत कारणों से लोगों का उल्लेख मिटाना देश के विविधतापूर्ण लोकतंत्र और इसके गौरवशाली इतिहास के लिए पूरी तरह से अनुचित है.
एनसीईआरटी ने अपने बयान में कहा, ‘‘पाठ्यपुस्तक के पिछले संस्करण को देखने से यह बात सामने आई कि वर्ष 2014-15 के बाद से उस पैरा में मौलाना आजाद का नाम नहीं था. प्रकाशन विभाग के रिकार्ड के अनुसार, सत्र 2014-15 के लिए पाठ्यपुस्तक प्रिंटिंग के उद्देश्य से अक्टूबर 2013 में अंतिम रूप दिया गया. इसे पाठ्यपुस्तकों के युक्तिकरण की वर्तमान पहल से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.''
परिषद ने कहा कि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों को अद्यतन करने, सूचना में सुधार करने सहित उसे फिर से छापना नियमति कार्य है.
एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक के प्रथम पाठ की उक्त पंक्ति को पढ़ा जाएगा, ‘‘आमतौर पर जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल या बी आर अंबेडकर ने इन समितियों की अध्यक्षता की थी.''
राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की नए शैक्षणिक सत्र की पाठ्यपुस्तक में ‘महात्मा गांधी की मौत का देश में साम्पद्रायिक स्थिति पर प्रभाव, गांधी की हिन्दू मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिन्दू कट्टरपंथियों को उकसाया,' और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध सहित कई पाठ्य अंश नहीं हैं.
एनसीईआरटी ने हालांकि यह दावा किया है कि इस वर्ष पाठ्यक्रम में कोई काटछांट नहीं की गई है और पाठ्यक्रम को पिछले वर्ष जून में युक्तिसंगत बनाया गया था.
पिछले वर्ष पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने और कुछ अंशों के अप्रसांगिक होने के आधार पर एनसीईआरटी ने गुजरात दंगों, मुगल दरबार, आपातकाल, शीत युद्ध, नक्सल आंदोलन आदि के कुछ अंशों को पाठ्यपुस्तक से हटा दिया था.
एनसीईआरटी के प्रमुख दिनेश सकलानी ने कहा था कि यह अनजाने में चूक हो सकती है कि पिछले वर्ष पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाने की कवायद में कुछ अंशों को हटाने की घोषणा नहीं की गई.
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