अगस्त, 2019 में विभाजित कर जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने से पहले राज्य मानवाधिकार आयोग के पास कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर जो भी रिकार्ड था, वह तब इस पैनल के भंग कर दिए जाने के बाद से एक कमरे में बंद है. आरटीआई आवेदन पर यह जानकारी सामने आई है. सामाजिक कार्यकर्ता वेकेंटेश नायक ने सूचना के अधिकार कानून के तहत एक आवेदन देकर 31 अक्टूबर, 2019 तक आयोग के सामने लंबित शिकायतों की संख्या जाननी चाही थाी. तभी जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 प्रभाव में आया था.
इस पुनर्गठन से पिछले जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया था तथा केंद्रीय कानूनों के प्रभाव में आ जाने से राज्य मानवाधिकार एवं राज्य सूचना आयोग जैसे स्वायत्त निकाय भंग कर दिये गये थे.
नायक के आवेदन पर जम्मू कश्मीर प्रशासन ने कहा है कि उसके पास पिछले पैनल के रिकार्ड से जुड़ी सूचना नहीं है.
उनकी पहली अपील पर जम्मू कश्मीर प्रशसन ने कहा कि पिछले राज्य के दो केंद्रशासित प्रदेशों में बंट जाने के बाद जम्मू कश्मीर मानवाधिकार रक्षा अधिनियम, 1997 (राज्य का कानून) निरस्त कर दिया गया. उसने कहा कि इस कानून के निरसन के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने जम्मू कश्मीर मानवाधिकार आयोग भंग कर दिया.
प्रशासन ने जवाब में कहा, ‘‘ आयोग के सारे रिकार्ड को श्रीनगर के पुराने विधानसभा काम्प्लेक्स में पिछले मानवाधिकार आयोग कार्यालय के लिए निर्धारित एक कमरे में रख दिया गया. पिछले आयोग के कर्मियों को अन्य विभागों में प्रतिनियुक्त एवं समायोजित कर दिया गया.''
उसने कहा, ‘‘आयोग के रिकार्ड औपचारिक रूप से कानून, न्याय एवं संसदीय कार्य विभाग को नहीं सौपें गये तथा ऐसा कुछ विभाग के लिए सुलभ नहीं है.'' जवाब में कहा गया है, ‘‘ चूंकि पिछले मानवाधिकार आयोग के रिकार्ड न तो सुलभ नहीं है और न ही ऐसे प्राधिकार के नियंत्रण में है, इसलिए अपीलकर्ता द्वारा मांगी गयी सूचना का संबंध ऐसे रिकार्ड के बारे में है, जिसके लिए यह कहना काफी होगा कि जरूरी सूचना संबंधित प्राधिकार के पास नहीं है.''
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