टिकट न मिलने पर विधानसभा चुनाव में कूदने वाले बागी सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी महा विकास आघाडी (एमवीए) के लिए सिरदर्द बन गए हैं. राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 20 नवंबर को होने वाले चुनाव के वास्ते नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 29 अक्टूबर थी और उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच 30 अक्टूबर को की जाएगी.
यदि बागी चुनाव मैदान में डटे रहते हैं, तो वे आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती पैदा करेंगे और महायुति तथा एमवीए के चुनावी गणित को बिगाड़ने का काम करेंगे, जिनके बीच कड़ा मुकाबला प्रतीत हो रहा है.
प्रमुख दलों के बीच सबसे अधिक संख्या में उम्मीदवार उतारने वाली भाजपा को मुंबई के साथ-साथ राज्य के अन्य हिस्सों में बागियों से संभावित नुकसान को रोकने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है.
भाजपा के बागियों में एक बड़ा नाम गोपाल शेट्टी का है. वह दो बार विधायक और मुंबई से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने मुंबई की बोरीवली विधानसभा सीट से पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजय उपाध्याय के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया है.
भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि वे दोनों सीट जीतने में सफल रहे, लेकिन शेट्टी सहित पार्टी के स्थानीय सदस्य इस बात से असहज हो गए कि उनसे सलाह-मशविरा किए बिना बाहरी उम्मीदवार ‘‘थोप'' दिए गए.
शेट्टी को तब झटका लगा, जब उन्हें 2024 में लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया गया, जिससे केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के लिए रास्ता साफ हो गया. हालाँकि, कई लोगों को उम्मीद थी कि शेट्टी को विधानसभा चुनाव में बोरीवली से मैदान में उतारा जाएगा, लेकिन भाजपा ने उनके बजाय उपाध्याय को चुना.
वहीं, एक अन्य स्थानीय भाजपा नेता अतुल शाह ने मुंबई शहर की मुंबादेवी सीट से अपना नामांकन दाखिल किया है, जहां पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता शाइना एनसी सहयोगी शिवसेना की आधिकारिक उम्मीदवार हैं.
हालाँकि, तनवानी ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और ठाकरे के प्रतिद्वंद्वी एवं मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के उम्मीदवार प्रदीप जायसवाल को समर्थन दे दिया.
चंद्रपुर जिले में भाजपा ने राजुरा निर्वाचन क्षेत्र से देवराव भोंगले को मैदान में उतारा है. इस फैसले से नाराज होकर भाजपा के दो पूर्व विधायकों- संजय धोटे और सुदर्शन निमकर ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है.
उन्होंने कहा, ‘‘विधानसभा चुनाव आम तौर पर उम्मीदवारों की छवि पर लड़ा जाता है. दोनों पक्षों (महायुति और एमवीए) में कम से कम तीन प्रमुख राजनीतिक दल हैं, और यह स्पष्ट है कि प्रत्येक पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए सीमित संख्या में सीट मिली हैं. भाजपा और शिवसेना द्वारा पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी राकांपा के साथ हाथ मिलाए जाने से उनके समर्पित पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए जमीन पर एक बड़ी चुनौती पैदा हो गई है.''
निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में माने ने कहा, ‘‘मुझे बताया गया था कि कांग्रेस की ओर से एबी फॉर्म मुझे दिया जाएगा. वह कभी नहीं आया, इसलिए मैंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने का फैसला किया.''
पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) एमवीए की एक घटक है, फिर भी इसके बाबासाहेब देशमुख ने सोलापुर जिले के सांगोला निर्वाचन क्षेत्र में शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार के खिलाफ अपना नामांकन दाखिल किया है.
अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को भी बगावत का सामना करना पड़ रहा है. राकांपा नेता छगन भुजबल के भतीजे समीर ने नासिक जिले के नंदगांव विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है. वह शिवसेना उम्मीदवार और मौजूदा विधायक सुहास कांडे को चुनौती दे रहे हैं.
पूर्व केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे के भाई भास्कर ने भी बगावत कर दी है और जालना क्षेत्र में शिवसेना उम्मीदवार अर्जुन खोतकर के खिलाफ नामांकन दाखिल किया है.नागपुर जिले में भाजपा के मौजूदा विधायक कृष्णा खोपड़े को नागपुर पूर्वी विधानसभा सीट पर राकांपा की बागी आभा पांडे से चुनौती मिल रही है.
दिलीप
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