आज के चुनाव परिणामों में कांग्रेस के लिए हार के 5 कारण और क्या हैं सबक

10 सालों में राज्य में कांग्रेस पार्टी बीजेपी सरकार की कमी और लोगों के मुद्दों को जोरदार ढंग से राज्य में नहीं उठा पाई. यह अलग बात है कि हाल के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतर परिणाम दिए थे और राज्य की 10 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

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नई दिल्ली:

Haryana election results and congress loss: हरियाणा के चुनाव परिणाम और रुझानों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बीजेपी लगातार तीसरी बार राज्य में सरकार बनाने जा रही है. अभी तक के रुझानों के हिसाब से बीजेपी पूर्ण बहुमत की सरकार बना सकती है. इसी के साथ ही एक बार फिर एग्जिट पोल के नतीजों को परिणाम और रुझानों ने खारिज कर दिया है. हरियाणा के एग्जिट पोल पर खुशी मनाते कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के लिए मंगलवार का दिन अच्छा नहीं रहा. वहीं जम्मू कश्मीर के चुनाव भी कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत ज्यादा खुशी लेकर नहीं आए हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ अलायंस में पार्टी सत्ता पर काबिज होती दिख रही है. लेकिन पार्टी को यहां पर गठबंधन का फायदा मिलता दिखा रहा है. कांग्रेस पार्टी जम्मू कश्मीर के चुनाव में जम्मू क्षेत्र में यदि अच्छा परफॉर्म करती तो शायद यह पार्टी और उसके भविष्य के साथ साथ गठबंधन की सरकार को मजबूती प्रदान करता लेकिन परिणाम और रुझान ऐसा इशारा नहीं कर रहे हैं. 

हार का पहला कारण

आइए समझें कि इतनी मजबूत और जीत की दावेदार नजर आ रही कांग्रेस पार्टी हरियाणा का चुनाव क्यों हारती (Why Congress party loses Haryana) दिख रही है. चुनाव को करीबी देखने वालों का मानना है कि 10 सालों से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता कुछ शिथिल पड़ गए हैं. पार्टी ने चुनाव के लिए देर से कमर कसी. 10 सालों में राज्य में कांग्रेस पार्टी बीजेपी सरकार की कमी और लोगों के मुद्दों को जोरदार ढंग से राज्य में नहीं उठा पाई. यह अलग बात है कि हाल के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने बेहतर परिणाम दिए थे और राज्य की 10 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

कांग्रेस की हार का दूसरा कारण

पार्टी की हार का दूसरा अहम कारण जो सामने दिखाई दे रहा है वह आज सुबह तक देखने को मिल रहा था. पार्टी के भीतर गुटबाजी सने कार्यकर्ताओं तक को एक दूसरे से दूर रखा था. इस गुटबाजी को साफ तौर पर देखा जा सकता है. पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के समर्थकों में अनबन था. तीनों ही नेताओं के कार्यकर्ता अपने अपने नेताओं को सीएम पद की दौड़ में सबसे आगे देखना चाहते थे. रणदीप सुरजेवाला की ओर से भले ही कोई बयान नहीं आया हो, लेकिन  राज्य की कांग्रेस पार्टी की राजनीति में वह भी एक धुरी बन गए थे. वहीं, भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच की कड़वाहट सार्वजनिक मंचों पर देखने को मिल रही थी. दोनों ही नेताओं की सीएम बनने की इच्छा बयानों से सामने आ रही थी. यह भी साफ है कि दोनों ही नेता पार्टी आलाकमान पर नेता चुनने की बात कह रहे थे लेकिन अपनी बात भी स्पष्ट रख रहे थे. 

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हार का तीसरा कारण

हार का जो तीसरा कारण समझ आ रहा है उसमें पार्टी का सीएम पद का ऐलान न करना भी शामिल है. यदि पार्टी पहले से ही सीएम पद का ऐलान कर देती तो यह गुटबाजी देखने को नहीं मिलती. कार्यकर्ताओं में जोश बराबर रहता और सभी एक नेता के नाम के साथ जनता के बीच जाते. जनता को मन में भी किसी प्रकार का कोई संशय नहीं होता. लेकिन पार्टी अपने नेताओं की अंतर्कलह को अंत तक सुलझाने में कामयाब नहीं हो पाए. हालात कितने खराब थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता एग्जिट पोल के बाद से ही अपनी-अपनी दावेदारी प्रस्तुत करते रहे. यहां तक की आज सुबह भी मीडिया को दिए बयानों में इसी ओर इशारा कर रहे थे. भूपिंदर सिंह हुड्डा तो दिल्ली का दौरा भी कर गए.

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हार का चौथा कारण

कांग्रेस पार्टी की अभी तक के रुझानों में हार के लिए जो चौथा कारण  जिम्मेदार दिखाई दे रहा है उसमें दलित समाज के वोटों का सरकना भी एक कारण है. लोकसभा चुनाव में जाट और दलित वोटों ने कांग्रेस पार्टी का बेड़ा पार किया था. लेकिन अब कहा जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों में दलित वोट एक बार फिर छटक कर बीजेपी के पाले में चला गया. राज्य में जाटों का वोट प्रतिशत करीब 22 प्रतिशत है जबकि 20 प्रतिशत दलित वोट हैं. दलितों का वोट पार्टी से जाना कांग्रेस के लिए एक सदमा ही होगा. राज्य में ओबीसी वोट और दलित वोट इस बार फिर बीजेपी के पक्ष में जाता दिख रहा है. साथ कांग्रेस पार्टी का पूरा जोर जाट वोट पर था जिसका खामियाजा पार्टी भुगत रही है. 

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हार का पांचवां कारण

कांग्रेस पार्टी की हार के लिए हरियाणा में जो पांचवां कारण समझ में आ रहा है वह है राज्य में इंडी अलायंस का न बन पाना. इंडी अलायंस के दो दल पार्टी ने नाराज़ हो गए. राज्य में आम आदमी पार्टी कांग्रेस पार्टी से 90 सीटों में से 10 सीटों की मांग कर रही थी जबकि समाजवादी पार्टी भी राज्य में 2 सीटों को चाह रही थी.  लेकिन अंतिम समय तक इन दलों में सहमति नहीं बन पाई. आम आदमी पार्टी ने नाराजगी में अपने 29 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी थी.

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खास बात यह है कि लोकसभा चुनावों के परिणामों के हिसाब से देखा जाए तो आम आदमी पार्टी केवल 4 सीटों पर कुछ असर डाल रही थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी का कहना है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की अच्छे परफॉर्मेंस वाली सीटों की मांग कर रही थी. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं भूपिंदर सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला ने गठबंधन के विरोध में अपनी राय व्यक्त की. पार्टी की ओर इस कार्य के लिए तैनात किए गए नेता अजय माकन ने दोनों की बात को स्वीकारा और अंतत: गठबंधन नहीं हो पाया. 
अभी तक के रुझान बता रहे हैं आम आदमी पार्टी को करीब 2 फीसदी मत मिले हैं. 

क्या है सबक
अब यह भी समझना होगा कि कांग्रेस पार्टी के लिए इस चुनाव से क्या सबक निकल सामने आ रहे हैं. यह कहा जा सकता है कि पार्टी को राष्ट्रीय स्तर के बाद राज्य स्तर पर आंतरिक गुटबाजी को खत्म करना चाहिए. यह साफ देखा जा सकता है कि भीतरी कलह पार्टी को नुकसान पहुंचाती है और भविष्य में इस प्रकार के नुकसान से बचने के लिए पार्टी को कदम उठाने पड़ेंगे. पार्टी नेताओं और कार्यकर्तओं को हर अहम मुद्दे पर लोगों के बीच जाना होगा और सरकार पर दबाव बना होगा ताकि पार्टी का रुख लोगों के सामने साफ हो सके. इसके साथ एक अहम बात यह भी है कि पार्टी अपने वोटों को बिखरने से बचाने के लिए कदम उठाए और नए वोटों को जोड़ने के लिए कदम उठाए. 

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