इन दिनों क़तर में फुटबॉल का विश्व कप चल रहा है. ईरान की टीम के खिलाड़ियों ने कुछ ऐसा किया है, जिससे हम देशभक्ति के पहलुओं को समझ सकते हैं. देशभक्ति एकतरफा नहीं होती है. कि आप जिस देश में पैदा लेते हैं, जिसके नागरिक हैं, उसे हर हाल में प्यार ही करते रहेंगे, हर हाल का मतलब आप पर या आपके नागरिकों पर ज़ुल्म होता रहे और आप प्यार करने का नाटक करते रहेंगे. उस ज़ुल्म के ख़िलाफ़ बोलना भी देशभक्ति है. जब तक नागरिकों के पास अपने देश को सुंदर बनाने की कल्पना और उसकी अभिव्यक्ति नहीं बची रहेगी, तब तक वह देश उसके राष्ट्रगान या अन्य प्रतीकों में बचा नहीं रह सकता. जब आप हर तरह के ग़लत पर चुप रहने लगते हैं और राष्ट्रगान गाने लगते हैं तब इस देशभक्ति में देश के प्रति प्रेम कम नौटंकी ज़्यादा होती है. भय ज़्यादा होता है. ईरान के खिलाड़ियों ने जो किया है, वह बताता है कि राज्य नागरिकों पर देशभक्ति थोप नहीं सकता है, कभी-कभी नागरिक भी राज्य से देशभक्ति की मांग कर सकते हैं. वह राज्य देशभक्त हो ही नहीं सकता जो अपने नागरिकों या उसके भीतर अलग अलग समुदायों या खासकर औरतों को सम्मान न देता हो. उसका विरोध करना भी उस देश से प्यार ही करना है, जिसे एकदिन सभी के लिए बराबर होना है.
तो हुआ यूं कि ईरान की टीम इंग्लैंड से मैच खेलने वाली थी, मैच 6-2 से हार गई लेकिन हारी हुई टीम ने अपने लिए ही नहीं, दुनिया भर में चल रहे अन्याय के विरोध करने वालों का दिल जीत दिया. मैच से पहले जब ईरान का राष्ट्रगान बजा तो किसी खिलाड़ी ने नहीं गाया. वे चुप हो गए. उनके होंठों ने गुनगुनाना बंद कर दिया. स्टेडियम का समां बदल गया. कोई उनके नहीं गाने के साथ हो गया तो कोई उनके नहीं गाने पर शोर करने लगा मगर सभी खिलाड़ी अपने फैसले पर एकमत थे. स्टेडियम में ईरान का राष्ट्रगान महज़ एक गीत की तरह बजता रह गया जिसे गाने वाला कोई नहीं था, कम से कम वही नहीं गा रहे थे, जिन्हें गाना था और राष्ट्रगान के प्रति सम्मान व्यक्त करना था. उनकी इस चुप्पी की आवाज़ ईरान में और दुनिया में देर तक गूंजती रहेगी. ऐसा कर उन्होंने अपने लिए सज़ा तय कर ली मगर उस सज़ा के ख़ौफ से उन औरतों का साथ नहीं छोड़ा जो ईरान की सड़कों पर ज़बरन हिजाब पहनाने का विरोध कर रही हैं. ईरान की सरकार नागरिकों को चुप करा देना चाहती है तो खिलाड़ियों ने चुप रह कर जता दिया कि जब बोलने की ही आज़ादी नहीं है तब राष्ट्रगान गाने की आज़ादी का क्या मतलब है. जब चुप ही रहना है तो राष्ट्रगान के समय भी चुप रहा जाए. इन ख़बरों में ऐसा कुछ भले न लिखा हो मगर इन्हें पढ़ते हुए मैं ऐसा ही कुछ सोचने लग गया.
विश्व कप फुटबॉल को अरबों लोग देखते हैं और अरब देशों के एक देश कतर में ईरान के खिलाड़ियों का यह प्रतिरोध हर देश में देखा गया होगा, हर देश में अपने समय और संदर्भ के हिसाब से गूंजता रह गया होगा. ऐसा कोई देश नहीं जो बड़े बड़े खिलाड़ियों और फिल्म स्टार से ख़ाली हो, भारत में तो इनकी भरमार है लेकिन जब बोलने की बारी होती है तो नमक-तेल के विज्ञापन की निष्ठा जीत जाती है. हर तरह की हिंसा ज़ुल्म, अन्याय पर हमारे फिल्म स्टार चुप हो जाते हैं. तो ऐसे फिल्म स्टार की कोशिश यही होगी कि ईरान के खिलाड़ियों के इस प्रतिरोध की बात कम हो, कम से कम उस अखबार में न हो, उस चैनल में न हो, जिसे वे देखते हैं, पढ़ते हैं.
22 साल की कुर्द लड़की माहसा अमीनी को गोली मार दी गई, माशा ज़बरन हिजाब पहनाए जाने का विरोध कर रही थी. ईरान में एक खास तबके की महिलाओं को हिजाब न पहनने की छूट है मगर यही कानून उसी तबके की तरफ से सारी महिलाओं पर थोपा जा रहा था. माशी अमीनी ने विरोध कर दिया. उसकी हत्या के बाद ईरान की तमाम महिलाएं सड़क पर आ गईं और ज़बरन थोपे जाने के फैसले का विरोध करने लगीं. इन्हीं महिलाओं के समर्थन में ईरान के खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान गाने से इंकार कर दिया. जिस देश में स्त्रियों का सम्मान न हो, उस देश में सम्मान में राष्ट्रगान गाना ही पड़े तो यह नाटक से कम नहीं. खिलाड़ी यही कह रहे हैं कि सम्मान तो है मगर देश ऐसा भी बने जहां नागरिकों को बराबरी का अधिकार मिले. राष्ट्रगान सबका हो. राष्ट्र सबका हो.
ईरान के खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान गाने से इंकार कर दिया. इस घटना का महत्व और संदर्भ केवल ईरान से नहीं जुड़ा है. देशप्रेम आप थोप नहीं सकते हैं, यह प्रेम है, प्रेम के लिए वातावरण बनाना पड़ता है, फिर अपने आप आ जाता है. जिस देश में नागरिकों की हालत ग़ुलाम की हो जाए, उस देश के नागरिकों से कहा जाए कि राष्ट्रगान गाना ही पड़ेगा तो यह उनके लिए किसी मृत्युगान से कम नहीं होगा. शोकगीत से कम नहीं होगा. ईरान के खिलाड़ियों ने अपने देश को यही संदेश भेजा है. इन खिलाड़ियों का अपने देश की लड़कियों के हक में खड़ा होना भारत के उन पिताओं को कभी समझ नहीं आएगा
नीतेश यादव कभी नहीं समझ सकेंगे जिन्होंने किसी से प्रेम करने पर अपनी बेटी की गोली मार कर हत्या कर दी. आयुषी की मां बृजबाला यादव कभी समझ ही नहीं सकेंगी कि ईरान के खिलाड़ियों ने क्या किया है, जिन्होंने अपनी ही बेटी की लाश सूटकेस में पैक कर कहीं फेंक दी मुमकिन है नीतेश यादव हमेशा राष्ट्रगान गाते हों मगर उनके मन में उनकी बेटी कभी उस राष्ट्र की नागरिक नहीं होगी, जागीर समझते होंगे, इसलिए उसे मार दिया. इसलिए मेरी उलझन यही है कि भारत के वैसे पिता ईरान के खिलाड़ियों के प्रतिरोध को कैसे समझेंगे जो केवल प्रेम करने पर अपनी बेटी को गोली मार देते हैं, कुल्हाड़ी से काट देते हैं, वैसे पिता या परिवार के लोग तो बिल्कुल समझ नहीं सकेंगे तो गर्भ में ही बेटियों को मार देते हैं. किसी आफताब अमीन पूनावाला को कैसे ये बात समझ आएगी जो अपनी ही प्रेमिका श्रद्धा वालकर के टुकड़े टुकड़े कर देता है. दुनिया में औरतों की लड़ाई भूगोल के साथ बदल जाती है. मुमकिन है भारत की बेटियों की लड़ाई ज़बरन हिजाब थोपे जाने से अलग हो. इस बात को लेकर हो कि हमें गर्भ में मार देने से लेकर गर्भ से बाहर आने पर मार देने की सोच से बचाया जाए. उन मर्दों से बचाया जाए जो राष्ट्रगान तो ठीक ठीक गाते हैं, पूरे आदर के साथ गाते हैं मगर हम लड़कियों का सम्मान नागरिकों की तरह नहीं करते. ऐसे मर्दों की दुनिया में औरतों को अधिकार संविधान नहीं देता है, उनका बाप देता है, भाई देता है, पति देता है, प्रेमी देता है.
भारत में नारी की पूजा होती है. औरतें इस झूठ को जानती हैं. हर औरत के बस की बात नहीं कि अपने लिए खड़ी हो जाएं इसलिए पूजा को सच मान लेती है. वैसे बात यहीं खत्म नहीं होती है. जिस दौर में राष्ट्रवाद हिंसा और दमन का हथियार बन जाए, किसी को चुप कराने का माध्यम बन जाए उस दौर में ईरान के इन खिलाड़ियों के प्रतिरोध को ठीक से समझा जाना चाहिए. इन खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान नहीं गाकर केवल औरतों का साथ नहीं दिया है, बल्कि उन सभी का साथ दिया है, जिन्हें राष्ट्रगान के नाम पर मारा गया है, पीटा गया है, और चुप कराया गया है. आपको मैं फ्लैशबैक में ले जाना चाहता हूं ताकि आप समझ सकें कि ईरान के खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान न गाकर क्या किया है, भारत में ऐसा करने पर क्या होता था, और इन खिलाड़ियों के साथ ईरान में क्या होगा
यह सभी उन ख़बरों की करतनें हैं जो किसी साल दहशत पैदा करती थीं कि कब कौन पीट दिया जाएगा और इल्ज़ाम लगा दिया जाएगा कि राष्ट्रगान नहीं गा रहा था, सम्मान में खड़ा नहीं हुआ इसलिए इसका पीटा जाना सही है. आपको याद आया कि उस समय सिनेमाहॉल से लेकर स्कूल कालेजों में इस तरह की पहरेदारी होने लगी थी. जो नहीं गाता पकड़ा गया, जो खड़ा नहीं हुआ. उसे मारा जाने लगा, देशद्रोही बताया जाने लगा. ऐसी ख़बरों को ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि इन सभी के बहाने उस समुदाय के लोगों की तालाश की जा रही थी, जिन्हें हर बात में गद्दार साबित किया जाना था. इसलिए कहा कि ईरान की बात करेंगे तो बहुत कुछ याद आएगा, वहां से ज्यादा यहां का.
यह ख़बर 21 अक्तूबर 2014 की है. मुंबई मिरर ने लिखा है कि सिनेमा हॉल में जब राष्ट्रगान बजा तो 31 साल के महक व्यास की महिला मित्र निकोल सोबोत्कर बैठी रह गई. निकोल सोबोत्कर दक्षिण अफ्रीका की थीं. उनके बैठने की सज़ा महक व्यास को मिली, उन्हें गालियां दी गईं, मारा भी गया. जबकि व्यास राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े हुए थे. महाराष्ट्र में जनवरी 2003 से ही नियम है कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजेगा. 30 नवंबर 2015 की यह ख़बर BBC( भारतीय समाचार पत्र का दो) में छपी है. एक वीडियो की बात है कि किसी मुस्लिम नौजवान को धक्का देकर बाहर निकाल दिया क्योंकि कथित रुप से वह राष्ट्रगान नहीं गा रहा था. 20 अक्तूबर 2016 की यह ख़बर दक्कन क्रोनिकल की है. गोवा में एक विकलांग लेखक को मारा गया, क्योंकि राष्ट्रगान के समय खड़े नहीं हो सके. 12 दिसंबर 2016 के फाइनेंशियल एक्सप्रेस की यह ख़बर चेन्नई में सिनेमा हाल में राष्ट्रगान के समय तीन लोग खड़े नहीं हुए, उन्हें मारा गया. 13 दिसंबर 2016 में केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में छह लोगों को गिरप्तार किया गया, इन पर आरोप था कि ये राष्ट्रगान के समय खड़े नहीं हुए. 14 दिसंबर 2016 की यह खबर फर्स्ट पोस्ट की है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दो दिन के भीतर 20 लोग गिरफ्तार किए गए. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि सिनेमा हॉल में फिल्म के बाद राष्ट्रगान गाया जाएगा.
इस फैसले को 2018 में जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अमितावा रॉय ने पलट दिया कि गाना अनिवार्य नहीं है. 23 जनवरी 2017 के टाइम्स आफ इंडिया में खबर छपती है कि मुंबई में दंगल फिल्म चल रही थी. फिल्म के बाद 59 साल के अमलराज दसन कथित रुप से राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े नहीं हुए तो उन्हें मारा गया. 2 अक्तूबर 2017 के टाइम्स आफ इंडिया की खबर है कि गुवाहाटी में अरमान अली को मारा गया, आरोप था कि राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े नहीं हुए. 17 अगस्त 2018 की यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स की है.यूपी के एक मदरसा में कथित रुप से राष्ट्रगान नहीं गाने पर तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया. इस साल मई में योगी सरकार ने मदरसा में राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिया है. हर दिन क्लास के पहले गाया जाता है. 29 नवंबर 2018 की यह खबर टाइम्स आफ इंडिया की है. अलीगढ़ के स्कूल में राष्ट्रगान नहीं गाया गया तो जांच हो गई.
आपको तो याद ही होगा कि 9 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अमितावा रॉय की बेंच ने फैसला दिया कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान अनिवार्य रुप से बजेगा. आदेश में यह भी लिखा था कि जब राष्ट्रगान गाया जा रहा हो तब पर्दे पर तिरंगा की तस्वीर हो. सिनेमा हॉल के सारे दरवाज़े बंद हों ताकि कोई बाहर न जा सके, और हाल के भीतर सभी लोग खड़े हों.कोर्ट ने कहाथा कि समय आ गया है कि देश कके सभी नागरिकों को यह अहसास हो कि वे एक देश में रहते हैं और उनके राष्ट्रगान के प्रति सम्मान व्यक्त करना उनका कर्तव्य है. यह एक अभिन्न राष्ट्रीय गुण है. इस फैसले से विकलांग लोगों पर मुसीबत टूट पड़ी, उन्हें उठने में दिक्कत थी, और कुछ विकलांग लोगों को उठने में समय लगता था तब तक उनकी पिटाई शुरू हो चुकी होती थी. इन घटनाओं को देखते हुए भारत सरकार 2017 में एक गाइडलाइन लेकर आती है. पत्र सूचना कार्यालय की प्रेस रिलीज़ के अनुसार कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह दिशानिर्देश जारी किया गया है कि विकलांग व्यक्ति किस तरह से राष्ट्रगान के प्रति सम्मान ज़ाहिर करेंगे. दिशानिर्देश में लिखा है कि
2016 से 2018 के बीच सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के वक्त न गाने या न खड़े होने पर मारपीट की कई घटनाएं रिपोर्ट हुई थीं. आपने देखा कि विकलांगों के लिए कितने नियम बने थे और उन्हें भी राष्ट्र गान के समय सम्मान ज़ाहिर करने से छूट नहीं दी गई थी. जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कुछ बदलाव किए. कहा कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजना अनिवार्य नहीं होगा. 2016 का आदेश था कि मातृभूमि के प्रति प्रेम के लिए फिल्म शुरू होने से पहले सभी सिनेमाघरों में राष्ट्रगान अनिवार्य रुप से बजेगा. दो साल बाद अनिवार्य नहीं रहा. यह आदेश भी जस्टिस दीपक मिश्रा का था जिन्होंने 2016 में आदेश दिया था. कहा गया कि सिनेमा हॉल पर निर्भर करेगा कि वह बजाना चाहता है या नहीं लेकिन जब बजाया जाएगा तब सभी को खड़े होकर सम्मान ज़ाहिर करना होगा
इसलिए ईरान के फुटबॉल खिलाड़ियों ने जब राष्ट्रगान गाने से इंकार कर दिया तब फिर से भारत की घटनाओं पर लौटना अनिवार्य हो जाता है ताकि हम समझ सकें कि ईरान के खिलाड़ियों ने कितना बड़ा जोखिम मोल लिया है मगर फिर भी अपने ही सहनागरिकों यानी औरतों के आंदोलन का साथ दिया है. अब आप समझ सकते हैं कि ईरान के खिलाड़ियों का यह प्रतिरोध कितना बड़ा है.
5 दिसंबर 2017 को कई मंत्रालयों को मिलकर एक समिति बनाई गई थी ताकि वह अध्ययन कर सके कि किस अवसरों पर, परिस्थितियों में राष्ट्रगान का गायन होगा और सम्मान व्यक्त किया जाएगा. उस समय की खबर के अनुसार छह महीने में इस कमेटी को अपनी रिपोर्ट देनी थी. तब कोर्ट में सरकार ने ही कहा था कि जब तक मंत्रियों के समूह की कमेटी रिपोर्ट नहीं दे देती सिनेमा हॉल को अनिवार्य रुप से राष्ट्रगान बजाने के फैसले से राहत दी जा सकती है.यह वो दौर था और जब राष्ट्रगान के नाम पर किसी समुदाय को या सरकार के आलोचक को निशाना बनाया जा रहा था लेकिन अब संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया जाने लगा, राष्ट्रगान गाया जाने लगा ताकि कोई आंदोलन करने वालों की देशभक्ति पर सवाल न उठा सके. क्योंति तब और अब भी यही मतलब हो गया था कि जो आंदोलन कर रहा है वह गद्दार है.
संविधान की प्रस्तावना और भारत के मानचित्र के कटआउट कई जगहों पर लगाए गए, नागरिकता कानून के विरोध में होने वाले आंदोलन में संविधान की प्रस्तावना का पाठ तो होता ही था. प्रस्तावना और राष्ट्रगान के ज़रिए आंदोलन में शामिल महिलाएं बताना चाहती थीं कि भारत के प्रति निष्ठा अटूट है, उनकी लड़ाई भारत के भीतर उनकी जगह को लेकर है.अब देखिए ईरान के फुटबाल खिलाड़ी अपने देश की महिलाओं के आंदोलन के सम्मान में राष्ट्रगान नहीं गाते हैं मगर भारत में एंटी सी ए ए के समय महिला आंदोलनकारी देशद्रोह के आरोप से बचने के लिए राष्ट्रगान गाती हैं. इसी फर्क को समझना है. एक तीसरा पहलु भी देखिए.
वहां नागरिकता कानून के विरोधी जमा हो गए, बंगलुरु सेंट्रल के डीसीपी चेतन सिंह राठौड़ ने भीड़ को समझाया कि ऐसे में सुरक्षा मुश्किल है, और कहने लगे कि मुझ पर भरोसा कीजिए. लोग भरोसा कर सकें इसलिए पुलिस कमिश्नर राष्ट्रगान गाने लगते हैं, उनके साथ साथ भीड़ भी गाने लगती है. राष्ट्रगान पूरा होते ही भीड़ वापस चली जाती है. पुलिस कमिश्नर की बात मान लेती है.
तो आपने देखा कि एक ही राष्ट्रगान है. वो आंदोलनकारियों का भी सहारा है, राज्य के प्रतिनिधि का भी सहारा है जिसकी एक नीति के खिलाफ आंदोलन हो रहा है. जब हम अपने सपनों का देश बनाते हैं, तो उसकी लड़ाई भी उस राष्ट्रगान का सम्मान है, जो अपनी महान पंक्तियों में सबको एक नज़र से देखता है और सब उसे एक नज़र से देखते हैं. आपको याद होगा कि 2019 के नवंबर दिसंबर में नागरिकता कानून के विरोध में कितना बड़ा आंदोलन चला, सरकार के प्रतिनिधि भी कितने उग्र थे, आज दो साल का वक्त हो चला है, कानून पास होने के बाद भी इसके लागू करने के नियम नहीं बने हैं. इस साल अक्तूबर में सरकार ने संसद की समिति से सातवीं बार एक्सटेंशन लिया है क्योंकि वह कानून लागू करने के नियम नहीं बना पा रही है. 9 जनवरी 2023 तक के लिए यह एक्सटेंशन मिला है. राष्ट्रगान का एक और रुप है. अभी तक आपने देखा कि कैसे राज्य की संस्था पुलिस के प्रतिनिधि इसे गाकर नागरिकों में अपने प्रति भरोसा पैदा करते हैं, अब आप एक और पहलू देखिए.इसी आंदोलन के दौरान पूर्वी दिल्ली में दंगा हो जाता है और उस समय एक वीडियो सामने आता है. कहानी लंबी है मगर धीरज से सुनिएगा.
इस वीडियो में दावा किया गया था कि पुलिस के जवान कथित रुप से फैज़ान को गाली दे रहे हैं, उसके मज़हब को लेकर कथित रुप से गाली दे रहे हैं, पुलिस वाला फैज़ान को मार रहा है और राष्ट्रगान गाने के लिए कह रहा है. फैज़ान के साथ कुछ और नौजवान मार खा रहे हैं. फैज़ान को इतनी चोट लगी कि वह 26 फरवरी 2020 के दिन दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नरायाण अस्पताल में दम तोड़ देता है. मीडिया रिपोर्ट में फैज़ान उत्तर पूर्वी दिल्ली के करदमपुरी का रहने वाला बताया गया है. मीडिया रिपोर्ट में लिखा है कि पुलिस वाले फैज़ान से कह रहे थे कि भारत के प्रति निष्ठा है इसे साबित करने के लिए राष्ट्रगान गाए. दो दिनों तक उसे पुलिस हिरासत में भी रखा गया. अगस्त 2021 की इंडियन एक्सप्रेस में महेंदर सिंह मनराल की एक खबर मिली है कि दिल्ली दंगों की जांच कर रहे विशेष दल ने 100 से अधिक पुलिस वालों का इंटरव्यू किया है. सभी के ड्यूटी चार्ट देखे हैं. 17 महीने के बाद तीन पुलिस वालों की पहचान की गई है. उनका लाई डिटेक्टर टेस्ट भी हुआ है. अखबार ने किसी वरिष्ठ अधिकारी से बातचीत के आधार पर लिखा है. टाइम्स आफ इंडिया की यह ख़बर फरवरी 2022 की है, लिखा है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा था कि फैज़ान के मामले में जांच में कोताही बरती जा रही है. फैज़ान की मां किस्मतुन ने अदालत से मांग की थी कि उनके बेटे की मौत के मामले की SIT जांच की जाए. इनकी वकील वृंदा ग्रोवर का कहना है कि पुलिस ने अवैध रुप से फैज़ान को हिरासत में रखा और घायल होने के बाद उसका सही से इलाज नहीं किया गया जिसके कारण वह मर गया. इस खबर के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस की खिंचाई करते हुए कहा कि आपने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर ली? पांच बच्चों को मारा गया गया था, एक मर गया. चार बजे हैं, क्या आपने उनसे पहचान कराई है? यह तो हत्या का मामला है. है कि नहीं. इस केस में आपने चश्मदीद का सहारा नहीं लिया है. आज तक पुलिस ने परवाह नहीं की कि किसी गवाह का बयान दर्ज हो. किस तरह की आप जांच कर रहे हैं.
अब यह खबर इंडियन एक्सप्रेस के महेंद्र सिंह मनराल की है जो जून 2022 की यानी दिल्ली हाईकोर्ट के फटकार के तीन महीने बाद की है. खबर कहती है कि फैज़ान को वीडियो क्लिप में देखा गया था कि वह ज़मीन पर घायल पड़ा है, पुलिस वाले वंदे मातरम और राष्ट्रगान गाने के लिए कह रहे हैं. 23 साल के फैज़ान की मौत के दो साल से अधिक समय हो गए हैं, अब जाकर दिल्ली पुलिस ने इस वीडियो में दिख रहे पुलिस वालों को पकड़वाने के लिए एक लाख का इनाम घोषित किया है यह खबर सूत्रों के हवाले से लिखी गई है, हम इस पर ज़ोर देना चाहते हैं क्योंकि हम पुष्टि नहीं कर सकते. अगर ऐसा हो तो सोचिए वीडियो में पुलिस वाले दिख रहे हैं, उनकी पहचान के लिए एक लाख का इनाम घोषित किया जा रहा है. क्या ये लोग ड्यूटी पर नहीं आते होंगे, इन्हें सैलरी नहीं मिलती होगी? खबर में लिखा है कि इस केस की जाचं कर रहे जांच अधिकारी को बदल दिया गया है. एक्सप्रेस के अलावा यह ख़बर कुछ और जगहों पर छपी है.
इस एपिसोड को दोबारा ध्यान से देखिएगा, सर्दी के दिन है, मगर सर्दी के कारण नहीं, जिन घटनाओं का विवरण दिया गया है, उनके कारण हड्डियों में सिहरन पैदा हो जाएगी. ईरान के फुटबॉल खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान गाने से इंकार कर दिया. उनके इस कदम की गूंज ईरान में भी होगी लेकिन भारत में भी हो रही है. देश का सम्मान करना, अपने नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करना है. हमारे हीरो गंजी अंडरवियर के विज्ञापन में ही महाबली लगते हैं लेकिन जब किसी गलत के विरोध की बात होती है तो महाबली कंबल में छिप जाते हैं. ईरान की अभिनेत्री हेंगामेह गजियानी ने सोशल मीडिया पर ये पोस्ट किया
और कितने बच्चों, टीनएजर्स, युवाओं की हत्या करेंगे? इतना ख़ून बहाना काफी नहीं? मुझे आपसे नफ़रत है. आपकी ऐतिहासिक छवि से भी. ये शायद मेरा आख़िरी पोस्ट हो. अब से मुझे कुछ भी हो, मैं हमेशा आख़िरी साँस तक इरान के लोगों के साथ हूँ.
हमारी सहयोगी कादंबिनी शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 16 सितंबर को 22 की माहसा अमीनी की morality police की हिरासत में मौत के बाद जो आंदोलन शुरु हुआ है, वह रुकने का नाम नहीं ले रहा है, तब भी जब ईरान पुलिस की कार्रवाई में अब तक 419 लोगों की मौत की ख़बर है और पंद्रह हज़ार से जायेगा हिरासत में हैं. इनमें ज़्यादातर युवा है. ईरान की टीम के कई खिलाड़ियों ने ईरान की महिलाओं के समर्थन में सोशल मीडिया की प्रोफाइल से अपनी तस्वीरें हटा ली. प्रोफाइल की जगह खाली छोड़ दी. मीडिया रिपोर्ट है कि महिलाओं के आंदोलन का साथ देने वालों को मृत्युदंड दिया जा रहा है, ऐसे में यह कदम और भी साहसिक हो जाता है.
11 नवंबर की खबर है, गार्डियन की, कुर्दिश कलाकार औऱ गायक समन यासिन ने महिलाओं के आंदोलन का साथ दिया तो इस आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अब मृत्यु दंड का खतरा मंडरा रहा है. 17 नवंबर की BBC की खबर है कि ईश्वर के प्रति शत्रुता रखने के आरोप में चार लोगों को मृत्यु दंड की सज़ा दी गई है. ये लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल थे. इसके बाद भी आंदोलन थम नहीं रहा है. हर दिन कोई न कोई बड़ी हस्ती इसके समर्थन में आ जा रही है. संयुक्त राष्ट्र ने भी ईरान सरकार से कहा है कि लोगों को मृत्यु दंड देना बंद करे.ऐसी खबरें छप रही हैं कि एक हज़ार लोगों के खिलाफ ट्रायल चल रहा है जिन्हें मृत्यु दंड की सज़ा हो सकती है. वहां के सांसद भी न्यायपालिका से मांग कर रहे हैं कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो. सोचिए सांसद भी जनता के खिलाफ है.
ईरान के फुटबॉल खिलाड़ियों ने राष्ट्रगान न गाकर दुनिया को झकझोर दिया है. अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाकर राष्ट्र के नाम पर किए जा रहे ज़ुल्मों से पर्दा हटा दिया है. वर्ना दुनिया धीरे-धीरे इन खबरों को भूलने लगी थी. ग्लोबल विश्व में ग्लोबल होने का मतलब चीन का बना सामान जापान में बेचना नहीं है बल्कि हर मुल्क के नागरिकों पर हो रहे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ खड़ा होना है. ग्लोबल नागरिक केवल उपभोक्ता नहीं होता है.
कोलकाता में बीजेपी के कार्यकर्ता मच्छरदानी ओढ़ कर ममता सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. इनके हाथ में डेंगू मच्छर का पुतला भी है. इनका कहना है कि राज्य में डेंगू के मामले काफी बढ़ गए हैं और सरकार कुछ नहीं कर रही है. डेंगू कुछ केस में बहुत जानलेवा साबित हो रहा है इसिलए सतर्क रहने की ज़रूरत है. याद रखना ज़रूरी है कि तमाम लड़ाइयों के साथ साथ हमें और आपको इन जानलेवा मच्छरों से भी लड़ना है.
बच्चों की बीमारी खसरा यानी मीज़ल्ज़, जिसका देश में लगभग ख़ात्मा होता दिख रहा था, अचानक तेज़ी से पाँव पसार रहा है. आर्थिक राजधानी मुंबई की बस्तियों में एक हफ़्ते में ही तीन गुना मामलों में तेज़ी है. अब तक 9 बच्चों की संदिग्ध मौत इस बीमारी से हो चुकी है. दो साल तक टीके से दूरी, या वायरस में कुछ बदलाव?कारणों को ढूँढने की कोशिश हो रही है. तब तक कोरोनाकाल की तरह युद्धस्तर पर टीम बनाकर घर-घर जाँच और टीकाकरण की रफ़्तार तेज़ है.