रवीश कुमार (Ravish Kumar) ने अपने शो 'Prime Time With Ravish Kumar' के ताजा एपिसोड (21 जुलाई, 2021) में कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) की दूसरी लहर के दौरान (अप्रैल-मई के बीच) ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत पर केंद्र सरकार द्वारा संसद में दिए गए जवाब की आलोचना की है और पूछा है कि क्या देशभर के वे सभी लोग झूठ बोल रहे हैं जिनके परिजन ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर मर गए? क्या सारे अखबार झूठ बोल रहे हैं, जिन्होंने उस वक्त ऐसी खबरें छापी थीं या वो अस्पताल प्रबंधन झूठ बोल रहा है, जहां मरीजों ने ऑक्सीजन न होने के चलते तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया था.
रवीश ने पूछा, "क्या आप बिल्कुल ऐसे किसी को नहीं जानते जो दूसरी लहर के समय ऑक्सीजन के लिए मारे-मारे फिर रहे थे, या बिल्कुल ऐसे किसी को नहीं जानते जिनकी मौत अस्पताल के भीतर ऑक्सीजन की सप्लाई ठप्प हो जाने के कारण हुई? फिर सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड मांगने वाले वो लोग कौन थे?"
उन्होंने तंज कसा, "संसद में मोदी सरकार की स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ प्रवीण भारती पवार के एक जवाब ने आप सभी को फेक न्यूज़ में बदल दिया है. पहले फेक न्यूज़ ने आपको बदला और अब आपको ही फेक न्यूज़ में बदल दिया गया है."
रवीश ने पूछा है कि क्या राज्य सरकारें लिख कर दे देंगी तो उसे संसद में जस का तस रख दिया जाएगा? उन्होंने कहा, "जिस संसद को जनता की आवाज़ कहा जाता है, क्या यह वाकई जनता की आवाज़ है कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई. तो जो ऑक्सीजन की सप्लाई कम होने से अस्पतालों में तड़प कर मर गए, वो कौन थे? क्या वे फेक न्यूज़ थे?"
उन्होने कहा कि बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 12 लोगों के मरने की खबर सिर्फ अख़बार की खबर नहीं थी, जो रद्दी में बदल गई. जिन 12 लोगों की मौत तड़पकर हुई थी उनके परिजन आज भी सिसक रहे हैं. जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो जाने से 25 लोगों की मौत की खबर आज भी परिजनों के ज़हन में गूंज रही है. गंगाराम अस्पताल में भी 25 लोगों के ऑक्सीजन की कमी से मरने की ख़बर आई थी.
रवीश ने पूछा कि क्या जून के पहले हफ्ते में दिल्ली सरकार भी एक झूठा फैसला बता रही थी कि जिन लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है, सरकार उनके परिवार को पांच लाख रुपये का मुआवज़ा देगी? पत्रकार ने पूछा कि जब लोग ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरे थे, तब दिल्ली सरकार ने मुआवज़े का एलान कैसे कर दिया?
उन्होंने यह भी पूछा कि यह भी कैसे भूल जाएं कि सुप्रीम कोर्ट तक में ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर बहस चली और एक नेशनल टास्क फोर्स बना? उन्होंने कहा कि चंद ज्ञात घटनाओं को ही जोड़ लें तो ऑक्सीजन की कमी से मरने वालों की संख्या 178 से अधिक हो जाती है. यही नहीं समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर न मिलने से कितने लोग मरे इसका कोई हिसाब नहीं है. 'द इंडियन एक्सप्रेस' की खबर के हवाले से उन्होंने पूछा कि क्या मई के महीने के एक रविवार इंडियन एक्सप्रेस की वह रिपोर्ट भी झूठी थी, जिसमें उन लोगों का ब्यौरा छपा है, जिनकी मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गई.
रवीश ने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है कि जिन लोगों की मौत कोविड से हुई है उन्हें कोविड की मौत में ही गिना जाएगा भले ही उन्हें दूसरी बीमारियां रही हों. उन्होंने कहा, "हम और आप नहीं जानते कि राज्य मौतों की गिनती केंद्र को किस रूप में भेजते हैं, क्या बीमारियों को अलग-अलग श्रेणियों में बांट कर मौत का डेटा भेजा जाता है या राज्य सिर्फ कुल मौतों का डेटा भेजता है? क्या राज्य समय-समय पर अपने फार्मेट में नए कारणों को जोड़ते भी हैं या नहीं?
उन्होंने कोविड से हुई मौत के सही आंकड़ों पर भी सवाल उठाए हैं और कहा, "अभी तक हम नहीं जानते कि दूसरी लहर में कितने लोग मरे हैं. दुनिया भर के विशेषज्ञ कई बार बता चुके हैं कि भारत में मरने वालों की सरकारी संख्या सही नहीं है. उससे कहीं ज्यादा लोग मरे हैं. भारत के ही कई अखबारों ने तरह-तरह से आंकड़े रखे कि दूसरी लहर के नरसंहार में मरने वालों का आंकड़ा झूठा है. सही नहीं है. अदालतों ने फटकार लगाई है इसके बाद भी सरकार के लिए मरने वालों की संख्या का मामला मामूली भूल-चूक सुधार का ही बना रहा."
रवीश ने बताया कि देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यिन, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अभिषेक आनंद और जस्टिस सेंडुफर ने मिलकर एक आंकड़ा तैयार किया है, जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश का जो सरकारी आंकड़ा है कोविड से मरने वालों का, उसमें शक की बहुत गुज़ांइश है. उन्होंने बताया कि अरविंद, अभिषेक और जस्टिन की रिपोर्ट बताती है कि एक संभावना है कि देश में 34 लाख लोग मरे हैं और एक संभावना यह भी है कि 47 लाख से अधिक लोग मरे हैं. सोचिए 47 लाख लोगों की मौत हुई है और बताया जा रहा है सवा चार लाख. यानी 40 लाख लोगों की मौत का हिसाब नहीं मिल रहा है.
रवीश ने तल्ख लहजे में कहा, "जब मरने वालों की संख्या 47 लाख से 4 लाख की जा सकती है तो इसका मतलब है कि अब फेक न्यूज़ का भी काम ख़त्म हो गया है. लगातार प्रोपेगैंडा से लोगों की यह हालत हो गई है. वे अब दूसरी सूचना स्वीकार ही नहीं कर पाएंगे. शॉर्ट सर्किट हो जाएगा. दिमाग़ वही स्वीकार करता है जो व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी कहती है. इसलिए अब आपको किसी न्यूज़ की ज़रूरत ही नहीं है. आपके सामने मौत हुई है, लाश पड़ी है और सरकार कह सकती है कि यह जो मरा हुआ है, दरअसल मरा हुआ नहीं है और आप उसे NRI अंकिल को वीडियो कॉल पर बता देंगे कि कोई नहीं मरा है."