- आरएसएस के संगठन में अगले साल कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं
- संघ के अंदर बदलावों पर पिछले काफी वक्त से चर्चा चल रही है
- अगर संघ के अंदर सहमति बनी तो 2027 से इसे लागू किया जा सकता है
आरएसएस की जिस संगठन क्षमता से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह खासे प्रभावित हैं, उसमें आमूल-चूल परिवर्तन पर विचार हो रहा है. आरएसएस के शताब्दी वर्ष के समापन के बाद संघ इस बारे में अंतिम निर्णय कर सकता है. इसमें जमीनी स्तर पर संघ के ढांचे को मजबूत करना और संगठन का विकेंद्रीकरण करना शामिल है. आरएसएस सूत्रों के अनुसार अगले साल मार्च में होने वाली आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में इस बारे में निर्णय किया जा सकता है. यह संघ की सर्वोच्च निर्णायक संस्था है जिसमें सारे बड़े फैसले किए जाते हैं.
संघ में बदलाव पर जारी है चर्चा
दरअसल, इस साल 30 अक्तूबर से एक नवंबर तक जबलपुर में हुई आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में संगठन में आमूलचूल परिवर्तन करने के सुझाव पर चर्चा हुई. इसके बाद संघ के भीतर इस सुझाव पर चर्चा जारी है और अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ है. अगर अगले साल मार्च में इस पर सहमति बनती है संगठन के ये बड़े परिवर्तन 2027 से लागू किए जा सकते हैं.
प्रांत व्यवस्था हो जाएगी खत्म?
इस सुझाव के अनुसार जमीनी स्तर पर संघ को मजबूत करने के लिए संगठन का ढांचा बदलने की आवश्यकता है. इसमें सबसे बड़ा कदम प्रांत व्यवस्था को समाप्त करना है. अभी आरएसएस 11 क्षेत्रों और 46 प्रांतों के माध्यम से काम करता है. सुझाव दिया गया है कि 46 प्रांतों की जगह 75 से अधिक संभाग बनाए जाएं जिससे नेतृत्व और जमीनी इकाइयों के बीच की दूरी घटेगी और फैसले तेजी से होंगे. इसके जरिए सामाजिक कार्य पर जोर दिया जाएगा तथा युवाओं को जोड़ने की कवायद होगी.
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जानिए आरएसएस की क्या है तैयारी
हालांकि यह कदम एक साथ करने के बजाए चरणबद्ध ढंग से करने का सुझाव दिया गया है. संघ के सूत्रों के मुताबिक प्रांत प्रणाली को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का सुझाव आया है. 11 क्षेत्रों को घटाकर 9 बड़े क्षेत्र बनाए जा सकते हैं. इसमें कई राज्यों का पुनर्गठन हो सकता है जैसे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को एक ही क्षेत्र में रखा जा सकता है. जबकि राजस्थान को उत्तरी क्षेत्र में मिलाया जा सकता है. प्रांत प्रचारक के स्थान पर राज्य प्रचारक नियुक्त किए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए अभी उत्तर प्रदेश में सात प्रांत प्रचारक हैं। इनके स्थान पर एक ही राज्य प्रचारक हो सकता है.
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संभागीय प्रचारक व्यवस्था होगी शुरू
संभागीय प्रचारक की नई व्यवस्था शुरू करने का प्रस्ताव है. इसमें हर संभाग का नेतृत्व एक अलग संभाग प्रचारक करेगा. पूरे देश में 75 से अधिक संभागीय प्रचारक बनाए जा सकते हैं। जबकि विभाग और जिला प्रचारक व्यवस्था पहले की तरह जारी रखने का सुझाव दिया गया है.
कई वर्षों से चल रही है चर्चा
आरएसएस सूत्रों के अनुसार संगठन के ढांचे में बदलाव की तैयारी के लिए पिछले कुछ वर्षों से विचार-विमर्श चल रहा है. चूंकि यह शताब्दी वर्ष है, इसलिए इस वर्ष संगठन के ढांचे में कोई बदलाव न करने का निर्णय हुआ है. संघ सूत्रों के अनुसार शताब्दी वर्ष के समापन के बाद ही अंतिम निर्णय होगा जिसका एक बड़ा उद्देश्य संगठन को मजबूती देना और बदलते समय के अनुसार विकेंद्रीकरण करना है. बताया गया है कि अगर संघ के संगठन में बदलाव का निर्णय होता है तो इसी के अनुसार बीजेपी और आरएसएस के बीच समन्वय की व्यवस्था में भी बदलाव हो सकता है. गौरतलब है कि बीजेपी संगठन में राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक संगठन का दायित्व संघ से आए प्रचारक संभालते हैं.













