RSS प्रमुख ने काशी से हिंदू एकता का संदेश क्यों दिया, कहां होगा शाखाओं का विस्तार

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पिछले दिनों पांच दिन की काशी यात्रा पर थे. इस दौरान उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. इनमें उनका जोर हिंदू एकता और आएसएस की शाखाओं के गांव तक विस्तार पर था. आइए जानते हैं कि भागवत हिंदू एकता पर जोर क्यों दे रहे हैं.

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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत इन दिनों उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं. पिछले तीन दिन वो वाराणसी में रहे. इस दौरान दिया उनका एक बयान सुर्खियां बटोर रहा है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मंदिर, पानी और श्मशान घाट जैसी चीजें हर हिंदू को बिना किसी भेदभाव के मिलनी चाहिए, चाहे वह किसी की भी जाति के हों. संघ प्रमुख का यह बयान तब आया है, जब आरएसएस अपनी स्थापना का सौवां वर्ष मना रहा है. आइए जानते हैं कि आरएसएस प्रमुख के इस बयान के मायने क्या हैं.

काशी से निकला आरएसएस प्रमुख का संदेश

मोहन भागवत वाराणसी में पांच दिन तक रहे. इस दौरान वो कई कार्यक्रमों में शामिल हुए. इस दौरान उनका जोर हिंदुओं की एकता और आरएसएस की शाखाओं के विस्तार पर रहा. उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में भारत में रहने वाला हर व्यक्ति शामिल है, चाहे वह मुस्लिम हो या हिंदू, क्योंकि वे सभी भारत का हिस्सा हैं. इसलिए हमें सभी को साथ लेकर चलना है.
संघ को लग रहा है कि प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के बाद हिंदुत्व को उभार मिला है. उसका मानना है कि महाकुंभ ने हिंदुओं की जातियों को एक किया है. महाकुंभ में सब लोग हिंदू बनकर शामिल हुए, किसी एक जाति से जुड़कर नहीं. संघ की कोशिश महाकुंभ से उभरी हिंदू एकता की तस्वीर को कायम रखना है.इसलिए संघ प्रमुख ने हिंदुओं के लिए एक मंदिर, श्मशान और पानी का संदेश दिया.

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वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना करते आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत.

काशी में मोहन भागवत ने छात्रों के एक समूह से कहा कि संघ का उद्देश्य हिंदू धर्म को मजबूत करना और हिंदुत्व की विचारधारा को फैलाना है.उन्होंने कहा कि संघ भारतीय संस्कृति और उसके सभ्यता के मूल्यों को बनाए रखने के आदर्श को बढ़ावा देता है.संघ प्रमुख ने काशी प्रवास से स्वयंसेवकों को सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन,पर्यावरण सुरक्षा और स्वदेशी जागरण का संदेश दिया. संघ इसे पंच प्रण का नाम देता है. उसका मानना है कि इससे बेहतर नागरिकों के निर्माण की दिशा में मदद मिलती है. इसके लिए संघ प्रमुख ने शाखाओं के विस्तार और उन्हें गांवों तक ले जाने और शाखाओं से युवाओं को जोड़ने पर जोर दिया. 

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आरएसएस की हिंदू एकता

आरएसएस बहुत पहले से ही हिंदू एकता की वकालत करता रहा है. वह समाज से छुआछूत और जाति आधारित भेदभाव मिटाने के लिए प्रयास करता हुआ दिखता रहा है. लेकिन अब जब संगठन अपने सौ साल पूरे कर रहा है तब भी ये समस्याएं जस-की तस समाज में बनी हुई हैं. देश में जोर पकड़ती जातीय जनगणना की मांग ने भी आरएसएस को हिंदू एकता की इस बात को प्रमुखता से उठाने के लिए प्रेरित किया है. आरएसएस या उसके आनुषांगिक संगठनों ने कभी भी खुलकर जातीय जनगणना की वकालत नहीं की. लेकिन पिछले साल आरएसएस ने इस संवेदनशील मामला बताते हुए इसका राजनीतिक या चुनाव के उद्देश्य से इस्तेमाल न करने की बात कही. यह बयान एक तरह से जातीय जनगणना को आरएसएस की मौन सहमति जैसा था. जातीय जनगणना को सवर्ण और पिछड़ी जातियों की गोलबंदी के रूप में देखा जा रहा है. इसे संघ विराट हिंदू एकता के लिए खतरा मानता है.इनके अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों से जातीय आधार पर उत्पीड़न और श्मशान और मंदिर जैसी जगहों पर भेदभाव की शिकायतें आती रहती हैं. इन शिकायतों ने भी आरएसएस को बृहद हिंदू एकता का बयान देने के लिए प्रेरित किया है.   

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मोहन भागवत का कहना है कि आरएसएस का उद्देश्य हिंदू धर्म को मजबूत करना और हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार है.

बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान उत्तर प्रदेश में उठाना पड़ा था. यह घाटा इतना बड़ा था कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल करने से चूक गई. इसके पीछे संघ के स्वयंसेवकों की नाराजगी को एक बड़ा कारण बताया गया. वहीं विपक्ष ने इस चुनाव में आरक्षण और संविधान पर खतरे को मुद्दा बनाया.वह दलितों-पिछड़ों को यह बात समझाने में सफल रहा कि अगर बीजेपी की 400 सीटें आ गईं तो उनका आरक्षण और संविधान खतरे में पड़ जाएगा. इस नैरेटिव को जनता तक पहुंचा पाने में इंडिया गठबंधन सफल रहा.इसका परिणाम रिजल्ट में नजर आया. बीजेपी को उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी नुकसान उठाना पड़ा था.दरअसल आरक्षण और संविधान का मुद्दा दलितों-पिछड़ों के लिए भावनात्मक मुद्दा है.  दलित और पिछड़ा समाज ही हिंदू समाज के एक बड़े हिस्से की संरचना करता है.यह चुनावी राजनीति का एक बड़ा हिस्सा भी है. इसे देखते हुए ही आरएसएस ने इस वर्ग तक अपनी बात पहुंचाने के लिए हिंदू एकता और गांवों तक शाखा की पहुंच बढ़ाने की बात पर जोर दे रहा है.  

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