रणबीर नहर और तुलबुल प्रोजेक्ट से भारत करने जा रहा पाकिस्‍तान का डबल इंतजाम, बूंद-बूंद के लिए तरसेगा!

पाकिस्तान तुलबुल प्रोजेक्ट का विरोध करता है, क्योंकि उसे लगता है कि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन है. पाकिस्तान का कहना है कि इस परियोजना से उसके हिस्से का पानी प्रभावित होगा.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
तुलबुल प्रोजेक्ट क्यों जरूरी है, पाकिस्तान क्यों बेचैन होगा
नई दिल्‍ली:

रणबीर नहर योजना को बढ़ाने और तुलबुल प्रोजेक्ट के जरिए भारत ने पाकिस्‍तान को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसाने का डबल इंतजाम कर लिया है. भारत, पाकिस्‍तान पर वाटर स्‍ट्राइक करते हुए रणबीर नहर की लंबाई को दोगुना करने की प्‍लानिंग कर रहा है. उधर, झेलम नदी पर तुलबुल प्रोजेक्ट फिर शुरू कर करने की खबरें सामने आ रही है, जिसे पाकिस्‍तान के विरोध के बाद 1987 में रोक दिया गया था. पाकिस्‍तान, सिंधु जल संधि का हवाला देते हुए इन प्रोजेक्‍ट्स का विरोध करता रहा है. लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्‍तान को घेरने के लिए सिंधु जल संधि को ब्रेक कर दिया. ऐसे में अब पाकिस्‍तान का विरोध कोई मायने नहीं रखता है. आइए आपको समझाते हैं कि भारत के रणबीर नहर और तुलबुल प्रोजेक्ट से पाकिस्तान क्यों बेचैन हो रहा है.

रणबीर नहर क्या है?

रणबीर नहर जम्मू क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है, जो चिनाब नदी से पानी लेकर जम्मू के उपजाऊ मैदानों की सिंचाई करती है. यह नहर महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल के दौरान बनी थी, जिसे बनने में ब्रिटिश सिंचाई विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में बनाया गया था. इस नहर का नाम उनके सम्मान में रखा गया है. यह नहर जम्मू के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में योगदान देती है. इसकी लंबाई बढ़ाने बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है, जिससे किसानों को अधिक पानी मिलेगा और उनकी फसल की उत्पादकता बढ़ेगी.

रणबीर नहर के दोहरीकरण का प्‍लान 

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्‍तान के साथ सिंधु जल संधि को निलंबित कर बड़ा झटका दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, अब भारत पाकिस्‍तान पर वाटर स्‍ट्राइक करते हुए रणबीर नहर की लंबाई को दोगुना करने की प्‍लानिंग कर रहा है. हालांकि, भारत सरकार की ओर से इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन इससे पहले ही पाक सरकार की ओर से चिंता व्‍यक्‍त की जाने लगी है. मौजूदा समय में यह नहर लगभग 60 किलोमीटर लंबी है, जिसे 120 किलोमीटर किये जाने की योजना है. विस्तार किए जाने पर भारत हर सेकेंड में 150 क्यूबिक मीटर पानी चिनाब नदी से डायवर्ट कर सकता है, जबकि वर्तमान में यह मात्रा केवल 40 क्यूबिक मीटर है.

Advertisement

पाकिस्‍तान को क्‍या होगा नुकसान? 

पाकिस्‍तान में अगर चिनाब नदी का पानी कम पहुंचता है, तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर भारत इस पानी को मोड़ने में कामयाब हो गया, तो पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र पर इसका बेहद बुरा असर पड़ेगा. पाकिस्‍तानी अखबार के मुताबिक, भारत में इस नहर के विस्तार को लेकर चर्चा जारी है, भले ही भारत की ओर से इस पर कोई आधिकारिक बयान अब तक नहीं आया हो. लेकिन इसके गंभीर परिणाम पाकिस्‍तान को देखने को मिल सकते हैं.  

Advertisement

झेलम का तुलबुल प्रोजेक्ट क्या है?

झेलम नदी का तुलबुल प्रोजेक्ट एक नौवहन बैराज योजना है. यह प्रोजेक्‍ट जम्मू और कश्मीर के बारामुला में वुलर झील पर प्रस्तावित है. तुलबुल प्रोजेक्ट का मकसद झेलम नदी के बहाव को नियंत्रित करने और नौवहन को आसान बनाने के लिए बनाई जा रही है. हालांकि, पाकिस्तान इस प्रोजेक्‍ट का विरोध करता रहा है, क्योंकि उसे लगता है कि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन है. पाकिस्तान का कहना है कि इस परियोजना से उसके हिस्से का पानी प्रभावित होगा. भारत का कहना है कि इस परियोजना से पानी की खपत नहीं होगी, बल्कि केवल सर्दियों में पानी को नियंत्रित किया जाएगा. लेकिन जब भारत ने सिंधु जल संधि को ही निलंबित कर दिया है, तो पाकिस्‍तान के विरोध के अब कोई मायने नहीं जाते हैं. 

Advertisement

क्‍यों रुका था तुलबुल प्रोजेक्ट

तुलबुल प्रोजेक्ट को वुलर बैराज के रूप में भी जाना जाता है, जिस पर विवाद काफी लंबे समय से चला आ रहा है. दरअसल, यह झेलम नदी पर एक नेविगेशन लॉक-कम-कंट्रोल स्‍ट्रक्‍चर है. लेकिन सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) का हवाला देते हुए पाकिस्तान ने इसे 1987 में रुकवा दिया था. अब इस प्रोजेक्‍ट को फिर से शुरू करने पर विचार हो रहा है. पूरे साल नौवहन को बनाए रखने के लिए वुलर झील में पानी की न्यूनतम गहराई जरूरी है. हालांकि, सर्दियों में केवल 2.5 फीट गहरे पानी के कारण नौवहन योग्य नहीं रह जाता है. अब इसे अनंतनाग से श्रीनगर और बारामुल्ला तक 20 किलोमीटर लंबे मार्ग वर्ष भर नौवहन सुनिश्चित करने का विचार हो रहा है. इस परियोजना में झेलम में न्यूनतम 4.5 फीट जलस्तर बनाए रखने के लिए झील से पानी छोड़ने की योजना है भारत ने झील के मुहाने पर 439 फीट लंबा बैराज बनाना शुरू कर दिया था. लेकिन पाकिस्तान ने आपत्ति के बाद साल 1987 में निर्माण कार्य रोक दिया गया था.

Advertisement

तुलबुल प्रोजेक्ट क्यों जरूरी है, पाकिस्तान क्यों बेचैन होगा

पाकिस्तान तुलबुल प्रोजेक्ट का विरोध करता है, क्योंकि उसे लगता है कि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन है. पाकिस्तान का कहना है कि इस परियोजना से उसके हिस्से का पानी प्रभावित होगा.  तुलबुल प्रोजेक्ट का मकसद झेलम नदी में जल प्रवाह को नियंत्रित करना है, ताकि अक्टूबर से फरवरी के बीच जब पानी कम हो जाता है, तब भी नाव यातायात बना रहे. पाकिस्तान का दावा करता रहा है कि तुलबुल प्रोजेक्ट एक तरह का स्टोरेज बैराज है और सिंधु जल संधि के अनुसार भारत को झेलम नदी की मुख्य धारा पर जल का संग्रह करने का अधिकार नहीं है. पाकिस्तान का दावा है कि तर्क है कि तुलबुल प्रोजेक्ट से करीब 0.3 मिलियन एकड़ फीट (0.369 बिलियन घन मीटर) तक पानी संग्रह कर सकता है. भारत के लिए तुलबुल प्रोजेक्ट बेहद मायने रखता है, क्‍योंकि इससे वुलर झील से जल निकासी की प्रक्रिया को संतुलित करने में मदद करेगी, जिससे निचले क्षेत्रों में जल-जमाव और बाढ़ का खतरा कम होगा. यह जम्‍मू-कश्‍मीर के लोगों की वर्षों से मांग भी रही है. 

क्‍या है सिंधु जल संधि 

सिंधु समझौता सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली नदियों के पानी से जुड़ा है। पानी का उपयोग सिंधु जल संधि के तहत होता है, जिसकी मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी और सितंबर 1960 में इस पर भारत-पाकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत सिंधु और उसकी सहायक नदियों को दोनों देशों के बीच विभाजित कर दिया गया. भारत को तीन पूर्वी नदियों - सतलुज, ब्यास और रावी - के पानी का उपयोग करने की अनुमति दी गई, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों - सिंधु, झेलम और चिनाब - का अधिकांश हिस्सा दिया गया.

ये भी पढ़ें:- PM मोदी के मिशन पर थरूर और ओवैसी! जानें दोनों को क्यों चुना गया, क्या है प्लान 'पाक बेनकाब'

Featured Video Of The Day
Haryana Board 10वीं का रिजल्ट हुआ जारी, यहां देखें ताजा Update