योग गुरु बाबा रामदेव की दवा कंपनी दिव्या फार्मेसी की पांच दवाओं के प्रोडेक्शन पर उत्तराखंड सरकार द्वारा बैन लगाने की खबरों का खंडन किया गया है. पतंजलि ग्रुप की फार्मा कंपनी ने इन खबरों को लेकर एक "आयुर्वेद-विरोधी ड्रग माफिया" पर साजिश का आरोप लगाया है. रिपोर्ट्स में बताया गया था कि उत्तराखंड सरकार ने भ्रामक विज्ञापनों का हवाला देते हुए दिव्या फार्मेसी की पांच दवाओं के प्रोडेक्शन पर बैन लगा दिया है.
कंपनी की ओर से कहा गया है कि बड़े अखबारों की खबरों में जिस आदेश का हवाला दिया गया है, उसकी कॉपी उन्हें नहीं मिली है. साथ ही कहा कि लेकिन "आयुर्वेद विरोधी ड्रग माफिया की संलिप्तता साफ है".
कंपनी ने एक बयान में कहा, "पतंजलि के सभी प्रोडेक्ट्स और दवाओं को बनाने में वैधानिक प्रक्रियाओं और अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हुए निर्धारित मानकों का पालन किया जाता है. इसके लिए बड़े स्तर की रिसर्च और क्वालिटी का पूरा ध्यान रखा जाता है. इसके लिए 500 से ज्यादा वैज्ञानिकों की मदद ली जाती है.'
साथ ही कहा गया है, 'आयुर्वेद और यूनानी सर्विसेज उत्तराखंड द्वारा प्रायोजित तरीके से 09.11.2022 को जो खत साजिश के तहत लिखा और मीडिया में सर्कूलेट किया गया है, वह अभी तक किसी भी रूप में पतंजलि संस्थान को नहीं मिला है.'
कंपनी की ओर से कहा गया है, 'या तो विभाग अपनी गलती सुधार कर इस साजिश में शामिल व्यक्ति के खिलाफ उचित कार्रवाई करे. वरना इस साजिश के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को सजा दिलाने के साथ-साथ पतंजलि को हुए संस्थागत नुकसान की भरपाई के लिए कानूनी कार्रवाई की जाएगी.'
कुछ अखबारों की रिपोर्ट्स में गुरुवार को कहा गया था कि उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि आयुर्वेद को उन पांच प्रोडेक्ट्स के प्रोडेक्शन को बंद करने के लिए कहा है, जिन्हें कंपनी ने ब्लड प्रेशर, मधुमेह, घेंघा, ग्लूकोमा और उच्च कोलेस्ट्रॉल के इलाज की दवा के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
न्यूज पेपर 'द टेलीग्राफ' की रिपोर्ट के मुताबिक, द आयुर्वेद एंड यूनानी लाइसेंसिंग अथॉरिटी, उत्तराखंड ने दिव्य फार्मेसी को मधुग्रित, आईग्रिट, थायरोग्रिट, बीपीग्रिट और लिपिडोम का प्रोडेक्शन बंद करने का निर्देश दिया है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आदेश उत्तराखंड आयुर्वेदिक और यूनानी सर्विसेज के लाइसेंस ऑफिसर डॉ. जीसीएस जंगपांगी ने जारी किया था और पतंजलि पर भ्रामक विज्ञापनों का आरोप लगाया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के नेत्र रोग विशेषज्ञ केवी बाबू द्वारा इस साल की जुलाई में दायर एक शिकायत के आधार पर यह कार्रवाई की गई है. साथ ही बताया गया है कि केवी बाबू ने 11 अक्टूबर को ईमेल के जरिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) को एक और शिकायत भेजी थी.