'रामायण' में भगवान राम का किरदार निभाने में कितनी मददगार रही अरुण गोविल की मुस्कुराहट?

अरुण गोविल ने बताया कि उन्हें रामायण में भगवान राम का चरित्र निभाने में कैसे उनकी मुस्कुराहट से मदद मिली.

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नई दिल्ली:

अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम होना है. इसे लेकर देश भर में तैयारी चल रही है.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) यजमान बनकर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ram Mandir Consecration)करेंगे. इस कार्यक्रम के लिए जानी-मानी हस्तियों समेत 6000 से ज्यादा लोगों को निमंत्रण भेजा गया है. रामायण (Ramayan)सीरियल में राम का चरित्र निभाने वाले अरुण गोविल (Arun Govil) से एनडीटीवी ने इस कार्यक्रम से पहले बात की. 

भगवान राम का चरित्र निभाने में कैसे मिली मदद?

रामायण (Ramayan)सीरियल के राम अरुण गोविल ने बताया कि उन्हें रामायण में भगवान राम का चरित्र निभाने में कैसे उनकी मुस्कुराहट से मदद मिली. अरुण गोविल ने कहा, "शुटिंग शुरू होने वाली थी.. हमारा मेकअप वैगरह सब हो गया... मैंने जब अपने आपको आइने में देखा तो अरुण गोविल नाम भगवान नहीं... इंसान दिख रहा था... मैंने कहा कि नहीं जो पावनता जो चाहिए मृदुलता चाहिए वो नहीं है इस चेहरे पर... इस बीच मुझे राजश्री के राजकुमार बड़जात्या की एक बात याद आई. उन्होंने कहा था कि अरुण जी आपकी स्माइल बहुत अच्छी है... इसका कहीं अच्छी तरह से इस्तेमाल कीजिएगा..." 

गोविल आगे बताते हैं, "मुझे नहीं पता कि मुझे वो बात कैसे याद आई उस वक्त... मैंने वो स्माइल ट्राई की और वो बहुत शानदार रहा... रामायण में वो स्माइल बहुत जगह है... लेकिन अलग स्माइल है.. वो सीरियस सीन्स में भी स्माइल इस्तेमाल हुई है.. लेकिन हर जगह अलग है... जो सीता जी के साथ रोमांटिक सीन हैं.. उसमें भी वो स्माइल है.. मां के साथ भी है... लेकिन हर जगह अलग स्माइल है... और अलग मैसेज पहुंचाती है... तो स्माइल ने बहुत बड़ा रोल अदा किया है..."

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ऑडियंस के सवालों के दिए जवाब
इंटरव्यू के दौरान अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया ने ऑडियंस के सवालों के भी जवाब दिए. एक लड़की ने अरुण गोविल से शाहरुख खान की फिल्म 'बाज़ीगर' के मशहूर डायलॉग "कभी-कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना पड़ता है, और हारकर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं" को अपने अंदाज में बोलने की अपील की. 

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राम के साथ हार-जीत नहीं होती
इसके जवाब में अरुण गोविल कहते हैं- "ये डायलॉग फिल्म में बहुत अच्छा लगा था. वास्तव में ये सच भी है. लेकिन राम के साथ ऐसा नहीं है कि कभी-कभी जीतने के लिए कुछ हारना भी पड़ता है. वहां जीत-हार नहीं होती. वहां केवल नाम होता है. बाज़ीगर शब्द तो भगवान राम के साथ या किसी भी परमात्मा के साथ बोलना शोभा नहीं देता." 

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