9 अगस्त को राखी और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की तिथि का संगम, व्यापारियों को 17 हजार करोड़ के व्यापार की उम्मीद

पिछले सालों की तरह इस साल भी चीन से आने वाली राखियों की कोई मांग नहीं है. व्यापारी वर्ग का पूरा जोर भारतीय राखियों और घरेलू उत्पादों की बिक्री पर है.

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इस साल 9 अगस्त को भारत की अनुपम संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक भाई-बहन का पवित्र पर्व रक्षाबंधन देश भर में मनाया जाएगा. इस साल का राखी त्यौहार विशेष ऐतिहासिक है क्योंकि इसी दिन ‘भारत छोड़ो आंदोलन' की वर्षगांठ भी है. इसलिए कैट यानी कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने देश भर के व्यापारियों से आग्रह किया है कि वो इस बार राखी त्यौहार को 'राष्ट्रभक्ति राखी उत्सव' के रूप में मनाएं. एक ओर जहां ये दिन भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक होगा, वहीं दूसरी तरफ देशभक्ति की भावना को भी जीवंत करेगा.

व्यापारियों ने राखी के लिए तैयारियां शुरू की

इस अनूठे संयोग को देखते हुए देशभर के व्यापारी वर्ग ने बड़े पैमाने पर राखी के त्यौहार पर राखी बिक्री हेतु बड़े स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं. एक अनुमान के अनुसार इस साल राखी पर देश भर में लगभग 17 हजार करोड़ रुपये का व्यापार होने की संभावना है.

'देश भर से महिला उद्यमी सैनिकों को भेजेंगी राखी'

चांदनी चौक से सांसद और कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि, 'हाल ही में भारत की तीनों सेनाओं के शौर्य और वीरता को सम्मान देने हेतु कैट की पहल पर देश भर से महिला उद्यमी तीनों सेनाओं के सैनिकों को राखियां भेजकर इस बात का एहसास कराएगी कि सारा देश उनके साथ है और उनका कृतज्ञ है. कैट इस संबंध में रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह से मिलकर सैनिकों के लिए उन्हें राखियों की एक खेप सौंपेगा. 

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कैट की वेद और धार्मिक कमेटी के चेयरमैन, प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य दुर्गेश तारे ने बताया कि, 'रक्षा बंधन का पर्व भद्रा रहित, अपराह्न काल में मनाने का शास्त्रीय विधान है. भद्रायां द्वै न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं हन्ति च फाल्गुनीति. इस साल रक्षा बंधन का पर्व प्रातःकाल से दोपहर 1.38 मिनट तक ही मनाना उत्तम रहेगा क्योंकि ये समय भद्रा से मुक्त और श्रवण नक्षत्र से युक्त है.'

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'राखियों की बिक्री में इनोवेशन का रहेगा बोलबाला'

प्रवीन खंडेलवाल ने बताया की, इस साल राखियों की बिक्री में इनोवेशन का बोलबाला रहने वाला है. अब की बार बाजारों में पारंपरिक राखियों के साथ-साथ नवोन्मेषी राखियों की भारी मांग देखी जा रही है, जिनमें प्रमुख रूप से इको-फ्रेंडली राखियां (मिट्टी,बीज,बांस व कपास से बनीं पर्यावरण-संवेदनशील राखियां), वहीं भारत थीम आधारित राखियां जैसे वोकल फॉर लोकल, हर घर तिरंगा, जय हिंद, वंदेमातरम, तिरंगे रंगों से सजी राखियां, फोटो और नाम वाली कस्टमाइज राखियां, डिजिटल QR कोड राखियां, वीडियो संदेश भेजने की सुविधा वाली राखियां शामिल हैं.

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'शहरों के मशहूर उत्पादों पर बनीं राखी'

प्रवीन खंडेलवाल ने ये भी बताया कि, इसके अतिरिक्त वसुधैव कुटुंबकम सहित देश के विभिन्न शहरों के मशहूर उत्पादों को लेकर भी अनेक प्रकार की राखियां बनाई गई हैं, जिनमें मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ की कोसा राखी,कलकत्ता की जूट राखी, मुंबई की रेशम राखी, नागपुर में बनी खादी राखी, जयपुर में सांगानेरी कला राखी, पुणे में बीज राखी, मध्य प्रदेश के सतना में ऊनी राखी, झारखण्ड में आदिवासी वस्तुओं से बनी बांस की राखी, असम में चाय पत्ती राखी, केरल में खजूर राखी, कानपुर में मोती राखी, वाराणसी में बनारसी कपड़ों की राखी, बिहार की मधुबनी और मैथिली कला राखी प्रमुख आकर्षण का केंद्र है. अभी ये माल धीरे-धीरे बाजार में बिक्री के लिए आना शुरू हो गया है. 

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'₹17,000 करोड़ से अधिक का व्यापार होने की संभावना'

कैट को उम्मीद है कि इस साल राखी के मौके पर ₹17,000 करोड़ से अधिक का व्यापार होने की संभावना है. वहीं दूसरी ओर मिठाइयां, ड्राई फ्रूट्, गिफ्ट पैक, हैम्पर्स, सजावट सामग्री, परिधान, सौन्दर्य प्रसाधन, पूजा सामग्री, पैकेजिंग आदि का भी लगभग 4 हजार करोड़ रुपए के व्यापार का अनुमान है. 

कैट ने देश भर के व्यापार मंडल, स्थानीय बाजार संघ और ट्रेड एसोसिएशन को इस बार राखी को ‘राष्ट्रभक्ति राखी महोत्सव' के रूप में भी मनाने का आवाहन किया है. कई जगहों पर स्वदेशी राखी मेलों का आयोजन करने पर भी विचार हो रहा है.

'चीन से आने वाली राखियों की कोई मांग नहीं'

पिछले सालों की तरह इस साल भी चीन से आने वाली राखियों की कोई मांग नहीं है. व्यापारी वर्ग का पूरा जोर भारतीय राखियों और घरेलू उत्पादों की बिक्री पर है. ऑनलाइन और देशभर में राखी भेजने की परंपरा से कोरियर, लॉजिस्टिक्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भी भारी व्यापार की उम्मीद है.

'लोग ऑफलाइन राखी खरीदने में दिखा रहे रुचि'

प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि, साल 2018 में 3 हजार करोड़ रुपये के राखी व्यापार से शुरू होकर केवल 7 सालों में ये आंकड़ा 17 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जिसमें से केवल 7% व्यापार ही ऑनलाइन के जरिये होने की उम्मीद है, जबकि बाकी सारा व्यापार देश के सभी राज्यों के बाजारों में जा कर उपभोक्ताओं स्वयं खरीदेंगे. इससे ये भी जाहिर होता है कि भारत में किस तेजी से उपभोक्ताओं की पसंद और सामान खरीदने का तौर तरीका बदल रहा है. इसीलिए व्यापारियों को भी अपने व्यापार करने के तौर तरीकों में बदलाव लाना जरूरी है.

राखियों के साथ भावनात्मक सम्बन्ध होने की वजह से लोग खुद देख और परख कर राखियां खरीदते हैं. यही वजह है की इस साल राखियों का व्यापार अच्छा होगा. इससे ये स्पष्ट है कि लोग अब त्यौहारों को पूरे उल्लास और उमंग के साथ मना रहे हैं, वहीं विशेष रूप से भारत में बने सामान को ही खरीदने में रूचि दिखा रहे हैं. 

कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि, '9 अगस्त 2025 के दिन रक्षाबंधन पर ना केवल रिश्तों का पर्व बनेगा, बल्कि देशभक्ति, आत्मनिर्भर भारत और व्यापारिक समृद्धि का भी प्रतीक होगा. व्यापारी समुदाय इस पर्व को एक अवसर के रूप में देख रहा है और उत्साहपूर्वक तैयारियों में जुटा हुआ है.

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