राजनांदगांव लोकसभा सीट: राज परिवार के प्रभाव और वरिष्ठ नेताओं के गढ़ के रूप में प्रसिद्ध

Rajnandgaon Lok Sabha seat : इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खैरागढ़ राजपरिवार के सदस्यों ने 1957 में सीट के अस्तित्व में आने के बाद से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में सात बार जीत दर्ज की.

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Rajnandgaon Lok Sabha seat : राजनांदगांव लोकसभा सीट से दो सांसद मुख्यमंत्री भी रहे हैं.
राजनांदगांव:

छत्तीसगढ़ की सबसे चर्चित राजनांदगांव लोकसभा सीट राज परिवार के प्रभाव और वरिष्ठ नेताओं के गढ़ के लिए जाना जाता है. इस सीट से चुने गए दो सांसद मुख्यमंत्री भी रहे हैं. यह सीट 2005 के 'पैसे लेकर सवाल पूछने' मामले में दोषी पाए जाने के बाद एक सांसद की सदस्यता खोने का भी गवाह रही है. राजनांदगांव लोकसभा सीट में इस बार दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है. यहां से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संतोष पांडेय लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं जबकि कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मैदान में उतारा है.

राजनांदगांव छत्तीसगढ़ की उन तीन सीट में से एक है, जहां शुक्रवार को मतदान होगा. राजनांदगांव शहर को राज्य की सांस्कृति राजधानी भी कहा जाता है. यह क्षेत्र गजानन माधव मुक्तिबोध, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और बलदेव प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकारों की कर्मभूमि रही है.

इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले खैरागढ़ राजपरिवार के सदस्यों ने 1957 में सीट के अस्तित्व में आने के बाद से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में सात बार जीत दर्ज की. अब तक इस सीट पर कांग्रेस ने आम चुनावों में आठ बार और एक बार उपचुनाव में जीत हासिल की है. वहीं भाजपा ने सात बार और जनता पार्टी ने एक बार चुनाव जीता है. इस सीट पर 1957 और 1962 में राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह तथा 1967 में इसी परिवार की रानी पद्मावती ने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता था.

कांग्रेस ने 1971 में राजपरिवार पर भरोसा नहीं जताते हुए मुंबई (तब बंबई) के व्यवसायी रामसहाय पांडे को मैदान में उतारा, जिनका पद्मावती देवी ने विरोध किया और चुनाव लड़ा, लेकिन पांडे चुनाव जीत गए. देश में आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर जनता पार्टी के मदन तिवारी विजयी हुए. तिवारी ने खैरागढ़ राजघराने के वंशज शिवेंद्र बहादुर सिंह को हराया था. खैरागढ़ राजपरिवार की इस सीट पर 1980 में वापसी हुई और शिवेंद्र बहादुर सिंह ने इस सीट से 1980 तथा 1984 में लगातार दो बार जीत हासिल की.

1989 के लोकसभा चुनाव भाजपा ने इस सीट पर दुर्ग जिले के व्यवसायी धरमलाल गुप्ता को कांग्रेस के शिवेंद्र बहादुर सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा था. चुनाव प्रचार के दौरान 'पैसे से पैसा टकराएगा' का नारा मशहूर था. गुप्ता चुनाव जीत गए थे.दो साल बाद 1991 के आम चुनाव में शिवेंद्र बहादुर ने दोबारा इस सीट पर कब्जा कर लिया. 1996 में भाजपा के अशोक शर्मा ने इस सीट पर जीत हासिल की और फिर 1998 में कांग्रेस के प्रभावशाली नेता और अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा राजनांदगांव से सांसद चुने गए.

1999 के चुनाव में भाजपा ने वोरा के खिलाफ रमन सिंह को मैदान में उतारा, जो उस समय पूर्व विधायक थे. इस चुनाव में सिंह ने वोरा को हराया. जिसके बाद उन्हें केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया. बाद में रमन सिंह तीन बार (2003, 2008 और 2013) छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे और वर्तमान में वह राज्य विधानसभा के अध्यक्ष हैं.

राज्य गठन के बाद पिछले चार आम चुनावों में भाजपा राजनांदगांव लोकसभा सीट कभी नहीं हारी है, लेकिन 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. इस सीट पर 2004 में भाजपा के प्रदीप गांधी, 2009 में मधुसूदन यादव, 2014 में रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह और 2019 में संतोष पांडेय ने जीत हासिल की. 2005 में 'पैसे के बदले सवाल पूछने' के मामले में दोषी पाए जाने के बाद गांधी ने अपनी सदस्यता खो दी थी. तत्कालीन सांसदों के खिलाफ दो पत्रकारों ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया गया था, जिसे 12 दिसंबर 2005 को एक निजी समाचार चैनल पर प्रसारित किया गया था. इसमें उन्हें संसद में सवाल उठाने के लिए नकद लेते हुए दिखाया गया था.

गांधी के निष्कासन के कारण राजनांदगांव लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा, जिसमें खैरागढ़ राजघराने के सदस्य कांग्रेस के देवव्रत सिंह विजयी हुए. राजनीतिक विश्लेषक पुरूषोत्तम तिवारी ने बताया कि मदन तिवारी के राजनांदगांव से सांसद चुने जाने (1977 में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में) के बाद इस सीट का राजनीतिक समीकरण बदल गया. लोग कांग्रेस के अलावा अन्य विकल्प तलाशने लगे, जिससे धीरे-धीरे राजनांदगांव पर उनकी पकड़ खत्म होती गई.

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तिवारी ने बताया कि सबसे पुरानी पार्टी ने इस बार पिछड़ी जाति के प्रभुत्व वाले इस निर्वाचन क्षेत्र में अपने सबसे मजबूत और प्रभावशाली ओबीसी नेताओं में से एक बघेल को आजमाया है. हालांकि, इस सीट पर उम्मीदवार की जाति ने कभी भी चुनाव के नतीजे को प्रभावित नहीं किया है. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने राजनांदगांव लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले कवर्धा जिले में हिंदुत्व के मुद्दे पर आक्रामक प्रचार किया था, जिसका पार्टी को लाभ मिला. उन्होंने कहा कि इस बार भी हिंदुत्व कार्ड सत्ताधारी दल के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

2021 में कवर्धा शहर में एक चौराहे से धार्मिक झंडे हटाने की कथित घटना के बाद दो समुदायों के बीच झड़प हुई थी. इस मुद्दे को विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने बड़े पैमाने पर उठाया था. तिवारी ने कहा कि भाजपा की ‘महतारी वंदन' योजना का भी चुनाव में असर पड़ेगा. इसके तहत पात्र विवाहित महिलाओं को प्रति माह एक हजार रुपये दिए जा रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रूपेश दुबे ने कहा, ''पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे उनकी पार्टी के पक्ष में नहीं रहे लेकिन इस बार वह मजबूत स्थिति में है.'' दुबे ने कहा, ''राजनांदगांव लोकसभा सीट में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं और उनमें से पांच - मोहला-मानपुर, खुज्जी, डोंगरगांव, डोंगरगढ़ और खैरागढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, जबकि तीन - राजनांदगांव, कवर्धा और पंडरिया में भाजपा को जीत मिली थी.''

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