राजस्थान बनता जा रहा ड्रग माफियाओं का नया गढ़, बॉर्डर से लेकर शहरों तक फैल रहा नेटवर्क, जानिए पूरी कहानी

राजस्थान में ड्रग तस्करी का नेटवर्क अब एक संगठित सप्लाई चैन में बदल चुका है. पाकिस्तान से बीकानेर, श्रीगंगानगर, बाड़मेर और जैसलमेर सेक्टर के ज़रिए ड्रोन और ऊंटों से खेप भेजी जाती है. सीमा पार से आई खेप पहले सटे गांवों में छुपाई जाती है, फिर ट्रकों, कारों और बसों के ज़रिए बाड़मेर, जालोर, जैसलमेर और नागौर के रास्ते हाईवे पर चढ़ती है.

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  • राजस्थान में पाकिस्तान और पंजाब से लगी सीमा के जरिए ड्रग तस्करी तेजी से बढ़ रही है.
  • एंटी नारकोटिक्स ने जनवरी से मई 2024 तक 1686 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार कर करोड़ों की ड्रग खेप जब्त की है.
  • ड्रग तस्करी का नया नेटवर्क सीमा से लेकर हाईवे और शहरों तक फैल चुका है.
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जयपुर:

राजस्थान इन दिनों ड्रग तस्करी के लिए सबसे मुफ़ीद ठिकाना बनता जा रहा है. पाकिस्तान और पंजाब से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा के जरिए लगातार नशे की खेप राज्य में दाखिल हो रही है. हालिया कार्रवाईयों से साफ है कि श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जैसे ज़िले अब ड्रग माफियाओं के लिए नए 'सेफ ज़ोन' बन चुके हैं.

एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) ने जनवरी 2025 में 1,210 प्रकरण दर्ज कर 1,393 आरोपियों को गिरफ्तार किया. मई 2024 तक चले विशेष अभियान में 476 गिरफ्तारियां हुईं और करीब ₹34.97 करोड़ के मादक पदार्थ जब्त किए गए. केंद्रीय एजेंसियां जैसे NCB, DRI और BSF भी राजस्थान में सक्रिय हैं. प्रतापगढ़ और बाड़मेर में ₹40 करोड़ की मेफैड्रोन फैक्ट्रियों का भंडाफोड़ हुआ, जबकि बीकानेर सीमा से ₹8.5 करोड़ की हेरोइन पकड़ी गई. 

ड्रग्स का नया कॉरिडोर: बॉर्डर से हाईवे और शहरों तक

राजस्थान में ड्रग तस्करी का नेटवर्क अब एक संगठित सप्लाई चैन में बदल चुका है. पाकिस्तान से बीकानेर, श्रीगंगानगर, बाड़मेर और जैसलमेर सेक्टर के ज़रिए ड्रोन और ऊंटों से खेप भेजी जाती है. सीमा पार से आई खेप पहले सटे गांवों में छुपाई जाती है, फिर ट्रकों, कारों और बसों के ज़रिए बाड़मेर, जालोर, जैसलमेर और नागौर के रास्ते हाईवे पर चढ़ती है.

जोधपुर, अजमेर, जयपुर और उदयपुर अब ट्रांजिट हब बन चुके हैं, जहां से खेप गुजरात, दिल्ली और मुंबई तक पहुंचाई जाती है. कई बार कॉलेज स्टूडेंट्स तक ड्रग्स की सप्लाई की जानकारी सामने आई है. राजस्थान से निकली खेप दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र तक पहुंच रही है, जहां से इसे अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में एक्सपोर्ट किया जाता है.

स्थानीय युवाओं का इस्तेमाल, बढ़ता सामाजिक संकट

बड़े तस्कर अक्सर खुद को बचा लेते हैं, लेकिन छोटे स्तर पर सप्लाई करने वाले स्थानीय बेरोज़गार युवा पकड़े जाते हैं. यही लोग नशे को स्कूल-कॉलेज और कस्बों तक पहुंचा रहे हैं. यह न सिर्फ कानून व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है.

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