लोकसभा चुनाव में बुरे नतीजों के झटके से उबरने की कोशिश में जुटी महायुति घटक दल की पार्टियों को अब एक और बड़ा झटका लगा है. लोकसभा चुनाव में इस बार महायुति को समर्थन करने वाली एमएनएस पार्टी ने अपने बल पर विधान सभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. गुरुवार को बांद्रा के रंग शारदा सभा गृह में पार्टी ने राज ठाकरे को फिर से अपना अध्यक्ष चुना. इस अवसर पर बोलते हुए राज ठाकरे ने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने के लिए किसी और पार्टी के पास सीट मांगने नही जायेंगे.
राज ठाकरे के भाषण ने मनसे कार्यकर्ताओं में भरा जोश
राज ठाकरे ने कार्यकर्ताओं और नेताओं से आने वाले विधानसभा चुनाव में 200 से 225 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटने का आदेश भी दिया. रंगशारदा में राज ठाकरे ने जब ये कहा तब पूरा हाल तालियों से गूंज उठा. जाहिर है राज ठाकरे की इस घोषणा ने एमएनएस के कार्यकर्ता, नेताओं में जोश भर दिया है. लेकिन महायुति के लिए ये एक बड़ा झटका है. इस बार के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में सिर्फ 17 सीटों पर सिमट चुकी महायुति के नेता अभी हार की समीक्षा में जुटे हैं.
राज ठाकरे का ऐलान महायुति के लिए बना मुसीबत
एनसीपी नेता अजीत पवार को साथ में लेने पर आरएसएस के मुखपत्र की टिप्पणी से लगी आग को ठंडा करने में जुटे महायुति के नेताओं के सामने राज ठाकरे ने नई चुनौती खड़ी कर दी. शुक्रवार सुबह राज ठाकरे को जन्मदिन की बधाई देने गए बीजेपी नेता और महायुति कोर्डिनेशन कमिटी के संयोजक प्रसाद लाड ने इसे एमएनएस का अपना फैसला बताया है लेकिन ये भी कहा है कि महायुति में सीटों के बंटवारे पर देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे,अजीत पवार और बीजेपी के केंद्रीय मंत्री अमित शाह फैसला करेंगे.
2019 के चुनाव में शिवसेना को मनसे से मिली टक्कर
राज ठाकरे ने साल 2006 में एमएनएस की स्थापना की थी, उसके बाद साल 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में एमएनएस ने 13 सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे की शिवसेना को कड़ी टक्कर दी थी. हालांकि साल 2019 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस का सिर्फ एक विधायक ही जीत कर आया पाया. लेकिन राज्य भर में उसे मिले तकरीबन दो फीसदी मतों ने दूसरों दलों के उम्मीदवारों के हार जीत पर असर डाला था. यही वजह है कि इस बार बीजेपी और बीजेपी की मदद से उद्धव की सरकार गिराकार खुद मुख्यमंत्री बन बैठे एकनाथ शिंदे राज ठाकरे को अपने साथ ले आए थे.
लोकसभा चुनाव में महायुति का खराब प्रदर्शन
हालांकि एमएनएस के नेताओं का दावा है कि उनकी पार्टी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को समर्थन जरूर दिया था लेकिन वो महायुति में शामिल नही हुई थी. इसलिए राज ठाकरे ने अपना फैसला खुद लिया है. इस बार के लोकसभा चुनाव में महायुति के घटक दल बीजेपी को 9 , एकनाथ शिंद की शिवसेना को 7 तो अजीत पवार की एनसीपी को सिर्फ 1 सीट पर ही जीत मिली. जबकि महाविकास में शामिल कांग्रेस को 13, शरद पवार की एनसीपी को 8 और उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 सीटें मिली है. ये तब हुआ है जब एमएनएस के मराठी वोट महायुति को मिले हैं अगर वो भी बंट जायेंगे तो महायुति को और नुकसान होना लाजिमी है.