- उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में राज भवन का नाम बदलकर लोक भवन रखा गया है.
- केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार राज भवनों के नामकरण में बदलाव किया गया है जो व्यापक सोच को दर्शाता है.
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकारी भवनों के नाम सेवा और कर्तव्य की भावना को प्रतिबिंबित करते हैं.
एक के बाद एक प्रदेशों की राजधानियों में राज भवनों के नाम बदले जा रहे हैं. अब इन्हें राज भवन के स्थान पर लोक भवन के नाम से जाना जाएगा. उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में राज भवनों का नाम अब लोक भवन रख दिया गया है. कई राज्यों के राज्यपालों ने स्वयं ही सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी जानकारी दी है. बताया गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद यह कदम उठाया गया है. राज भवनों का नाम बदलने के पीछे एक बड़ी सोच छिपी है और यह केवल राज भवनों का नाम बदलने तक ही सीमित नहीं है. बल्कि इसका प्रदर्शन पहले भी कई अवसरों पर हो चुका है.
राजभवन को लोकभवन करने के पीछे PM मोदी की सोच
बीजेपी सूत्रों के अनुसार इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच है जो जन सेवा के लिए उनके दीर्घकालिक दृष्टिकोण को परिलक्षित करती है. पिछले एक दशक में कई मौकों पर इसका परिचय मिला है. शुरुआत खुद ही प्रधानमंत्री आवास के पते से हुई थी जब दशकों से चले आ रहे पते को बदला गया था.
पहले प्रधानमंत्री का सरकारी आवास सात रेसकोर्स रोड के नाम से जाना जाता था. लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 2016 में इसका नाम बदल कर लोक कल्याण मार्ग किया गया. इसके पीछे जनता की सेवा और कल्याण का उद्देश्य है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकारी कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थलों के नामकरण से कर्तव्य और पारदर्शिता की भावना प्रकट होती है. इसके पीछे का संदेश यही है कि सरकार का काम है जनता की सेवा करना.
राज पथ का नाम कर्तव्य पथ करना भी इसी की कड़ी
यही कारण है कि राज पथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ किया गया. इसका संदेश था कि सत्ता कोई हासिल करने की चीज नहीं बल्कि सेवा का माध्यम है. नया प्रधानमंत्री कार्यालय परिसर सेवा तीर्थ के नाम से जाना जाएगा. यह सेवा की भावना का प्रकटीकरण है जो शासन की प्राथमिकताओं को स्पष्ट करता है.
केंद्रीय सचिवालय अब कर्तव्य भवन
केंद्रीय सचिवालय को अब कर्तव्य भवन के नाम से जाना जाता है. इसमें कई अलग-अलग इमारतें हैं जहां सभी मंत्रालयों को शिफ्ट किया जा रहा है. कर्तव्य भवन नाम दिए जाने के पीछे संदेश है कि जन सेवा एक प्रतिबद्धता है, कोई पोजीशन नहीं.
स्टेटस के बजाय सेवा को महत्व
एक बीजेपी नेता के अनुसार देखने में ये परिवर्तन चाहे सांकेतिक लगें लेकिन गहराई से देखने पर एक बड़े वैचारिक परिवर्तन का परिचायक हैं. भारतीय लोकतंत्र अब सत्ता के बजाए उत्तरदायित्व और स्टेटस के बजाय सेवा को महत्व दे रहा है. नाम बदलना, मानसिकता बदलना भी है क्योंकि संस्थान बोलते हैं. आज वे सेवा, कर्तव्य और नागरिक प्रथम शासन की भाषा बोल रहे हैं.
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