कश्मीर में 83 फीसदी कम बरसे बादल, झेलम का स्तर कई जगह शून्य से नीचे पहुंचा ; अब सिर्फ बर्फबारी ही सहारा

वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और इसरो के अध्ययनों में पाया गया है कि हाल के दशकों में 18% से ज्यादा हिमालयी ग्लेशियर पीछे हट गए हैं. इससे झरनों की धारा कमजोर हो रही है और लिद्दर व पोहरू जैसी नदियों को पानी देने वाले जलग्रहण क्षेत्र सूखने लगे हैं.

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कश्मीर घाटी इस समय गंभीर जलसंकट की स्थिति में है. लगातार कम बारिश और बर्फबारी के अभाव ने नदियों, सहायक नदियों और प्राकृतिक झरनों को सिकोड़ दिया है. घाटी की जीवनरेखा झेलम नदी कई प्रमुख स्टेशनों पर शून्य स्तर से नीचे पहुंच गई है, जिससे जल उपलब्धता पर संकट गहरा गया है. झेलम नदी का जल स्तर रिकॉर्ड स्तर तक गिर गया है. 

संगम गेज स्टेशन पर झेलम जलस्तर -0.53 फीट तक पहुंच गया है .वही राम मुंशी बाग में  लगभग 3 फीट और आशाम  करीब 1 फीट पहुंच गया है. ये आंकड़े नदी में प्रवाह की भारी कमी और घाटी के जल संतुलन पर गंभीर असर का संकेत देते हैं. लिद्दर, रामबियारा, फिरोजपोरा नाला और पोहरू नदी जैसे प्रमुख स्रोत सामान्य स्तर से काफी नीचे बह रहे हैं. इससे बड़े पैमाने पर पीने के पानी, सिंचाई, और भूजल पुनर्भरण पर असर पड़ रहा है.

83% बारिश की कमी—पूरे कश्मीर में 'बहुत कम वर्षा' की श्रेणी

स्वतंत्र मौसम विश्लेषको का कहना है कि नवंबर में औसत वर्षा 35.2 मिमी होती है लेकिन इस बार सिर्फ 6.1 मिमी दर्ज हुई—यानी 83% कमी. मौसम विभाग का अनुमान है कि अगले 10 दिनों तक शुष्क मौसम जारी रहेगा, हालांकि ऊपरी इलाकों में हल्की बर्फबारी हो सकती है.

ग्लेशियरों का पीछे हटना खतरे की घंटी

वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और इसरो के अध्ययनों में पाया गया है कि हाल के दशकों में 18% से ज्यादा हिमालयी ग्लेशियर पीछे हट गए हैं. इससे झरनों की धारा कमजोर हो रही है और लिद्दर व पोहरू जैसी नदियों को पानी देने वाले जलग्रहण क्षेत्र सूखने लगे हैं.

श्रीनगर में पानी की कटौती शुरू

जलस्तर में लगातार गिरावट के बीच श्रीनगर के कई इलाकों में नगरपालिका जलापूर्ति कम कर दी गई है. पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, यदि तुरंत संरक्षण उपाय जैसे कृत्रिम भूजल पुनर्भरण, जल स्रोतों का पुनर्जीवन और सालभर की जल योजना—नहीं अपनाई गई, तो कश्मीर को लंबे समय तक सूखे जैसी स्थिति झेलनी पड़ सकती है.

विशेषज्ञों की चेतावनी: “स्थिति अभूतपूर्व है”

कश्मीर विश्वविद्यालय के एक पर्यावरण शोधकर्ता कहते हैं कि 
हम गंभीर हाइड्रोलॉजिकल तनाव की ओर बढ़ रहे हैं. अगर इस सर्दी बर्फबारी फिर कम हुई, तो कश्मीर में जल संकट पिछले दशक से भी अधिक घातक हो सकता है.
 

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