- ट्रंप ने भारतीय इकोनोमी को डेड बताया तो राहुल गांधी ने हां में हां मिलाते हुए कई आरोप लगाए दिए.
- कांग्रेस नेता ने नोटबंदी, जीएसटी, किसानों को कुचलने और नौकरियां न होने जैसे दावे किए.
- राहुल गांधी के इन आरोपों के उलट सरकार के फैक्ट्स अलग ही तस्वीर पेश करते हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था मर चुकी है? देश की ग्रोथ के इंजन का तेल खत्म हो चुका है? गड्डी धक्के मारकर चल रही है? अपने अंदाज-ए-बयां के लिए अपने घर में ही ज्यादा मशहूर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत की इकॉनमी को Dead करार दिया. कांग्रेस पार्टी के सांसद राहुल गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान को लपकने में देर नहीं लगाई. ट्रंप की हां में हां मिलाते हुए गुरुवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया. आरोप मढ़ दिया कि भारतीय अर्थव्यवस्था मर चुकी है, डेड हो चुकी है... पीएम मोदी ने भारतीय युवाओं के भविष्य को बर्बाद कर दिया है.
सामान्य राजनीतिक बयानबाजी से हटकर, राहुल गांधी ने अपनी पोस्ट में 5 बड़े आरोप लगाए हैं. नेता विपक्ष होने के नाते उनके शब्दों पर गौर से विचार करना जरूरी है. तो आइए थोड़ा गहराई में चलते हैं और तथ्यों के साथ, एक-एक करके उनके आरोपों की हकीकत को जानते हैं.
दावा नंबर 1 : "नोटबंदी और दोषपूर्ण जीएसटी"
हकीकत ये है:
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) 6.4% की दर से मजबूत हुई. अनुमान है कि इस साल यह 6.3% से 6.8%तक बढ़ेगी. जीएसटी कलेक्शन 22 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है. सालाना आधार पर देखें तो पिछले साल से इसमें 9.4% का इजाफा हुआ है. दरअसल, जीएसटी रेवेन्यू पिछले 5 साल में लगभग दोगुना हो चुका है. बेशक इसमें सुधार और वृद्धि की गुंजाइश है, लेकिन क्या यह टूटे सिस्टम की तरह लगता है? आंकड़े खुद गवाही दे रहे हैं.
दावा नंबर 2 : "Assemble in India नाकाम रहा"
हकीकत ये है:
भारत का मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई (PMI) जुलाई के महीने में 59.2 रहा. एसएंडपी ग्लोबल के मुताबिक, जून 2024 के बाद से यह सबसे तेज़ रफ्तार से हुई बढ़ोतरी है, और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है. मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भारत की महत्वाकांक्षाओं ने दुनिया का ध्यान खींचा है. ये सिर्फ एक सेक्टर तक सीमित नहीं है. राहुल ने 'Make' शब्द की जगह सोच-समझकर 'Assemble' शब्द का इस्तेमाल किया, लेकिन आंकड़े इसे बेमानी साबित कर देते हैं, क्योंकि ऐसा नहीं होता तो विकास के ये आंकड़े भी नहीं आते.
दावा नंबर 3 : "MSME खत्म हो गए हैं"
हकीकत ये है:
2020 से 2025 के बीच MSME (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों) से निर्यात तीन गुना हो चुका है. 2020 में 3.95 लाख करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट हुआ था, जो 5 साल बाद अब 12.39 लाख करोड़ तक पहुंच गया है.
निर्यात करने वाले लघु उद्यमों की संख्या 52,000 से बढ़कर 1.7 लाख से अधिक हो गई है. अब ये MSME भारत की जीडीपी में 30% से अधिक का योगदान दे रहे हैं. क्या इन आंकड़ों को देखकर कहीं से भी लगता है कि MSME इकोसिस्टम "चौपट" हो गया है?
दावा नंबर 4 : "किसानों को कुचल दिया गया है"
हकीकत ये है:
अगर किसी चीज को वाकई में कुचला गया है, तो वह है कृषि क्षेत्र में होने वाले सुधार. याद कीजिए, कांग्रेस ने किस तरह कृषि कानूनों पर कुछ निहित स्वार्थी तत्वों का शर्मनाक तरीके से समर्थन किया था, जिसने इन सुधारों को पटरी से उतार दिया. उस आंदोलन को किसानों का आंदोलन बताया गया था, लेकिन उसका फायदा किसे मिला? कुछ अमीरों को. गरीब किसान वहीं खड़े रह गए, जहां वो पहले थे.
अब कुछ आंकड़े देखिए. पिछले एक दशक में कृषि से आय में सालाना 5% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है. वित्त वर्ष 2026 में कृषि क्षेत्र में 3.5% की ग्रोथ का अनुमान है. केंद्र और राज्यों की सरकारें, दोनों ही सक्रिय रूप से किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए काम कर रही हैं. ऐसा नहीं है कि किसानों को कोई परेशानी है ही नहीं. कई किसान संकट में हैं. किसानों की आत्महत्याओं की खबरों को भी कोई झुठला नहीं रहा. लेकिन वास्तविकता ये है कि ऐसा उन राज्यों में भी हो रहा है, जहां राहुल गांधी की अपनी पार्टी की सरकारें हैं. इसका निदान करने के लिए जरूरत है सच्चाई को स्वीकार करने और मिलकर काम करने की, न कि महज जुबानी तीर छोड़ने की.
और आखिर में, दावा नंबर 5 : "नौकरियां ही नहीं हैं"
हकीकत ये है:
आंकड़े गवाह हैं कि साल 2016 से लेकर 2023 तक, 17 करोड़ नौकरियां जोड़ी गईं. रोजगार के स्तर में 36% की वृद्धि दर्ज की गई. 2025 में जॉब मार्केट में 9% की बढ़ोतरी का अनुमान है. आईटी सेक्टर की भर्तियों में 15% का उछाल देखा जा रहा है. क्या अंडर एंप्लॉयमेंट है? बिल्कुल है. लेकिन इसे "कोई नौकरी नहीं है" कह देना, सियासी अतिशयोक्ति ही कही जाएगी, खासकर तब, जब इसका शब्द का इस्तेमाल एक गुस्सैल, झुंझलाए हुए अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद किया जा रहा हो.
...तो कुल मिलाकर बात ये है:
डॉनल्ड ट्रंप ने जब टैरिफ बम फेंका, तो अजीब ये है कि राहुल गांधी ने इसे इतनी जल्दी लपक लिया. लेकिन जब आप शोरशराबे से दूर होकर, पुराने ट्वीट्स और आधे-अधूरे सच से परे जाकर देखते हैं, और थोड़े-से भी डेटा के साथ देखते हैं, तो एक बिल्कुल अलग कहानी दिखती है. क्या हमारी अर्थव्यवस्था में समस्याएं हैं? निस्संदेह हैं. क्या सुधार की गुंजाइश है? बिल्कुल 100% है. क्या ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है? निश्चित रूप से है. लेकिन क्या भारत की इकोनोमी डेड हो गई है? ऊपर आंकड़ों के साथ हमने आपको दिखाया है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.