भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) के नवीकरण को लेकर सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा और आलोचना देखने को मिल रही है. ज्यादातर आलोचनाएं उन गलियारों को लेकर हो रही है, जिन्हें बदल दिया गया है. इन गलियारों में ही जनरल डायर ने बैसाखी पर शांति पूर्वक ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाने का निर्देश दिया था. इसमें हजारों लोग मारे गए थे. चारों तरफ लेजर लाइटें लगा दी गई हैं. इस पूरे मामले पर राहुल गांधी ने एनडीटीवी इंडिया की खबर शेयर करते हुए लिखा है कि जलियांवाला बाग के शहीदों का ऐसा अपमान वही कर सकता है जो शहादत का मतलब नहीं जानता. मैं एक शहीद का बेटा हूं- शहीदों का अपमान किसी क़ीमत पर सहन नहीं करूंगा. हम इस अभद्र क्रूरता के खिलाफ हैं.
सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सरकार पर नवीकरण के नाम पर इतिहास को नष्ट करने का आरोप लगाया है और साथ ही ये भी कहा है कि राजनेताओं को शायद ही कभी इतिहास की अनुभूति होती है. इतिहासकार एस इरफान हबीब ने जॉय दास के ट्वीट की रीट्वीट किया है. जॉय ने लिखा है कि पहली तस्वीर जलियांवाला बाग का मूल प्रवेश द्वार है, जहां से जनरल डायर ने नरसंहार का आदेश देने से पहले प्रवेश किया था. यह उस भयानक दिन की याद दिलाती है. दूसरी तस्वीर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा इसे "संरक्षण" के नाम पर पुनर्निर्मित करने के बाद की है. देख लें ये कैसा दिखता है. इसी पर एस इरफान हबीब ने लिखा है कि इतिहास से छेड़छाड़ किए बिना विरासतों की देखभाल करें. नवीकरण के नाम विरासतों का असली महत्व खत्म होता नहीं दिखना चाहिए.
इस मामले पर सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी ने भी ट्वीट किया है. उन्होंने लिखा है कि केवल वे जो स्वतंत्रता संग्राम से दूर रहे, वे ही इसी प्रकार का कांड कर सकते हैं. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को पुनर्निर्मित परिसर का उद्घाटन करते हुए कहा था कि यह देश का कर्तव्य है कि इसके इतिहास की रक्षा करें.
इतिहासकार किम ए वैगनर ने भी इस मामले पर ट्वीट किया है कि यह सुनकर स्तब्ध हूं कि 1919 के अमृतसर नरसंहार के स्थल जलियांवाला बाग को नया रूप दिया गया है, जिसका साफ अर्थ है कि घटना के अंतिम निशान भी मिटा दिए गए हैं. यही मैंने अपनी किताब में स्मारक के बारे में लिखा है, एक स्थान का वर्णन करते हुए, जो अब खुद इतिहास बन गया है.