"ये यात्रा कांग्रेस के लिए नहीं थी...", 136 दिन लंबी 'भारत जोड़ो यात्रा' के समापन पर राहुल गांधी

'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान कड़ाके की ठंड में टी-शर्ट पहनकर पदयात्रा करके देशभर में बहस छेड़ने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को कश्मीर की हाड़ कंपा देने वाली ठंड में 'फेरन' पहना.

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'नफ़रत के बाजार में मोहब्‍बत की दुकान' खोलने की कोशिश की- राहुल गांधी बोले

कश्‍मीर: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को कहा कि उनकी 'भारत जोड़ो यात्रा' का मकसद भारत के उदार और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बचाना है. उन्होंने दावा किया कि देश के उदार और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के हमले का सामना कर पड़ रहा है. उन्होंने 136 दिन लंबी अपनी यात्रा के समापन पर यहां एक रैली में कहा, "मैंने यह यात्रा अपने लिए या कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि देश के लोगों के लिए की है. हमारा मकसद उस विचारधारा के खिलाफ खड़ा होना है जो इस देश की नींव को ही नष्ट करना चाहती है." उनकी यह रैली शहर में भारी हिमपात के बावजूद आयोजित की गई. 

राहुल गांधी ने विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि स्टेज पर वरिष्ठ नेता, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता, विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेतागण, हमारे प्यारे कार्यकर्ता, भाइयों और बहनों, प्रेस के हमारे मित्रों, आप सबका यहां बहुत-बहुत स्वागत. आप आज यहां बर्फबारी में खड़े हैं, मगर आपमें से किसी को सर्दी नहीं लग रही है. आप बारिश में खड़े हुए, कोई भीगा नहीं, गर्मी में आपको गर्मी नहीं लगी, सर्दी में आपको सर्दी नहीं लग रही है, क्योंकि देश की शक्ति आपके साथ है.

जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की पुरानी चोट...
राहुल गांधी ने कहा, "प्रियंका की बात मैं सुन रहा था, प्रियंका ने कहा, मेरे मैसेज के बारे में प्रियंका ने कहा नॉर्मली होता नहीं है, मगर मेरी आंख में आंसू आए, क्योंकि मैं कन्याकुमारी से चला, शुरुआत की और पूरे देश में हम पैदल चले. मैं सच बताऊं आपको अजीब लगेगा, मगर बहुत सालों से मैं हर रोज 8-10 किलोमीटर दौड़ता हूं. तो मैंने सोचा था कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक चलना इतना मुश्किल नहीं होगा, मेरे दिल में था कि आसान होगा. मैंने सोचा था कि फिजिकली मेरे लिए ये मुश्किल काम नहीं होगा. शायद मैं काफी वर्जिश करता हूं, थोड़ा-सा अहंकार आ गया, जैसे आ जाता है, मगर फिर बात बदल गई. जब मैं छोटा था फुटबाल खेलता था और कॉलेज में जब मैं फुटबाल खेल रहा था, एक बार मुझे बहुत जोर से घुटने में चोट लगी थी. मैं उसको भूल गया था. घुटने में दर्द नहीं होता था, भूल गया था उसको, दर्द गायब हो गया था, मगर कन्याकुमारी से 5-7 दिन बाद घुटने में प्रॉब्लम आई और जबरदस्त प्रॉब्लम आई. पूरा अहंकार उतर गया और मैं सोचने लगा कि क्या मैं ये जो 3,500 किलोमीटर हैं, क्या मैं इनको चल पाऊंगा या नहीं? तब मैंने सोचा था आसान काम होगा, वो काफी मुश्किल हो गया. मगर फिर मैंने किसी ना किसी तरीके से ये काम पूरा कर दिया."

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चमत्‍कारिक रूप से ठीक हो गया राहुल गांधी के घुटने का दर्द
यात्रा समापन के अवसर पर राहुल गांधी ने कहा, "बहुत कुछ सीखने को मिला, मैं आपको बोलूं तो दर्द सहना पड़ा काफी, मगर सह लिया. रास्ते में एक दिन मुझे दर्द हो रहा था, काफी दर्द हो रहा था और मैं सोच रहा था कि 6-7 घंटे और चलने हैं और उस दिन मुझे लग रहा था कि आज मुश्किल है और एक छोटी-सी बच्ची आई दौड़ती हुई आई मेरे पास और मुझे कहती है कि मैंने आपके लिए कुछ लिखा है. मगर आप अभी मत पढ़ो, इसको बाद में पढ़ना और फिर वो मुझसे गले लगकर भाग गई. फिर मैंने सोचा, अब पढ़ता हूं क्या लिखा है. तो उसने लिखा था कि मुझे दिख रहा है कि आपके घुटने में दर्द है, क्योंकि आप जब उस पैर पर वजन डालते हैं, तो आपके चेहरे पर दिखता है कि दर्द है. मगर मैं आपको बताना चाहती हूं कि मैं आपके साथ कश्मीर नहीं चल सकती हूं, क्योंकि मेरे माता-पिता नहीं चलने दे रहे हैं. मगर मैं दिल से आपके साथ, आपकी साइड में चल रही हूं, क्योंकि मैं जानती हूं कि आप अपने लिए नहीं चल रहे हैं, आप मेरे लिए चल रहे हैं और आप मेरे भविष्य के लिए चल रहे हैं. बस उसी सेंकेड में पता नहीं अजीब-सी बात है, उसी सेंकेड मेरा दर्द उस दिन के लिए गायब हो गया."

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मेरा अपना घर नहीं है...
राहुल गांधी ने बताया, "मैं कश्मीर की ओर आ रहा था और मैं सोच रहा था कि इसी रास्ते पर मैं नीचे से ऊपर जा रहा हूं. मैं सोच रहा था कि इसी रास्ते से सालों पहले मेरे रिश्तेदार ऊपर से नीचे आए. कश्मीर से इलाहाबाद, गंगा की ओर गए और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं वापस अपने घर जा रहा हूं. घर मेरे लिए, जब मैं छोटा था, मैं सरकारी घरों में रहा हूं. मेरा अपना घर नहीं है, तो मेरे लिए घर जिसका जो स्ट्रक्चर होता है, उसको मैंने कभी घर नहीं माना. वो मेरे लिए मैं कहीं भी रह लूं, वो एक इमारत होती है, वो घर नहीं होता है. घर मेरे लिए एक सोच है, एक जीने का तरीका है, एक सोचने का तरीका है और यहां पर जिस चीज को आप कश्मीरियत कहते हैं, उसको मैं अपना घर मानता हूं. अब ये कश्मीरियत है क्या- ये जो शिव जी की सोच है, एक तरफ और थोड़ी-सी गहराई में जाएंगे, तो उसको शून्यता कहा जा सकता है. अपने आप पर, अपने अहंकार पर, अपने विचारों पर आक्रमण करना और दूसरी तरफ, इस्लाम में जिसको शून्यता यहां कहा जाता है, वहां फ़ना कहा जाता है, सोच वही है. इस्लाम में फ़ना का मतलब अपने ऊपर आक्रमण, अपनी सोच पर आक्रमण, जो हम अपना किला बना देते हैं कि मैं ये हूं, मेरे पास ये है, मेरे पास ये ज्ञान है, मेरे पास ये घर है, उसी किले पर आक्रमण करना, वही है शून्यता, वही है फ़ना. इस धरती पर ये दो जो विचारधाराएं हैं, इनका एक बहुत गहरा रिश्ता है और ये सालों से रिश्ता है, जिसको हम कश्मीरियत कहते हैं. यही सोच बाकी स्टेट्स में भी है."

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राहुल गांधी बोले- ये यात्रा कांग्रेस के लिए नहीं थी...
राहुल गांधी ने कहा, "मैंने ये काम अपने लिए नहीं किया, मैं ऐसा काम अपने लिए कभी कर ही नहीं सकता हूं। मैंने ये काम..., हमारे कांग्रेसी मित्रों को ये अच्‍छा न लगे, मगर मैंने ये काम कांग्रेस पार्टी के लिए भी नहीं किया है. मैंने ये काम और हम सबने ये काम हिन्‍दुस्‍तान की जनता के लिए किया है. हमारी कोशिश है कि जो विचारधारा इस देश की नींव को तोड़ने की कोशिश कर रही है, उसके खिलाफ हम खड़े हों, मिलकर खड़ें हों, नफ़रत से नहीं, क्‍योंकि वो हमारा तरीका नहीं है, मोहब्‍बत से खड़े हों. मैं जानता हूं कि अगर हम मोहब्‍बत से खड़े होंगे, प्‍यार से बात रखेंगे, तो हमें सफलता मिलेगी और उनकी जो विचारधारा है, उसको हम सिर्फ हराएंगे नहीं, मगर उस विचारधारा को हम उनके दिलों से निकाल देंगे. तो आपने, देश की जनता ने हमारा समर्थन किया. हमें बीजेपी ने एक जीने का तरीका, राजनैतिक तरीका दिखाया है, हमारी कोशिश है कि हम एक और तरीका जो हिन्‍दुस्‍तान का तरीका है, मोहब्‍बत का तरीका है वो हम देश को दिखाएं, हम देश को याद दिलाएं कि हिन्‍दुस्‍तान मो‍हब्‍बत का देश है, इज्‍जत का देश है, भाईचारे का देश है तो हमने जो कहा था, छोटा सा कदम लिया है, बड़ा कदम नहीं है. 'नफ़रत के बाजार में मोहब्‍बत की दुकान' खोलने की कोशिश की है."

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