उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से पूछा कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के फैसले को उचित ठहराने के लिए उसने किस तरह के कदम उठाए हैं. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि यदि किसी नौकरी के विशेष संवर्ग में एससी और एसटी को प्रमोशन में आरक्षण को न्यायिक चुनौती दी जाती है तो सरकार को इसे इस आधार पर उचित ठहराना होगा कि किसी विशेष संवर्ग में उनका अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है और कोटा प्रदान करने से समग्र प्रशासनिक दक्षता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा.
पीठ ने कहा, ‘कृपया सिद्धांतों पर बहस न करें. हमें आंकड़ें दिखाएं. आप प्रोन्नति में आरक्षण को कैसे सही ठहराते हैं और निर्णयों को सही ठहराने के लिए आपने क्या प्रयास किए हैं. कृपया निर्देश लें और इस बारे में हमें बताएं.' सुनवाई की शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने 1992 के इंद्रा साहनी मामले, जिसे मंडल आयोग मामले के रूप में जाना जाता है, से लेकर 2018 के जरनैल सिंह मामले में शीर्ष अदालत के फैसलों का जिक्र किया. मंडल फैसले में पदोन्नति में आरक्षण से इंकार किया गया था.
विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘प्रासंगिक बात यह है कि इंदिरा साहनी के फैसले का संबंध पिछड़े वर्गों से था, न कि एससी और एसटी से.'' उन्होंने कहा, ‘‘यह फैसला इस प्रश्न से संबंधित है कि क्या प्रत्येक वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाना चाहिए. यह (फैसला) कहता है ‘नहीं, ऐसा नहीं दिया जाना चाहिए' क्योंकि तब यह 50 प्रतिशत की सीमा से कहीं अधिक हो जाएगा.''
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समानता की आवश्यकता है और यदि केवल योग्यता ही मानदंड है तो सामाजिक रूप से वंचित, एससी और एसटी प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कि 1975 तक 3.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 0.62 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति सरकारी रोजगार में थे और यह औसत आंकड़ा है. उन्होंने कहा अब 2008 में सरकारी रोजगार में एससी और एसटी का आंकड़ा क्रमशः 17.5 और 6.8 प्रतिशत हो गया है, जो अभी भी कम है और इस तरह के कोटा को उचित ठहराते हैं. पीठ बुधवार को भी सुनवाई जारी रखेगी.
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर को कहा था कि वह एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं. पीठ ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हम नागराज या जरनैल सिंह (मामलों) को फिर से खोलने नहीं जा रहे हैं क्योंकि विचार केवल इन मामलों को अदालत द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार तय करना था.'