- राजस्थान के पुष्कर मेले में मुर्राह भैंसे और राजस्थानी घोड़े करोड़ों की कीमत पर बिक रहे हैं
- राजस्थान में ऊंटों की संख्या घटकर 1.5 लाख रह गई है जो पहले पांच लाख से अधिक थी
- 2015 में ऊंटों को राज्य का राजकीय पशु घोषित कर परिवहन पर रोक लगाई गई थी, जिससे ऊंट व्यापार प्रभावित हुआ है
राजस्थान के पुष्कर मेले की शामें इस बार फिर जगमग हैं. लाखों लोगों की भीड़, देश-विदेश से आए पर्यटक, और करोड़ों के दाम पर बिकते भैंसे व घोड़े. मंच पर चमकते हैं “बलवीर” जैसे मुर्राह भैंसे, जिनकी कीमत एक करोड़ तक पहुंच चुकी है, और “बादल” जैसे राजस्थानी घोड़े, जिन पर फिल्मी ऑफर तक बरस रहे हैं. पर इसी चमक-दमक के बीच एक उदासी भी है रेगिस्तान का जहाज़ कहलाने वाला ऊंट अब बिन-कीमत के बिका जा रहा है. कभी राजस्थान की पहचान रहा यह पशु अब पशुपालकों के लिए घाटे का सौदा बन गया है. सवाल उठता है कि जहां मवेशियों का व्यापार करोड़ों में हो रहा है, वहीं ऊंट इतने सस्ते क्यों बिक रहे हैं? इसका जवाब सरकार की नीति, बदलते परिवहन नियमों और गायब होती ऊंट संस्कृति.
करोड़ों के जानवर, बदलता मिज़ाज
पुष्कर का पशु मेला सिर्फ धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि एशिया का सबसे बड़ा पशु व्यापार केंद्र भी है. इस साल के मेले में “बलवीर”, “बादल”, “नगीना” और “शहज़ादी” जैसे जानवरों ने सुर्खियां बटोरी हैं. डीडवाना के डूंगाराम का भैंसा “बलवीर” एक करोड़ रुपये का है. 800 किलो वज़न वाले इस भैंसे को रोज़ाना विशेष आहार, घी और दूध से तैयार किया जाता है.
“बलवीर हर महीने वीर्य बिक्री से 80 हज़ार रुपये की कमाई करता है,” व्यापारी डूंगाराम मुस्कुराते हुए कहते हैं, “चार साल बाद यह रकम दोगुनी हो जाएगी. इसकी देखभाल पर 35,000 रुपये महीना खर्च होता है.”
इसी तरह, अजमेर के “बादल” घोड़े को 15 लाख रुपये का फिल्मी ऑफर मिला है. “शहज़ादी” नाम की सफेद घोड़ी 51 लाख में बोली गई है, जबकि “नगीना” पंजाब से आई है, जिसकी कीमत एक करोड़ रुपये से ऊपर लगाई जा रही है.
रेगिस्तान के जहाज़ की गिरती साख
पर जब कैमरे इन स्टार जानवरों से हटते हैं, तो धूल और धूप के बीच ऊंटपालक उदासी में खड़े नज़र आते हैं. वही ऊँट, जो कभी राजस्थान की रगों में धड़कता था, आज सिर्फ 10,000 से 50,000 रुपये में बिक रहा है. राजस्थान में ऊंटों की संख्या घटकर अब सिर्फ 1.5 लाख रह गई है. एक समय यह संख्या 5 लाख से अधिक थी. 2015 में वसुंधरा राजे सरकार ने ऊंटों को राज्य की "राजकीय पशु" घोषित किया था और उनके बाहर परिवहन पर रोक लगा दी थी. उद्देश्य था ऊंटों की तस्करी और वध पर रोक लगाना. पर इसी प्रतिबंध ने व्यापार की कमर तोड़ दी.
लोक पशुपालक समिति के सचिव हनुवंत सिंह बताते हैं कि पिछले साल ऊंट सिर्फ 1,500 रुपये में बिक रहे थे. इस बार प्रतिबंध हटने से दाम 20,000 से 1 लाख तक पहुंचे हैं, लेकिन नियम इतने जटिल हैं कि खरीदार डरते हैं. ऊंटों को राज्य से बाहर ले जाने के लिए एसडीएम की अनुमति, स्वास्थ्य प्रमाणपत्र, और परिवहन का कारण बताना अनिवार्य है.
सरकारी नीति और बाजार के बीच फंसा ऊंट व्यापार
हाल ही में बेहरोड़ (अलवर) में एक ट्रक पकड़ा गया जिसमें पुष्कर मेले से खरीदे गए 8 ऊंट फिरोज़पुर (हरियाणा) ले जाए जा रहे थे. स्थानीय गौ-रक्षकों ने ट्रक रोका, ड्राइवर को पीटा, और पुलिस ने ऊँटों को जब्त कर लिया. अब पुलिस जांच में जुटी है कि ये ऊँट वैध व्यापार के लिए ले जाए जा रहे थे या वध के लिए. इस घटना ने पशुपालकों में भय फैला दिया है.
पाली के किशनजी, जो पिछले 30 वर्षों से ऊंट पालन कर रहे हैं, बताते हैं कि मैंने इस बार अपना ऊंट ‘मोती' 35,000 रुपये में बेचा. यह मेरे लिए अच्छी कीमत है, पर खरीदार ने कहा कि बाहर ले जाने में डर लगता है. अगर सरकार साफ़ नियम न बनाए तो व्यापार फिर ठप हो जाएगा.”
ऊंटों का भविष्य: परंपरा या पर्यटक आकर्षण?
राजस्थान में ऊंट अब खेती, दूध या परिवहन में नहीं, बल्कि पर्यटन उद्योग का हिस्सा बन चुके हैं.
जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर में ऊँट सफारी और शादी आयोजनों के लिए बुक किए जाते हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऊंटपालक अब भी संघर्ष कर रहे हैं. राज्य सरकार ने “ऊंट संरक्षण नीति” के तहत सब्सिडी, ऊंट दूध के उत्पाद (जैसे आइसक्रीम और साबुन) को बढ़ावा देने की योजना बनाई है, लेकिन जमीनी असर अब भी कम है.














