रेप, एसिड अटैक सर्वाइवर्स को मुफ्त इलाज दें: दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश

दिल्‍ली हाई कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका के सामने नियमित रूप से बड़ी संख्या में रेप और POCSO के मामले आते हैं. इन मामलों के सर्वाइवर्स को अक्सर तुरंत चिकित्सा या लंबे समय तक चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
नई दिल्‍ली:

दिल्‍ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने मंगलवार को अपने एक ऐतिहासिक आदेश में कहा कि रेप, एसिड हमलों, यौन हमलों और POCSO (यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा) मामलों के पीड़ित सरकारी और निजी अस्पतालों और यहां तक की नर्सिंग होम्‍स में भी मुफ्त इलाज के हकदार हैं. 

जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि केंद्र और सभी राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्थानों के साथ ही निजी अस्पतालों, क्लीनिकों और नर्सिंग होमों को निर्देश का पालन करना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि रेप, एसिड हमलों और POCSO मामलों के सर्वाइवर्स को तुरंत मेडिकल केयर और आवश्यक सेवाएं मिलें. 

अदालत ने बताया - इलाज में क्‍या है शामिल?

अदालत ने साफ किया कि "इलाज" में फर्स्‍ट एड, डायग्‍नोसिस, आंतरिक रोगी देखभाल, बाह्य फॉलोअप्‍स, डायग्‍नोस्टिक और लेबोरेट्री टेस्‍ट, यदि जरूरी हो तो सर्जरी, शारीरिक और मानसिक परामर्श, मनोवैज्ञानिक सहायता और पारिवारिक परामर्श शामिल हैं. 

कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका के सामने नियमित रूप से बड़ी संख्या में रेप और POCSO के मामले आते हैं. इन मामलों के सर्वाइवर्स को अक्सर तुरंत चिकित्सा या लंबे समय तक चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है, जिसमें अस्पताल में प्रवेश, डायग्‍नोस्टिक, सर्जिकल प्रोसिजर, दवाएं और परामर्श सेवाएं शामिल हैं. 

पीड़ितों को चुनौतियों का करना पड़ता है सामना 

बीएनएस या सीआरपीसी के तहत मौजूदा प्रावधानों के साथ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के बावजूद अदालत ने पाया कि यौन हिंसा और एसिड हमलों से बचे लोगों को फ्री मेडिकल ट्रीटमेंट तक पहुंचने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. 

न्यायालय ने कई प्रमुख निर्देश जारी किए, जिनमें यौन अपराधों से निपटने वाली सभी अदालतों जैसे POCSO कोर्ट, क्रिमिनल कोर्ट और फैमिली कोर्ट में अपने फैसले को प्रसारित करना शामिल है. 

Advertisement

इन निर्देशों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बीएनएस की धारा 397 (सीआरपीसी की धारा 357सी) के अनुसार सभी पीड़ितों और सर्वाइवर्स को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में सूचित किया जाए. अदालत ने यह भी आदेश दिया कि अदालतों में जब भी पीड़ितों के लिए चिकित्सा सहायता की आवश्यकता वाले मामले आते हैं तो ऐसे मामलों को लेकर 
संबंधित चिकित्सा प्रतिष्ठानों चाहे सरकारी हो या निजी उचित कदम उठाने चाहिए. 

Featured Video Of The Day
ICC Women's World Cup Breaking News: Australia को रौंदकर Team India पहुंची World Cup 2025 Final में
Topics mentioned in this article