यूक्रेन-रूस युद्ध को तीन साल होने को आ रहे हैं, लेकिन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है. हैरानी की बात है कि सैकड़ों मील दूर हो रहे इस युद्ध का संबंध उत्तर प्रदेश के दो जिलों से भी है. पिछले साल आजमगढ़ और मऊ जिले के करीब दो दर्जन युवक अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन की उम्मीद में घर से हजारों किलोमीटर दूर रूस गए थे. रूस के लिए रवाना 13 लोगों में से तीन युद्ध के मैदान में अपनी जान गंवा चुके हैं और दो युद्ध में घायल होकर वापस लौट आए हैं. हालांकि अन्य आठ लोगों के बारे में जानकारी नहीं है कि वे कहां पर हैं.
इन लोगों को रूस में सुरक्षा गार्ड, सहायक और रसोइये की नौकरी की पेशकश की गई थी और हर महीने दो लाख रुपये देने का वादा किया गया था, लेकिन इसके बदले में उन्हें जबरन युद्ध के मैदान में भेज दिया गया.
रूस-यूक्रेन युद्ध में आजमगढ़ के कन्हैया यादव और मऊ के श्यामसुंदर और सुनील यादव की जान चली गई है. आजमगढ़ के राकेश यादव और मऊ के बृजेश यादव युद्ध में घायल होने के बाद लौट आए हैं और अब घर पर हैं. इस बीच, आठ लोगों - विनोद यादव, योगेन्द्र यादव, अरविन्द यादव, रामचन्द्र, अजहरुद्दीन खान, हुमेश्वर प्रसाद, दीपक और धीरेन्द्र कुमार की कोई खबर नहीं है. परिवार के लोग अभी भी उनके बारे में जानने का इंतजार कर रहे हैं.
'मेरे भाई को फंसाया गया'
आजमगढ़ जिले के खोजापुर गांव में योगेन्द्र यादव की मां, पत्नी और बच्चे सदमे में हैं. योगेन्द्र यादव के छोटे भाई आशीष यादव ने कहा, "मऊ में एक एजेंट विनोद यादव ने मेरे भाई को फंसाया. उसने उन्हें बताया कि नौकरी सिक्योरिटी गार्ड पद के लिए थी, लेकिन रूसी सीमा पर भेज दिया गया."
उन्होंने बताया कि उनका भाई 15 जनवरी 2024 को तीन एजेंटों विनोद, सुमित और दुष्यंत के साथ घर से गया था. यादव ने कहा, "रूस पहुंचने के बाद भाई को जबरन प्रशिक्षित किया गया और फिर सेना में भर्ती किया गया."
भाई का पता चल सके इसके लिए उन्होंने भारत सरकार से हस्तक्षेप की अपील करते हुए कहा, "हमने उससे आखिरी बार मई 2024 में बात की थी. उसने हमें फोन पर बताया था कि वह 9 मई 2024 को युद्ध में घायल हो गया था. उसके बाद से उनके बारे में कुछ नहीं सुना."
बेटे को याद कर रो पड़ी मां
आजमगढ़ के गुलामी का पुरा इलाके में रहने वाली अजहरुद्दीन खान की मां नसरीन से जब उनके बेटे के बारे में पूछा गया तो वह रोने लगीं. उन्होंंने याद किया कि कैसे एक एजेंट ने मोटी सैलेरी वाली नौकरी का लालच दिया था, जिसने बेटे को उनसे दूर कर दिया. उन्होंने कहा, "मैंने पिछले दस महीनों से उससे बात नहीं की है."
उन्होंने कहा, "वह 26 जनवरी 2024 को एजेंट विनोद के साथ चला गया. उसने अजहरुद्दीन की सुरक्षा गार्ड की नौकरी लगाने की बात की थी. उसने कहा कि उसे हर महीने 2 लाख रुपये मिलेंगे."
अजहरुद्दीन खान अपने परिवार में कमाने वाला प्रमुख शख्स था. जाने के बाद से वह अपने परिवार के नियमित संपर्क में था. अजहरुद्दीन ने परिवार को बताया था कि उसे प्रशिक्षित किया जा रहा है और युद्ध के मैदान में भेजा जा रहा है.
अजहरुद्दीन के पिता को जब बेटे के रूसी सेना में शामिल होने का पता चला तो एक अप्रैल को उन्हें दौरा पड़ा और सात दिन बाद 8 अप्रैल को उनका निधन हो गया.
परेशान नसरीन ने कहा, "बेटे के साथ मेरी आखिरी बातचीत 27 अप्रैल को हुई थी. उसने मुझसे कहा कि अम्मा मैं यहां छह महीने तक काम करूंगा और उसके बाद घर लौट आऊंगा. तब से मैंने कुछ नहीं सुना है.".
घर अलग, लेकिन कहानी एक जैसी
सठियांव कस्बे के रहने वाले हुमेश्वर प्रसाद के पिता की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. एजेंट विनोद यादव उनके बेटे को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने का झांसा देकर ले गया.
इंदु प्रकाश ने कहा, "उन्होंने उससे एक एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कराए, फिर उसे (रूसी) सेना में भर्ती किया गया. उसे 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया गया."
इंदु प्रकाश ने रोते हुए कहा, "घर पर हर कोई चिंतित है." उन्होंने अपने बेटे से आखिरी बार पिछले साल मार्च में बात की थी.
जब उन्होंने भारतीय दूतावास से संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया कि उनका बेटा "लापता" है.
हर्रैया के रहने वाले पवन ने 6 जुलाई 2024 को आखिरी बार अपने भाई दीपक से बात की थी. वह पिछले साल की शुरुआत में रूस के लिए रवाना हुआ था.
पीड़ित परिवारों की सिर्फ दो मांग
ये सभी परिवार सरकार से दो चीजें मांग रहे हैं- रूस में फंसे भारतीयों की वापसी और उन एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई जिन्होंने उनके प्रियजनों को युद्ध के मैदान में उतरने के लिए मजबूर किया.
आजमगढ़ जिले के रौनापुर गांव के रहने वाले कन्हैया यादव रसोइये की नौकरी के लिए रूस गए थे. हालांकि वह रूसी सेना में भर्ती हो गए और बुरी तरह घायल होने के बाद 6 दिसंबर 2024 को उनकी मौत हो गई.
कन्हैया यादव के बेटे अजय ने कहा, "मैंने आखिरी बार अपने पिता से 25 मई 2024 को बात की थी. उन्होंने मुझे बताया था कि वह युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए थे और उनका इलाज चल रहा था. उसके बाद मैंने उनसे बात नहीं की."
महीनों बाद दिसंबर में दूतावास ने उन्हें सूचित किया कि उनके पिता की मौत हो गई है.
धोखे से साइन करवाया एग्रीमेंट
युद्ध में राकेश यादव घायल हो गए, लेकिन वह उन गिने-चुने भारतीयों में से थे जो स्वदेश लौट सके. उन्होंने कहा, "मैं जनवरी 2024 में रूस गया था. एजेंट ने मुझे सुरक्षा गार्ड की नौकरी और दो लाख रुपये मासिक वेतन के बारे में बताया."
यादव ने याद करते हुए कहा, "जब हम रूस पहुंचे तो हमसे एक एग्रीमेंट पेपर पर साइन कराया गया, जो रूसी भाषा में था. हमने डॉक्यूमेंट की सामग्री के बारे में पूछा तो हमें बताया गया कि इसमें उस काम का वर्णन है जो हम रूस में करेंगे."
वह विनोद यादव के साथ रूस पहुंचे थे, जो इस समय युद्ध के कारण रूस में ही फंसे हुए हैं.
इसके तुरंत बाद उन्हें रॉकेट दागने, बम फेंकने और अन्य हथियारों का उपयोग करने का युद्ध प्रशिक्षण दिया गया.
उन्होंने कहा, "जब हमने विरोध किया तो बताया गया कि हमें आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है."
12 भारतीयों की मौत, 16 लापता: MEA
भारतीय विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि रूसी सेना में सेवा के दौरान 12 भारतीय मारे गए हैं और देश द्वारा सूचीबद्ध अन्य 16 लापता हैं.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा, रूसी सशस्त्र बलों में सेवारत भारतीय नागरिकों के 126 ज्ञात मामलों में से 96 व्यक्ति पहले ही वापस आ चुके हैं. उन्हें रूसी सशस्त्र बलों ने डिस्चार्ज कर दिया है. रूसी सशस्त्र बलों में शेष 18 भारतीय नागरिकों में से 16 व्यक्तियों के बारे में फिलहाल पता नहीं है."
रूस ने 16 भारतीयों को "लापता" की श्रेणी में रखा है.
पिछले साल अगस्त में रूसी दूतावास ने कहा था कि देश के रक्षा मंत्रालय ने भारत सहित कई विदेशी देशों के नागरिकों को सैन्य सेवा में भर्ती करना बंद कर दिया है.