भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) की स्थापना सिंतबर 2023 में हुई थी. स्थापना के बाद से विधानसभा की पांच और लोकसभा की एक सीट जीतकर राजनीति की दुनिया में सनसनी फैला दी है.आदिवासी हितों की आवाज उठाने के लिए बनी बीएपी ने हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में राजस्थान की बांसवाड़ा सीट से शानदार जीत दर्ज की है.इस सीट से उसके विधायक राजकुमार रोत सांसद चुने गए हैं.रोत को कांग्रेस का समर्थन हासिल था.उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीय को करीब ढाई लाख वोटों से मात दी है.मालवीय कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे.रोत इससे पहले दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में चौरासी सीट से विधायक भी चुने गए थे.आइए जानते हैं राजकुमार रोत और भारतीय आदिवासी पार्टी के बारे में.
नामांकन के ही समय नजर आया था परिणाम
इस लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक चर्चा जिन सीटों की हुई उनमें बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट भी शामिल थी.इसकी वजह थी बीएपी उम्मीदवार राजकुमार रोत के नामांकन में उमड़ा जनसमूह.नामांकन में ही भीड़ जुटाकर रोत ने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे.
बांसवाड़ा परंपरागत रूप से कांग्रेस और बीजेपी की सीट रही है. यह तीसरी बार है कि किसी गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी उम्मीदवार ने वहां से जीत दर्ज की है. इसलिए रोत के जीत की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है. आदिवासियों में शिक्षा की कमी, आरक्षण और कुपोषण जैसी समस्याओं को उठाकर चर्चा में आए रोत आदिवासी समाज की समस्याएं उठाते रहते हैं. उनका कहना है कि बीजेपी उन लोगों को 'नक्सल' बता देती है, जो उसकी विचारधारा को नहीं मानते हैं. आदिवासियों के आंदोलन को कमजोर करने के लिए वह उन्हें 'नक्सल' बताती रहती है. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा और भारत आदिवासी पार्टी का गठन होने के बाद बांसवाड़ा-डूंगरपुर इलाके में आरएसएस के वनवासी कल्याण आश्रम को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
कौन हैं राजकुमार रोत
रोत राजस्थान के डूंगरपुर के चौरासी इलाके के खरबरखुनिया गांव के रहने वाले हैं.रोत ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की.वो 2014 में एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष बने थे.लेकिन रोत ने 2018 का विधानसभा चुनाव भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के टिकट पर चौरासी विधानसभा क्षेत्र से लड़कर जीता था.उन्होंने बीजेपी के सुशील कटारा को करीब 13 हजार वोटों से मात दी थी.उस समय उनकी उम्र केवल 26 साल थी. वह उनका पहला चुनाव था.
बीटीपी से मनमुटाव हो जाने के बाद रोत ने अपने साथियों के साथ मिलकर भारत आदिवासी पार्टी की स्थापना की.रोत ने 2023 का विधानसभा चुनाव चौरासी सीट से भारत आदिवासी पार्टी के टिकट पर लड़ा.आदिवासियों की अधिकता वाली इस सीट पर रोत ने एक बार फिर बीजेपी की दिग्गज नेता सुशील कटारा को मात दी.लेकिन इस बार हार-जीत का अंतर बढ़कर 69 हजार 166 वोट हो गया.
कांग्रेस के समर्थन से जीते
इस जीत से उत्साहित राजकुमार रोत के सपनों को पंख लग गए. उन्होंने कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में उतरे का फैसला किया. इसके लिए राजकुमार रोत ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र को चुना.इस सीट पर उनका मुकाबला कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गिए दिग्गज आदिवासी नेता महेंद्रजीत मालवीय से हुआ.
इस सीट पर कांग्रेस ने अरविंद डामोर को अपना उम्मीदवार बनाया था.लेकिन नाम वापसी के अंतिम दिन से एक दिन पहले ही कांग्रेस ने रोत को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. लेकिन उसके उम्मीदवार ने अपना नाम वापस नहीं लिया. वहीं रोत के जीत का राह का और कठिन बनाने के लिए राजकुमार नाम के दो डमी उम्मीदवार भी खड़े कर दिए गए थे.इतनी तगड़ी घेरेबंदी के बाद भी राजकुमार रोत ने अपनी जीत सुनिश्चित की.उन्होंने बीजेपी के मालवीय को दो लाख 47 हजार 54 वोटों से मात दी.
भारत आदिवासी पार्टी का उद्देश्य क्या है ?
देशभर के आदिवासी कार्यकर्ताओं और नेताओं 10 सितंबर 2023 को 'भारत आदिवासी पार्टी'का गठन किया था.इसका स्थापना दिवस कार्यक्रम राजस्थान के डूंगरपुर के टंटया भील खेल मैदान में आयोजित किया गया था.मोहनलाल रौत इसके अध्यक्ष बनाया गया. इसमें राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, झारखंड, गुजरात और कई दूसरे राज्यों के लोग शामिल हुए थे. पार्टी की बेवसाइट के मुताबिक भारत आदिवासी पार्टी भारत की पहली पर्यावरण हितैषी पार्टी है. पार्टी जल-जंगल-जमीन वन्य जैवविविधता, प्रकृति, मूलनिवासी और प्रकृति के हित में काम करेगी.
स्थापना के तीन महीने बाद ही मिली बड़ी सफलता
अपनी स्थापना के तीन महीने बाद ही भारत आदिवासी पार्टी राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा के विधानसभा चुनाव में उतरी. बीएपी ने राजस्थान की 27 और मध्य प्रदेश की आठ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे.इस चुनाव में उसे चार सीटों पर सफलता मिली. राजस्थान के डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा सीट से राजकुमार रोत, आसपुर से उमेश डामोर, धरियावाद से थावरचंद मीणा ने जीत दर्ज की.वहीं मध्य प्रदेश के रतलाम की सैलाना सीट से कमलेश्वर डोडियार ने जीत दर्ज की. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बाद बीएपी ही एकमात्र ऐसी पार्टी थी जिसे किसी सीट पर जीत मिली.इस चुनाव में बीएपी को करीब 11 लाख वोट मिले. बीएपी के चार उम्मीदवार दूसरे स्थान रहे तो 16 तीसरे नंबर पर.
वहीं लोकसभा चुनाव के साथ हुए बागीदौरा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी बीएपी मैदान में उतरी. उसने जयकृष्ण पटेल को उम्मीदवार बनाया. उन्होंने बीजेपी के सुभाष तंबोलिया को मात दी. इससे राजस्थान विधानसभा में बीएपी के विधायकों की संख्या चार हो गई. लेकिन सांसद चुने जाने के बाद राजकुमार रोत ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इससे बीएपी के विधायकों की संख्या फिर तीन ही रह गई है.
कहां कहां से लोकसभा चुनाव लड़ी बीएपी?
विधानसभा चुनावों में मिली शानदार सफलता के बाद बीएपी के हौंसले बुलंद थे.उसने लोकसभा चुनाव में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, दादरा नागर हवेली, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और असम की करीब 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए.बीएपी ने राजस्थान के बांसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, सवाई माधोपुर, झारखंड के खूंटी और लोहरदगा, मध्य प्रदेश की मंडला, रतलाम झाबुआ जैसी सीट से चुनाव लड़ा. बीएपी का दावा है कि उसकी उपस्थिति देश के 12 राज्यों के 250 से अधिक शहरों और कस्बों में है.
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