उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के एक बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति गरमा दी है. शंकराचार्य ने कहा था,''हम हिंदू धर्म को मानते हैं.हम पुण्य और पाप में विश्वास करते हैं.विश्वासघात को सबसे बड़ा पाप कहा जाता है, यही उद्धव ठाकरे के साथ हुआ है.उन्होंने मुझे बुलाया था.मैं यहां (मातोश्री) आया. उन्होंने स्वागत किया. हमने कहा कि उनके साथ हुए विश्वासघात से हमें दुख है. जब तक वे दोबारा सीएम नहीं बन जाते, हमारा दुख दूर नहीं होगा.'' उनके इस बयान की महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने निंदा की है.शिव सेना नेता संजय निरुपम ने कहा है कि जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी धार्मिक कम,राजनीतिक ज्यादा हैं. उन्होंने कहा कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा,कौन नहीं,यह जनता तय करेगी,शंकराचार्य नहीं.
मुंबई में शंकराचार्य
उद्धव ठाकरे ने अपने निवास स्थान 'मातोश्री' में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की चरणपादुका का पूजन कर आशीर्वाद लिया.इससे पहले वो मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के शुभ आशीर्वाद समारोह में भी शामिल हुए थे. इस अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी ने भी शंकराचार्य से आशीर्वाद लिया था.उन्होंने उन्हें रुद्राक्ष की माला भेंट की थी.
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी अपने बयानों को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं. उन्होंने आधे-अधूरे राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठाए थे. राजनीति के हल्के में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को कांग्रेस का समर्थक माना जाता है.
गुरु थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती स्वतंत्रता सेनानी थे.सितंबर 2022 में उनके निधन के बाद उनके दोनों पीठों के नए शंकराचार्य की घोषणा की गई थी. ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को बनाया गया था. वहीं शारदा पीठ द्वारका का शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती को बनाया गया था.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में हुआ था.उनका मूल नाम उमाशंकर उपाध्याय है. उन्होंने वाराणसी के मशहूर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है.पढ़ाई के दौरान वो छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे.वे 1994 में छात्रसंघ का चुनाव भी जीते थे.
कहां हुआ था जन्म
उमाशंकर उपाध्याय की प्राथमिक शिक्षा प्रतापगढ़ में ही हुई. बाद में वे गुजरात चले गए. इस दौरान वो धर्म और राजनीति में समान दखल रखने वाले स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी राम चैतन्य के संपर्क में आए. उनके कहने पर ही उमाशंकर उपाध्याय ने संस्कृत की पढ़ाई शुरू की.करपात्री जी के बीमार होने पर वे आ गए और उनके निधन तक उनकी सेवा की. इसी दौरान वे ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के संपर्क में आए. संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें 15 अप्रैल 2003 को दंड सन्यास की दीक्षा दी गई. इसके बाद उन्हें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम मिला.
सड़क पर भी रहते हैं सक्रिय
गंगा और गाय की रक्षा के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हमेशा सक्रिय रहते हैं. वाराणसी में जब काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लिए जब मंदिर तोड़े गए तो,इसका उन्होंने काफी विरोध किया. यहां तक कि उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ 2019 में वाराणसी में उम्मीदवार उतारने की भी कोशिश की. उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से गऊ गठबंधन के तहत उम्मीदवार उतारा था. उन्होंने 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए लंबे समय तक अनशन किया था. स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. अपने गुरु के निर्देश पर उन्होंने अनशन खत्म किया था.
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