"निजी हितों को भी जगह मिलनी चाहिए...", सड़क निर्माण प्रस्ताव को रद्द करने की मांग पर SC की टिप्पणी

अदालत की ये टिप्पणियां उस मामले के फैसले में की गईं, जिसमें भूमि के वास्तविक स्वामित्व वाले निजी व्यक्तियों ने सड़क के निर्माण का विरोध किया था.

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प्रस्ताव को रद्द करने की मांग करते हुए लोगों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. 
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जब सार्वजनिक हित स्पष्ट रूप से व्यक्त, अत्यावश्यक और अनिवार्यता का अहसास कराने वाले हों, तो निजी हितों को भी जरूरी सीमा तक जगह देनी चाहिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक समाज में, एक व्यक्ति के अधिकारों का अत्यधिक महत्व है. ये ऐसे मूलभूत ढांचे हैं, जिनके ऊपर हमारा कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक परिवेश फलता-फूलता है.

कोर्ट ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में व्यक्तिगत नागरिकों के अधिकारों को मनमाने ढंग से कुचला नहीं जाना चाहिए और उनमें से किसी भी कटौती की अत्यधिक सावधानी से पड़ताल की जानी चाहिए.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा, ‘‘जब सार्वजनिक हित स्पष्ट रूप से व्यक्त, अत्यावश्यक और अनिवार्यता का अहसास कराने वाला हो, तो निजी हितों को भी एक निश्चित सीमा तक जगह देनी चाहिए.''

अदालत की ये टिप्पणियां उस मामले के फैसले में की गईं, जिसमें भूमि के वास्तविक स्वामित्व वाले निजी व्यक्तियों ने सड़क के निर्माण का विरोध किया था. इन लोगों ने 1976 में मुंबई की विकास योजना के प्रारम्भ में ही यातायात की बढ़ती भीड़ से बचने के लिए महाकाली गुफाओं से केंद्रीय एमआईडीसी तक उनकी भूमि से सड़क बनाए जाने का विरोध किया था.

निजी व्यक्तियों ने सड़क के प्रस्तावित निर्माण प्रस्ताव को रद्द करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. 

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